नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डा. हर्ष वर्धन ने राष्ट्रीय टीबी प्रसार सर्वेक्षण के साथ आज एक नए अभियान ‘टीबी हारेगा, देश जीतेगा’ की शुरुआत की। उन्होंने कहा, कई हितधारक और सामुदायिक भागीदारी इस देशव्यापी अभियान की धुरी होगी। ‘टीबी को खत्म करने की हमारी प्रतिबद्धता के हिस्से के तौर पर हमने पहले 100 दिनों में सभी जिलों के 95 प्रतिशत से अधिक हिस्सों में रोगी मंचों की स्थापना की है, जो स्पष्ट रूप से टीबी को कम से कम समय में खत्म करने की हमारी मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ये जिला फोरम प्रभावितों की आवाज को सामने लाएंगे और टीबी से संबंधित सेवाओं तक पहुंचने में रोगियों एवं उनके परिवारों के सामने आने वाली जमीनी चुनौतियों को उजागर करेंगे।’
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने राष्ट्रीय टीबी प्रसार सर्वेक्षण के लिए एक वाहन को भी हरी झंडी दिखाई। कुल मिलाकर, ऐसे 25 वाहन इस सर्वेक्षण का हिस्सा होंगे, जो पूरे देश में सर्वेक्षण करने के लिए छह महीने का समय लेंगे। यह राष्ट्रीय और राज्य स्तर के डाटा को सामने रखेगा, आगे जिसका उपयोग एक नीतिगत औजार के रूप में किया जाएगा।
डॉ. हर्षवर्धन ने टीबी इंडिया रिपोर्ट (2019), टीबी के लिए कार्यस्थल पर नीतिगत ढांचा, टीबी पर नियोक्ता आधारित मॉडल के लिए कार्य-संबंधी दिशानिर्देश, टीबी से बचने वालों को टीबी चैंपियन में बदलने के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल और टीबी पर चयनित प्रतिनिधि हैंडबुक भी जारी की। इस सबके अलावा, एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने बहु-दवा प्रतिरोधी टीबी रोगियों के लिए एक संपूर्ण मौखिक आहार किट जारी की। इसमें इंजेक्शन शामिल नहीं हैं, जो काफी दर्द देने वाले होते हैं और इनके दुष्प्रभाव हो सकते हैं। उन्होंने विश्व बैंक के साथ एक साझेदारी की भी घोषणा की, जो निजी क्षेत्र को जोड़कर और अन्य महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों के जरिये नौ राज्यों में टीबी का इलाज तेज करने के लिए 400 मिलियन डॉलर की राशि दे रहा है। इस अभियान की शुरुआत के अवसर पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे भी मौजूद थे।
नए टीबी नियंत्रण अभियान की कुछ प्रमुख खूबियों पर प्रकाश डालते हुए डा. हर्षवर्धन ने कहा कि इसके तीन मजबूत स्तंभों में लक्षण आधारित दृष्टिकोण, सार्वजनिक स्वास्थ्य घटक और सक्रिय सामुदायिक भागीदारी शामिल है। अभियान के अन्य सहायक तत्वों में निजी क्षेत्र का जुड़ाव, रोगी का साथ और सभी स्तरों पर राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्रतिबद्धता शामिल है।
उन्होंने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि सभी रोगियों तक टीबी का निशुल्क, उच्च गुणवत्ता वाला उपचार पहुंचे। भले ही वह कहीं से भी उपचार (निजी अस्पतालओं समेत) करा रहे हों। उन्होंने कहा, ‘माननीय प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप, हमने उन महत्वपूर्ण पहलों की शुरुआत की है जो टीबी के निदान, उपचार और रोकथाम के तरीके को बदल रहे हैं। हम 2025 तक टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। यह साल 2030 के वैश्विक लक्ष्य से काफी पहले है।’
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि अब हमारे पास टीबी कार्यक्रम के तहत 300 से अधिक टीबी चैंपियन हैं। उन्होंने ओडिशा की सुश्री चिन्मयी के साहस की सराहना की, जिन्होंने उन्हें अपनी मस्तिष्क के टीबी से लड़ने और टीबी नियंत्रण के प्रयासों की एक मजबूत पैरोकार एवं समर्थक बनने की कहानी सुनाई। डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा, ‘इलाज के दौरान अनुकरणीय साहस दिखाने वाली चिन्मयी उनके जैसे टीबी की गिरफ्त से बाहर निकले कई अन्य लोगों को नेतृत्व करने का अवसर दिया जाना चाहिए।’ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने आगे कहा कि पोलियो उन्मूलन के लिए भारत का अभियान इसीलिए सफल हो सका क्योंकि हजारों स्वयंसेवकों ने इसमें योगदान दिया। उन्होंने जोर देकर कहा, ‘ये लोग कौन थे? ये सभी जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों – डॉक्टर, नेता, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, सामुदायिक सदस्य, भरोसा जगाने वाले थे। इन लोगों के सतत और समर्पित प्रयासों से ही भारत पोलियो का उन्मूलन कर सका। हमने जो उस समय पोलिया के साथ किया, अब हमें टीबी के साथ ही ऐसा करने की जरूरत है।’
डॉ. हर्ष वर्धन ने टीबी से निपटने में शानदार प्रदर्शन करने वाले राज्यों पुरस्कार भी प्रदान किए। ज्यादा आबादी वाले राज्यों (>50 लाख) में हिमाचल प्रदेश और गुजरात सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्य रहे। वहीं त्रिपुरा और सिक्किम को मध्यम आबादी (50 लाख से कम) वाले राज्यों में उनके प्रदर्शन के लिए यह पुरस्कृत किया गया। केंद्र शासित प्रदेशों में पुड्डुचेरी और दमन एवं दीव को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला आंका गया।
नए टीबी अभियान का लक्ष्य वर्ष 2022 तक देश भर में टीबी उपचार सेवाओं की पहुंच को विस्तार देना और उनमें सुधार करना है। इसमें निवारक और प्रोत्साहन दृष्टिकोण शामिल है। यह निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, अंतर-मंत्रालय साझेदारी, कॉर्पोरेट क्षेत्र के साथ काम, गुप्त टीबी संक्रमण प्रबंधन और सामुदायिक जुड़ाव जैसे संभावित परिवर्तनकारी हस्तक्षेप का प्रस्ताव करता है। इसके साथ ही एक व्यापक, जनसंपर्क और संचार अभियान होगा ताकि बीमारी और सरकारी कार्यक्रम के तहत उपलब्ध मुफ्त उपचार सेवाओं के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके। स्वास्थ्य मंत्री ने आज एक मीडिया अभियान भी लांच किया।
पिछले कुछ वर्षों में कई नीतिगत पहलें की गई हैं, इनके परिणामस्वरूप सरकार को रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या में वृद्धि देखने को मिली है। वर्ष 2018 में सरकार के पास टीबी के 21.5 लाख मामले दर्ज हुए। वहीं वर्ष 2017 में यह संख्या 18 लाख थी। एक साल में इसमें 17% की वृद्धि हुई। इसके अलावा, निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के पास दर्ज मामलों की संख्या 5.4 लाख तक पहुँच गई। यह 40% की वृद्धि है, जो टीबी के कुल दर्ज मामलों का 25% है। भारत सरकार ने जेईईटी यानी ‘जीत’ (टीबी उन्मूलन के लिए संयुक्त प्रयास) शुरू करने के लिए ग्लोबल फंड के साथ भागीदारी की है। यह देशभर के 45 शहरों में चल रहा निजी क्षेत्र का कार्यक्रम है। पिछले साल घरेलू स्रोतों के साथ भारत सरकार ने एनएचएम के जरिये 19 राज्यों के 120 अतिरिक्त शहरों के लिए इसे मंजूरी दी है।
अप्रैल 2018 में सरकार ने टीबी के रोगियों को पोषक आहार मुहैया कराने के लिए निक्षय पोषण योजना की शुरुआत की गई थी। यह एक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डीबीटी योजना थी। इस योजना के तहत टीबी रोगियों को पूरी उपचार अवधि के दौरान 500 रुपये प्रतिमाह दिया जाता है। योजना की शुरुआत बाद से 26 लाख लाभार्थियों को डीबीटी के माध्यम से उनके बैंक खातों में कुल 427 करोड़ रुपये की राशि पहुंचाई गई है।
इस अवसर पर नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. विनोद के. पॉल, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव श्रीमती प्रीति सुदान, आईसीएमआर के महानिदेशक एवं सचिव (डीएचआर) डॉ. बलराम भार्गव, विशेष सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण श्री संजीव कुमार, डीजीएचएस डा. संजय त्यागी, भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि डॉ. हेंक बेकेडेम, विश्व बैंक के प्रोग्राम प्रमुख श्री जॉर्ज कोरासा और संयुक्त राष्ट्र के दूसरे संगठनों के दूसरे प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।