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सिबसागर,असम में श्रीमंत शंकरदेव संघ के 85वें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए

देश-विदेश

नई दिल्ली: मैं सबसे पहले तो आप सब को प्रणाम करता हूं। इनके सब योजकों को प्रणाम करता हूं कि ऐसे पवित्र अवसर पर मुझे आपके बीच आने

का सौभाग्‍य दिया। कोई कल्‍पना कर सकता है कि पांच शताब्‍दी से भी पहले किसी व्‍यक्‍ति को, जबकि उन दिनों में न कैमरा थे, न अखबार थे, न टीवी था, न टेलीफोन था, उसके बावजूद भी पांच शताब्‍दियां बीतने के बाद भी हम सब उस महापुरुष को याद करते हैं। उनके बताए हुए रास्‍ते पर चलने का प्रयास करते हैं। वो कैसी विलक्षण प्रतिभा होगी जिन्‍होंने सदियों तक समाज पर ऐसा गहरा प्रभाव छोड़ा है। ऐसे श्रीमंत शंकरदेव गुरुजन के चरणों में मैं प्रणाम करता हूं। उनकी विशेषता देखिए। यहां तो सब लोग बैठे हैं, वे उनकी हर बात को जानते हैं, उनकी हर बात को जीने का प्रयास करते हैं। सदियों पुरानी उनकी बातों को आज भी जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं। और इसीलिए मैं उनके लिए कुछ कहूँ, उससे ज्‍यादा आप सब उनको भली-भांति जानते हैं।

जब हिन्‍दुस्‍तान के अन्‍य भागों में जब उनके विषय में लोगों को जानकारी मिलती है तो बड़ा ताज्‍जुब होता है। उन्‍होंने आध्‍यात्‍म को जीवन के रंग से रंग दिया था। सामान्‍यत: हमारी आध्‍यात्‍म की सोच ऐसी रही जो कभी-कभी सहज जीवन को नकारती रही। लेकिन श्रीमंत शंकरदेव जीवन के रंगों में ही आध्‍यात्‍मिकता भरने में एक नए मार्गदर्शक बने। कोई सोच सकता है आध्‍यात्‍म और नाटक का संबंध। कोई सोच सकता है आध्‍यात्‍म और कला का संबंध। कोई सोच सकता है आध्‍यात्‍म और नृत्‍य का संबंध, कोई सोच सकता है आध्‍यात्‍म और गीत का संबंध। उन्‍होंने कला को, नृत्‍य को, नाट्य को, संगीत को, जो समाज जीवन की सहज वृत्‍ति-प्रवृत्‍ति थी, उसको ही आध्‍यात्‍म के रंग में रंग दिया और उसके कारण श्रीमंत शंकरदेव आज भी हमारे लिए उतने ही relevant है जितने कि उनके अपने जीवन काल में थे।

दूर-सुदूर असम में रहने वाला यह संत, यह आध्‍यात्‍मिक महामानव पांच शताब्‍दी पहले यह कहे कि हम ऐसे आसामी बने, ऐसे आसामिया बने कि हम उत्‍तम भारतीय बने रहे। राष्‍ट्रवाद का संदेश उसने दूर उतनी शताब्‍दियों पहले कोई महापुरुष देता है। वे यह भी कहते है कि हमें राष्‍ट्र निर्माण करना है, लेकिन राष्‍ट्र निर्माण करने के लिए भी व्‍यक्‍ति निर्माण, यही हमारा मार्ग होगा और इसलिए जन-जन को जोड़ना, समाज के ताने-बाने को ऐसे जोड़ना कि समाज एक ऐसी शक्‍ति के रूप में उभरे जो अपने बलबूते पर विकास भी करे, आध्‍यात्‍मिक चेतना भी जगाए और संकटों को भी पार कर ले। यह ऐसे आध्यात्मिक महापुरुष थे जो शास्‍त्र में भी समर्पित थे, शस्‍त्र में भी समर्पित थे। उन्‍होंने अपने ही भक्‍तों को आताताइयों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया, बलिदान देने के लिए तैयार किया। क्‍यों? मातृभूमि की रक्षा करनी है, आध्‍यात्‍मिकता की रक्षा करनी है, महान उज्‍ज्‍वल परंपराओं की रक्षा करनी है।

आज भी हमारे समाज में जो बुराइयां हैं, भले कम हुई हो, लेकिन कहीं-कहीं जब वो बुराइयां नज़र आती हैं तब कितनी पीड़ा होती है। हिन्‍दू समाज की एक विशेषता रही है। हजारों साल पुराना यह समाज है। समय-समय पर उसमें कुछ विकृतियां भी आई, बुराइयां भी आई, लेकिन इस समाज की विशेषता थी कि अपने में से ही ऐसे महापुरुषों को उसने पैदा किया कि जो खुद ही समाज की बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में आए। यह छोटी बात नहीं है। आज भी कहीं पर अस्‍पृश्‍यता के खिलाफ बोलना हो, छुआछूत के खिलाफ बोलना हो तो कभी-कभी लोगों को लगता है कि अब जरूरत क्‍या है। श्रीमंत शंकरदेव ने पांच शताब्‍दी पहले अस्‍पृश्‍यता के खिलाफ, ऊंच-नीच के भेद के खिलाफ, सामाजिक एकता के लिए जहां गए वहां, उन्‍होंने पूरे भारत का भ्रमण किया था, उस जमाने में; कितने कष्‍ट झेले होंगे और यह संदेश पहुंचाया कि समाज में ये जो विकृतियां हैं वो विकृतियां खत्‍म होनी चाहिए। समाज में जो बुराइयां हैं वो बुराइयां खत्‍म होनी चाहिए। युगों के अनुसार कभी-कभी बुराइयां बदल जाती हैं।

आज के समय में श्रीमंत शंकरदेव के रास्‍ते पर और इतने समर्पित सेवकों की आप लोगों की टीम हैं। सरकार को इतना बड़ा कार्यक्रम हो तो 50 बार सोचना पड़ता है और में देख रहा हूं, मैं हेलीकॉप्‍टर से देख रहा हूं। जहां देख रहा था, लोग ही लोग नज़र आ रहे थे लाखों की तादाद में। यह कैसी आध्‍यात्‍मिक ताकत है, यह कैसी सात्‍विक ताकत है? हमारे राष्‍ट्र को आगे ले जाने के लिए हमारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ का जो मंत्र है, उसमें यह आध्‍यात्‍मिक चेतना, आध्‍यात्‍मिक शक्‍ति, सात्‍विक शक्‍ति, इसका बहुमूल्‍य है और उसकी शक्‍ति को जोड़ने से राष्‍ट्र तेज गति से आगे बढ़ता है। आज भी रिसर्च के काम, साहित्‍य के काम, शिक्षा के काम, लोक-संस्‍कार के काम, समाज का कल्‍याण करने वाले काम, आज श्रीमंत शंकरदेव संस्‍थान के द्वारा चल रहे हैं।

यह बात सही है इतने साल हो गए। तो कभी छोटा-मोटा खट्ठा मीठा आ जाता है। लेकिन अच्‍छा यही है कि सब मिल करके काम करें। कंधे से कंधा मिला करके काम करें तो ये ताकत और उभर के आएगी और समाज की एक नई शक्ति बन करके रहेगी। ऐसा मेरा विश्‍वास है। एक सात्‍विक प्रवृत्ति चल रही है, शिक्षा की प्रवृत्ति चल रही है और बहुत सी बातें संस्‍था के प्रमुख लोगों ने मेरे सामने रखी हैं। मैं उन सारी बातों का गहराई से अध्‍ययन करूंगा और उसमें से जो भी हो सकता है उसे करने में हम पीछे नहीं रहेंगे, क्‍योंकि ये काम आप कर रहे हैं। अब मान लीजिए मुझे असम में ही स्‍वच्‍छ भारत अभियान चलाना हो। अगर आप लोग मन में ठान लें। तो सरकार की जरूरत पड़ेगी क्‍या? असम कभी गंदा होगा क्‍या? अगर आप लोग तय कर लें श्रीमंत शंकर देव के नाम से जय गुरू शंकर बोल के निकल दें, मैं नहीं मानता कि असम में कोई गंदगी रह सकती है। स्‍वच्‍छ भारत का अभियान असम में सिरमौर बन सकता है। हमारे यहां बालकों के लिए पोलियो की खुराक, बालकों के लिए वैक्‍सीन, ये सरकार का बहुत बड़ा अभियान होता है। एक भी बालक वैक्‍सीन के बिना रह न जाए। एक भी बालक पोलियो की खुराक के बिना रह न जाए। ये ऐसा बड़ा काम है अगर हम हमारे इस संस्‍थान के लोग उसके साथ लग जाएं। तो मैं नहीं मानता कि सरकार अगर कम पड़ जाए लेकिन आप नहीं कम पड़ेंगे और समाज की ताकत बनेंगे ये मेरा विश्‍वास है।

सरकार और समाज की शक्ति जुड़नी चाहिए। सरकार और समाज की शक्ति मिल करके निर्धारित लक्ष्‍य की ओर आगे बढ़नी चाहिए। तब जा करके हम श्रीमंत शंकर देव जी जैसा भारत चाहते थे वो भारत हम बना सकते हैं। शंकर देव के सपनों को हम पूरा कर सकते हैं। और इस आध्‍यात्मिक अवसर पर मैं गुरूदेव का प्रणाम करता हूं, फिर एक बार आप सबका आभार व्‍यक्‍त करता हूं और मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं कि आप इतने उत्‍तम काम कर रहे हैं, इतने सात्विक काम कर रहे हैं। दिल्‍ली की सरकार आपके साथ खड़े रहने में कभी पीछे नहीं हटेगी। यह मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं।

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