नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि भारत में नीति निर्माण में कोई कमी नहीं है लेकिन अधिक महत्वपूर्ण इन नीतियों का धरातल पर प्रभावी क्रियान्वयन है। उन्होंने कहा कि कार्यान्वयन के लिहाज से भी नीति अच्छी होनी चाहिए।
आज हैदराबाद में एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया (एएससीआई) के संकाय सदस्यों के साथ बातचीत करते हुए उपराष्ट्रपति ने विकास के लिए समावेशी और टिकाऊ दृष्टिकोण का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि सरकारी कार्यक्रमों का लाभ अंत्योदय की सच्ची भावना से अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए जैसा कि महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महान नेताओं ने सोचा था। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति, समुदाय या क्षेत्र पीछे नहीं रह जाना चाहिए।
सरकारी कार्यक्रमों में लोगों को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए श्री नायडू ने कहा कि भारत जैसे बड़े आकार का देश शासन में लोगों की भागीदारी के बिना प्रगति नहीं कर सकता है। उन्होंने सेवा वितरण में सुधार और भ्रष्टाचार कम करने के लिए डिजिटल तकनीकों का अधिकतम उपयोग करने का भी आह्वान किया।
श्री नायडू ने कहा कि शासन में सुधार के लिए उपयुक्त रणनीति तैयार करने और प्रशासन में परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज को अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए प्रशासकों की मदद करनी चाहिए।
प्रशासन से जुड़े हर पहलू में परिवर्तन पर ध्यान आकर्षित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वर्तमान समय में प्रशासन केवल कार्यान्वयन तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें प्रबंधन और शासन की व्यापक अवधारणा समाहित है। उन्होंने सर्वोत्कृष्ट प्रथाओं को लागू करने और शासन में एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया।
देश में सिविल सेवकों, प्रबंधकों और प्रशासकों के क्षमता विकास में प्रमुख संस्थानों में से एक के रूप में उभरने के लिए एएससीआई की सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने इसके संकाय को प्रशासकों के बीच व्यवहार और मानसिकता में बदलाव लाने की दिशा में काम करने को कहा है। श्री नायडू ने एएससीआई के संकाय सदस्यों से कहा कि आप से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रत्येक अधिकारी नागरिक-केंद्रित और परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण अपनाएंगे जो समय की मांग है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए दुनिया के कई देश भारत की ओर देख रहे हैं। उन्होंने भरोसा जताते हुए कहा कि एएससीआई अपने प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों, सार्वजनिक नीति में विशेषज्ञता और परामर्श सेवाओं के बल पर सरकारों, कॉरपोरेट्स और दूसरे देशों को भी सही तरह से मदद कर सकता है।
सार्वजनिक-निजी-भागीदारी को समय की मांग बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत के लिए विकास करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए उन्होंने नीति निर्धारकों, प्रशासकों और सलाहकारों को नियमित सरकारी कार्यों के अलावा पीपीपी पर ध्यान केंद्रित करने को कहा।
एएससीआई की यात्रा के दौरान उपराष्ट्रपति ने इसके परिसर में घूमकर प्रशिक्षुओं से बातचीत की। उन्होंने एएससीआई के परिसर में एक पौधा भी लगाया।
एएससीआई देश का सबसे पुराना प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान है। 1956 में अपनी स्थापना के बाद से इसने सरकार, उद्योग और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों को प्रबंधन विकास कार्यक्रम, अनुसंधान और सलाहकार कार्य के जरिए सार्वजनिक नीतियों के निर्माण में बहुमूल्य योगदान दिया। एएससीआई ने पिछले साल दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मैनेजमेंट पाठ्यक्रम भी शुरू किया है।
उपराष्ट्रपति के साथ बातचीत में एएससीआई के अध्यक्ष श्री के. पद्मनाभैया, संस्थान के निदेशक एवं संकाय और छात्र भी शामिल हुए।