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एआरआई वैज्ञानिकों ने मिथेन की मात्रा में कमी लाने और मूल्य संवर्धन के लिए मिथेन-ऑक्सीकारक बैक्टीरिया का अध्ययन किया

देश-विदेश

नई दिल्ली: अगहरकर शोध संस्थान (एआरआई), पुणे के वैज्ञानिकों ने मिथेनोट्रॉपिक बैक्टीरिया के 45 विभिन्न प्रजातियों को पृथक किया है, जो धान की पौधों से होने वाले मिथेन उत्सर्जन में कमी लाने में सक्षम है। एआरआई, पुणे विज्ञान और तकनीकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत संस्थान है।

मिथेनोट्रॉप्स मिथेन को कार्बनडाईऑक्साइड में बदल देता है। वे प्रभावी रूप से मिथेन के उत्सर्जन में कमी ला सकते है। मिथेन ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण गैस है। यह कार्बनडाईऑक्साइड की तुलना में 26 गुना ज्यादा घातक है। धान के खेतों में मिथेनोट्रॉप्स पौधे की जड़ों तथा मिट्ठी-पानी में सक्रिय रहते है।

एआरआई की डॉ. मोनाली राहलकर और उनकी टीम ने मिथेनोट्रॉप्स के 45 प्रजातियों को पृथक किया है और पहली बार स्वदेशी रूप में मिथेनोट्रॉप्स कल्चर का निर्माण किया है। टीम ने पाया कि पौधों के मिथेन उत्सर्जन में कमी आई है और पौधे के विकास में सकारात्मक या निष्क्रिय प्रभाव पड़ा है। इससे धान के पौधों में मिथेन उत्सर्जन में कमी लाने सूक्ष्म जीव आधारित संचरण किए जा सकते है।

धान के खेतों में लम्बे समय तक जल जमाव रहता है। कार्बनिक तत्वों के विघटन से मिथेन बनता है। पूरी दुनिया में धान के खेत कुल मिथेन उत्सर्जन में 10 प्रतिशत का योगदान देते है। एआरआई के अध्ययन के पूर्व भारत में स्वदेशी रूप से अलग किए गए मिथेनोट्रॉप्स पर कोई कल्चर उपलब्ध नहीं था। धान के खेतों से पृथक किए गए मिथेनोट्रॉप्स के माध्यम से मिथेन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए विभिन्न कारकों के प्रभाव को समझा जा सकता है। वैज्ञानिकों की यह टीम भविष्य में अमोनिया उर्वरकों द्वारा तापमान बढ़ाने के विषय पर अध्ययन करेगी।

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मिथेनोट्रॉप्स का उपयोग मिथेन के मूल्य संवर्धन के लिए भी किया जा सकता है। अपशिष्ट से प्राप्त जैव-मिथेन का उपयोग मिथेनोट्रॉप्स कर सकते है और इसे एक कोशिका प्रोटीन, बायो-डीजल जैसे उपयोगी उत्पादों में बदल सकते है। ऐसे अध्ययनों से जीएचजी उत्सर्जन में कमी लाने में सहायता मिलेगी।

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