नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनित किया है। केंद्र सरकार ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किया और गृह मंत्रालय ने सोमवार को इस आशय की अधिसूचना जारी की। जारी अधिसूचना के मुताबिक, ‘संविधान के अनुच्छेद 80 के खंड (1) के उपखंड (ए) और इसी अनुच्छेद के खंड (3) के तहत राष्ट्रपति राज्यसभा के नामित सदस्यों में से एक के रिटायरमेंट की वजह से रिक्त हुई सीट पर रंजन गोगोई को नामित करते हैं।’ यह सीट केटीएस तुलसी के रिटायरमेंट की वजह से रिक्त हुई है।
राष्ट्रपति ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया। जस्टिस गोगोई भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश थे और उत्तर पूर्वी राज्य से आने वाले पहले सीजेआई थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुत से अहम फैसले दिए जिसमे राम जन्मभूमि का फैसला भी शामिल है।@JagranNews
— Mala Dixit (@mdixitjagran) March 16, 2020
ऐतिहासिक फैसले और बेदाग छवि
मालूम हो कि गोगोई सुप्रीम कोर्ट की उस पांच सदस्यीय पीठ के अध्यक्ष थे जिसने पिछले साल नौ नंवबर को संवेदनशील अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया था। बाद में वह उसी महीने रिटायर हो गए थे। यह इतिहास में दूसरी सबसे लंबी सुनवाई रही थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उन पीठों की भी अध्यक्षता की थी जिन्होंने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश और राफेल लड़ाकू विमान सौदे जैसे मसलों पर फैसले सुनाए थे। गोगोई सुप्रीम कोर्ट में बैठे 25 न्यायाधीशों में से उन 11 न्यायाधीशों में शामिल रहे जिन्होंने अदालत की वेबसाइट पर अपनी संपत्ति का विवरण दिया था।
दिए आदेश से हुई थी लोकायुक्त की नियुक्ति
जस्टिस गोगोई का 16 दिसंबर 2015 को दिया गया एक आदेश उन्हें इतिहास में खास मुकाम पर दर्ज कराता है। देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के जरिए किसी राज्य का लोकायुक्त नियुक्त किया था। जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सेवानिवृत न्यायाधीश जस्टिस वीरेन्द्र सिंह को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त करने का आदेश जारी किया था। न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि सर्वोच्च अदालत के आदेश का पालन करने में संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का नाकाम रहना बेहद अफसोसजनक और आश्चर्यचकित करने वाला है। कोर्ट को लोकायुक्त की नियुक्ति का स्वयं आदेश इसलिए देना पड़ा था क्योंकि कोर्ट के बार बार आदेश देने के बावजूद लोकायुक्त की नियुक्ति पर प्रदेश के मुख्यमंत्री, नेता विपक्ष और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश में सहमति नहीं बन पाई थी।
काटजू को होना पड़ा था शीर्ष अदालत में पेश
गोगोई के कार्यकाल की दूसरी ऐतिहासिक घटना 11 दिसंबर 2016 की है। इसमें केरल के चर्चित सौम्या हत्याकांड के फैसले पर ब्लाग में टिप्पणी करने पर जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के ही सेवानिवृत न्यायमूर्ति मार्कडेय काटजू को अदालत में तलब कर लिया था। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई सेवानिवृत न्यायमूर्ति सुप्रीम कोर्ट में पेश हुआ हो और उसने बहस की हो। इतना ही नहीं बहस के बाद शीर्ष अदालत उसको अवमानना का नोटिस जारी कर दे। न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने काटजू को अवमानना नोटिस जारी करते हुए कहा था कि ब्लाग पर की गई टिप्पणियां प्रथम दृष्टया अवमाननापूर्ण हैं।
एनआरसी पर अपनाया था सख्त रुख
गोगोई ने उस बेंच का नेतृत्व किया, जिसने यह सुनिश्चित किया कि असम में एनआरसी की प्रक्रिया निर्धारित समय सीमा में पूरी हो जाए। पब्लिक फोरम में आकर उन्होंने एनआरसी की प्रक्रिया का बचाव करते हुए उसे सही बताया था। गोगोई एक ऐसे मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी याद किए जाएंगे जो सुप्रीम कोर्ट की पवित्रता की रक्षा करने के लिए अपनों के खिलाफ भी आवाज उठाने में पीछे नहीं रहे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आंतरिक कामकाज का विरोध करने के लिए तीन अन्य वरिष्ठ जजों के साथ प्रेस कांफ्रेंस की थी।
समयसीमा से पहले सरकारी आवास छोड़ पेश की थी मिसाल
यही नहीं भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने अपने एक महीने की समयसीमा से काफी पहले ही 5 कृष्णा मेनन मार्ग पर मिले अपने सरकारी घर को खाली करके एक मिसाल पेश की थी। सेवानिवृत्ति के महज तीन दिन बाद ही अपने आधिकारिक निवास को खाली करने वाले गोगोई देश के पहले मुख्य न्यायाधीश रहे। हालांकि इससे पहले पूर्व चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने भी अपने रिटायरमेंट के एक हफ्ते बाद आधिकारिक आवास को छोड़ करके एक मिसाल पेश की थी।
पूर्वोत्तर से आने वाले पहले सीजेआई
रंजन गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को असम में हुआ था। गोगोई पूर्वोत्तर के पहले व्यक्ति बने जिन्हें भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उनके पिता केशब चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने 1978 में बतौर एडवोकेट अपने कार्यकाल की शुरुआत की थी। अपने कॅरियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने गुवाहाटी होईकोर्ट में वकालत की। 28 फरवरी 2001 को गुवाहटी हाईकोर्ट में उन्हें स्थायी न्यायमूर्ति के तौर पर नियुक्त किया गया। वह 12 फरवरी 2011 को पंजाब और हरियाणा के चीफ जस्टिस बने। फिर पदोन्नति के बाद वह 23 अप्रैल, 2012 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बने। तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के रियाटर होने के बाद गोगोई को चीफ जस्टिस का पद मिला था। शपथ लेने के साथ ही उन्होंने अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए एक संवैधानिक बेंच का गठन किया था और खुद पीठ की अगुवाई की थी। Source जागरण