केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने दुनिया की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगारपरक योजना मनरेगा पर ज्यादा फोकस किया है। आंकड़े बताते हैं कि पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार से तीन गुना ज्यादा बजट मोदी सरकार मनरेगा के लिए इस्तेमाल करने में जुटी है। बीते दिनों जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मनरेगा के लिए 40 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त जारी करने की घोषणा की तो चालू वित्त वर्ष में बजट कुल एक लाख करोड़ पार कर गया। क्योंकि सरकार ने इससे पूर्व आम बजट के दौरान 61 हजार करोड़ रुपये की घोषणा की थी।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एक बयान में कहते हैं, 40,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त आवंटन की घोषणा के साथ मनरेगा को अब तक की सर्वाधिक एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि आवंटित की गई है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और वापस लौट रहे प्रवासी श्रमिकों के लिए यह बड़ी राहत होगी।
पिछले सात वर्षो में ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से मनरेगा को जारी हुई धनराशि के आंकड़ों की आईएएनएस ने पड़ताल की तो पता चला कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल की तुलना में मोदी सरकार हर साल कहीं ज्यादा बजट दे रही है, जिससे रोजगार भी पहले से ज्यादा मिल रहा है। हालांकि कांग्रेस के नेता कई बार मोदी सरकार पर मनरेगा की उपेक्षा करने के भी आरोप लगाते हैं, लेकिन आंकड़े इस बात की फिलहाल पुष्टि नहीं करते।
बीते दिनों केंद्र सरकार की ओर से बजट बढ़ाने पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने तंज कसते हुए कहा था, “प्रधानमंत्री ने यूपीए काल में सृजित मनरेगा स्कीम के लिए 40000 करोड़ का अतिरिक्त बजट देने की मंजूरी दी है। मनरेगा की दूरदर्शिता को समझने और उसे बढ़ावा देने के लिए हम उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं। जिस पर भाजपा ने जवाब देते हुए कहा था कि मोदी सरकार ने मनरेगा का कहीं बेहतर इस्तेमाल किया है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय से मिले आंकड़ों के मुताबिक, मनमोहन सरकार ने वर्ष 2013-14 में 38552 करोड़ रुपये मनरेगा मद में खर्च किए थे। उस वक्त सात करोड़ 38 लाख 82 हजार 388 लोगों को रोजगार मिला था। वहीं अगले वित्तीय वर्ष 2014-15 में केंद्र सरकार ने धनराशि घटाकर 36025 करोड़ कर दी। जिससे रोजगार घटकर 6 करोड़ 20 लाख 8 हजार 585 के स्तर पर पहुंच गया। तब तक केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आ गई। फिर मोदी सरकार ने मनरेगा का बजट बढ़ाना शुरू कर दिया, जिससे रोजगार भी बढ़ना शुरू हुआ।
2015-16 में भी बढ़ाया था बजट
2014-15 की तुलना में 2015-16 में मोदी सरकार ने आठ हजार करोड़ रुपये ज्यादा बजट बढ़ाते हुए 44002 करोड़ रुपये की व्यवस्था की। नतीजा रहा कि मनरेगा में रोजगार भी बढ़ने लगा। मोदी सरकार के बजट बढ़ाने से यूपीए सरकार की तुलना में एक करोड़ ज्यादा लोगों को रोजगार मिला। 2014-15 में 6,20,08585 करोड़ के मुकाबले 7,22,59036 करोड़ गरीब मजदूरों को रोजगार मिला।
2016-17 में 58062 करोड़ रुपए मिला था
इसी तरह से मोदी सरकार लगातार बजट बढ़ाती गई। मिसाल के तौर पर 2016-17 में मोदी सरकार ने 58062 करोड़ मनरेगा के लिए खर्च किए, वहीं अगले साल 2017-18 में 63649 करोड़ रुपये की व्यवस्था की। 2018-19 में मोदी सरकार ने पिछले वर्षों से सर्वाधिक 69 हजार 618 करोड़ रुपये खर्च किए। इस कारण अन्य वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा यानी सात करोड़ 77 लाख 33 हजार 234 लोगों को रोजगार मिला।
मजदूरों के पलायन के बाद बढ़ाया बजट
हालांकि अगले दो वर्षों में मोदी सरकार ने बजट में कुछ कटौती शुरू कर दी। मसलन, 2019-20 में सरकार ने पिछले वर्ष से कहीं कम 66925 करोड़ रुपये और 2020-21 में 61 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की। मगर, कोरोना के कारण जब दिल्ली, मुंबई, सूरत आदि शहरों से प्रवासी मजदूरों का बड़े पैमाने पर रिवर्स माइग्रेशन शुरू हुआ तो फिर मोदी सरकार ने 40 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बजट मनरेगा के लिए देने की घोषणा की। ताकि गांवों में ही मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सके। इस प्रकार देखें तो अब वित्तीय वर्ष 2020-21 में एक लाख दस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का मनरेगा का बजट हो गया है।
गरीबों के लिए मददगार साबित हो रही मनरेगा
भारत सरकार के रोजगार गारंटी परिषद के सदस्य रह चुके संजय दीक्षित आईएएनएस से कहते हैं, संकट की इस घड़ी में मनरेगा गरीबों के लिए बहुत मददगार साबित हो रही है। जब बाजार में रोजगार नहीं है तब गांव में मनरेगा से रोजगार मिलना गरीब मजदूरों को संजीवना मिलने जैसा है। कोई सरकार इस महत्वाकांक्षी योजना की उपेक्षा नहीं कर सकती। अगर केंद्र सरकार 90 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसानों को भी मनरेगा से जोड़ दे तो इसका किसानों को भी बहुत लाभ मिलेगा। Source Live हिन्दुस्तान