Online Latest News Hindi News , Bollywood News

राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय रामकिंकर बैज की 115वीं जयंती मनाने के लिए कल आभासी यात्रा का आयोजन करेगा

देश-विदेश

नई दिल्ली: संस्कृति मंत्रालय का राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय रामकिंकर बैज की 115वीं जयंती मनाने के लिए ‘रामकिंकर बैज | मूक बदलाव और अभिव्यक्तियों के माध्यम से यात्रा’ के शीर्षक से कल यानी 26 मई 2020 को आभासी यात्रा (वर्चुअल टूर) का आयोजन करेगा। राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (एनजीएमए) इस प्रतिष्ठित कलाकार की 639 कलाकृतियों पर गर्व करता है। इस आभासी यात्रा के दौरान एनजीएमए के आरक्षित संग्रह से रामकिंकर बैज की उन उत्‍कृष्‍ट कलाकृतियों को दर्शाया जाएगा जिन्‍हें इन पांच अलग-अलग थीम की श्रृंखला में वर्गीकृत किया गया है – (i) चित्र (पोर्ट्रेट), (ii) जीवन का अध्ययन, (iii) सार एवं संरचनात्मक रचना, (iv) प्रकृति का अध्ययन एवं परिदृश्य, और (v) मूर्तियां।

एनजीएमए के महानिदेशक श्री अद्वैत चरण गडनायक ने कहा कि इस आभासी यात्रा का आयोजन आधुनिक भारत के एक प्रतिष्ठित कलाकार को श्रद्धांजलि देने के लिए किया जा रहा है जिन्‍हें सबसे महान मूर्तिकारों एवं चित्रकारों में शुमार किया जाता है। इसका आयोजन विशेष रूप से युवा कलाकारों के लिए किया जा रहा है, ताकि इस कलाकार द्वारा आलंकारिक और भावात्मक दोनों ही रूपों या शैली में किए गए इस तरह के बेकरार प्रयोगों की गहरी समझ उनमें विकसित हो सके।

श्री गडनायक ने कहा कि मैं लॉकडाउन अवधि के दौरान इस वर्चुअल टूर को शुरू करने की परिकल्पना करने और इसका विशिष्‍ट स्‍वरूप तैयार एवं विकसित करने के लिए अपने पूरे आईटी प्रकोष्‍ठ के अथक प्रयासों पर गर्व करता हूं, जिसका उद्देश्‍य हमारे सम्मानित आगंतुकों को एनजीएमए के इस प्रतिष्ठित संग्रह से रू-ब-रू होने का अवसर प्रदान करना है।

इस आभासी यात्रा में पांच अलग-अलग श्रेणियों और तीन स्केच पुस्तकों में इस प्रतिष्ठित कलाकार की 520 कलाकृतियों को दर्शाने के अलावा अतीत की स्मृति पर प्रकाश डालने के लिए ‘जीवनस्मृति’ भी शामिल है। इस आभासी यात्रा के आखिर में आगंतुक https://so-ham.in/ramkinkar-baij-journey-through-silent-transformation-and-expressions/ पर एनजीएमए के बैनर तले प्रथम सांस्कृतिक मीडिया प्लेटफॉर्म पर ‘वार्तालाप में शामिल’ हो सकते हैं और इसके साथ ही  आभासी यात्रा की सामग्री (कंटेंट) पर आधारित एक प्रश्नोत्तरी में भाग ले सकते हैं।

आधुनिक भारत के सबसे मौलिक कलाकारों में से एक रामकिंकर बैज एक प्रतिष्ठित मूर्तिकार, चित्रकार और ग्राफिक कलाकार थे। रामकिंकर बैज (1906-1980) का जन्म पश्चिम बंगाल के बांकुरा में एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसकी आर्थिक एवं सामाजिक हैसियत थोड़ी कमजोर थी, लेकिन वह अपने दृढ़संकल्प के बल पर भारतीय कला के सबसे प्रतिष्ठित प्रारंभिक आधुनिकतावादियों में स्‍वयं को शुमार करने में कामयाब रहे थे। वर्ष 1925 में उन्होंने शांतिनिकेतन स्थित कला विद्यालय यानी कला भवन में अपना प्रवेश सुनिश्चित किया और इसके साथ ही नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में अनेक बारीकियां सीखीं। शांतिनिकेतन के मुक्त एवं बौद्धिक माहौल में उनके कलात्मक कौशल और बौद्धिक क्षितिज को नए आयाम मिले तथा इस प्रकार से उन्‍हें अपने ज्ञान में और भी अधिक गहराई एवं जटिलता प्राप्त हुई। कला भवन में अपनी पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद  ही वे संकाय के एक सदस्य बन गए और फि‍र उन्‍होंने नंदलाल बोस और बिनोद बिहारी मुख़र्जी के साथ मिलकर शांतिनिकेतन को आजादी-पूर्व भारत में आधुनिक कला के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रामकिंकर की यादगार मूर्तियां सार्वजनिक कला में प्रमाणित मील का पत्थर हैं। भारतीय कला में सबसे पहले आधुनिकतावादियों में से एक रामकिंकर ने यूरोपीय आधुनिक दृश्य भाषा की शैली को आत्मसात किया, लेकिन इसके बावजूद वह अपने ही भारतीय मूल्‍यों से गहरे रूप से जुड़े हुए थे। उन्‍होंने पहले आलंकारिक शैली एवं बाद में भावात्मक शैली और फि‍र वापस आलंकारिक शैली में पूरी बेकरारी के साथ अनगिनत प्रयोग किए। उनकी थीम मानवतावाद की गहरी समझ और मनुष्य एवं प्रकृति के बीच पारस्‍परिक निर्भरता वाले संबंधों की सहज समझ से जुड़ी होती थीं। अपनी पेंटिंग एवं मूर्तियों दोनों में  ही उन्होंने प्रयोग की सीमाओं को नए स्‍तरों पर पहुंचा दिया और इसके साथ ही नई सामग्री का खुलकर उपयोग किया। उदाहरण के लिए, उनके द्वारा अपरंपरागत सामग्री जैसे कि अपनी यादगार सार्वजनिक मूर्तियों में किए गए सीमेंट कंक्रीट के उपयोग ने कला के क्षेत्र में अपनाई जाने वाली प्रथाओं के लिए एक नई मिसाल पेश की। प्रतिमाओं को बेहतरीन बनाने के लिए उनमें सीमेंट, लेटराइट एवं गारे का उपयोग  और आधुनिक पश्चिमी एवं भारतीय शास्त्रीय-पूर्व मूर्तिकला मूल्यों का समावेश करने वाली अभिनव निजी शैली का इस्‍तेमाल दोनों ही समान रूप से विलक्षण थे।

http://164.100.117.97/WriteReadData/userfiles/image/image003VY1M.jpg

वैसे तो उनकी कलाकृतियों को शुरुआत में लोकप्रिय होने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा, लेकिन धीरे-धीरे ये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही स्‍तरों पर लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब होने लगीं। उन्हें वर्ष 1950 में सैलोन डेस रेलीटिस नूवेल्स और वर्ष 1951 में सैलोन डे माई में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्‍हें एक के बाद एक कई राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया। वर्ष 1970 में भारत सरकार ने उन्हें भारतीय कला में उनके अमूल्‍य योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया। वर्ष 1976 में उन्हें ललित कला अकादमी का एक फेलो बनाया गया। उन्‍हें वर्ष 1976 में विश्व भारती द्वारा मानद डॉक्टरल उपाधि ‘देशोत्तम’ से और वर्ष 1979 में रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय द्वारा मानद डी.लिट से सम्मानित किया गया।

कोलकाता में कुछ समय तक बीमार रहने के बाद रामकिंकर 2 अगस्त, 1980 को अपनी अंतिम एवं अनंत यात्रा पर निकल पड़े।

Related posts

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More