नई दिल्ली: केन्द्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने इशरत जहां के मामले में दायर हलफनामे में कथित रद्दोबदल के संबंध में आज लोकसभा में
प्रक्रिया नियमों के नियम 197 के तहत एक वक्तव्य दिया। गृह मंत्री के वक्तव्य का मूल पाठ निम्नलिखित है :
दिनांक 15/06/2004 को अहमदाबाद पुलिस के साथ एक पुलिस कार्रवाई में जावेद शेख, जीशान जौहर, अमजद अली एवं इशरत जहां नामक चार व्यक्ति मारे गए थे।
2. इशरत जहां की मां सुश्री शामीमा कौसर, ने गुजरात उच्च न्यायालय में 2004 की विशेष आपराधिक आवेदन संख्या 822 दायर की थी, जिसमें उन्होंने, अन्य बातों के साथ-साथ, यह अनुरोध किया था कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो को डी सी बी अहमदाबाद सिटी में पंजीकृत उक्त घटना से संबंधित दिनांक 15/06/2004 की प्राथमिकी (एफ आई आर) संख्या 2004 की 8 की जांच करने के निदेश और भारत सरकार को याचिकाकर्त्ता को मुआवज़ा मुहैया कराने के निदेश दिये जाएं। इस याचिका के प्रतिवादी भारत सरकार, गुजरात सरकार एवं अन्य थे।
3. भारत सरकार की ओर से पहला हलफनामा तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री के द्वारा अनुमोदित किये जाने के बाद दिनांक 06/08/2009 को गृह मंत्रालय के तत्कालीन अवर सचिव द्वारा माननीय गुजरात उच्च न्यायालय में दाखिल किया गया था। उक्त हलफनामे में यह उल्लेख किया गया था कि भारत सरकार को प्राप्त विशिष्ट आसूचनाओं से यह पता चला कि लश्करे-तैयबा (एल ई टी) गुजरात राज्य सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की योजना बना रहा था। ये भी उल्लेख किया गया था कि भारत सरकार को इस आसूचना के बारे में भी जानकारी थी कि एल ई टी, कुछेक शीर्ष स्तर के राष्ट्रीय और राज्य के नेताओं की हत्या की योजना भी बना रहा था और एल ई टी ने इस बाबत भारत स्थित काडरों को उनकी गतिविधियों पर नजर रखने का काम सौंपा था। यह भी उल्लेख किया गया था कि भारत सरकार को पता चला था कि एल ई टी ने विशिष्ट आतंकी कार्रवाई के लिए गुजरात में पाकिस्तानी एल ई टी आतंकवादियों सहित अपने काडरों को प्रवेश कराया और यह कि भारत सरकार और इसकी एजेंसियां ऐसी जानकारियों को नियमित रूप से संबंधित राज्य सरकारों के साथ साझा कर रहीं थीं। उक्त हलफनामे में जावेद शेख, अमजद अली, जीशान जौहर तथा इशरत जहां की पृष्ठभूमि तथा इनके संपर्क सूत्रों तथा याचिकाकर्त्ता एवं श्री एम.आर. गोपीनाथ पिल्लई, जावेद शेख के पिता के प्राकथन में अंतरविरोधों, जो कि उन्होंने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपनी याचिका (सी आर) संख्या 63/2007 के तहत दाखिल की थी, का भी उल्लेख किया गया था, जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया था लेकिन पिल्लई को माननीय गुजरात उच्च न्यायालय जाने की स्वतंत्रता प्रदान की गई थी। जहां तक केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा जांच किये जाने संबंधी याचिकाकर्त्ता की प्रार्थना का सवाल है, यह प्रस्तुत किया गया था कि केन्द्र सरकार के पास उक्त मामले की केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा जांच कराए जाने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है और न ही केन्द्र सरकार वर्तमान मामले को केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा जांच किए जाने के लिए उपयुक्त मानती है।
4. इसके बाद, दिनांक 29/09/2009 को पुन: तत्कालीन अवर सचिव, गृह मंत्रालय द्वारा गुजरात उच्च न्यायालय में एस सी ए संख्या 822/2004 के तहत भारत सरकार की ओर से एक और हलफनामा, जो कि विद्वान एटॉर्नी जनरल द्वारा पुनरीक्षित किया गया प्रतीत होता है एवं केन्द्रीय गृह मंत्री द्वारा अनुमोदित किया गया था, दायर किया गया था। संबंधित फाइल की नोटिंग में दिनांक 29/09/2009 के हलफनामे को दाखिल किये जाने का कोई कारण उल्लेखित नहीं है। हलफनामे में यह उल्लेख किया गया है कि आगे का हलफनामा याचिका से संबंधित मुद्दों से जुड़े बाद के कुछ परिवर्धनों के विचार से तथा भारत सरकार द्वारा दायर हलफनामे (दिनांक 06/08/2009) के संबंध में अभिव्यक्त शंकाओं को स्पष्ट करने के साथ-साथ हलफनामे के हिस्सों की गलत व्याख्या करने की कोशिशों का खंडन करने हेतु तैयार किया गया था।
5. इसके आगे के हलफ़नामे में यह कहा गया कि आसूचना इनपुट निर्णायक साक्ष्य नहीं है तथा ऐसे इनपुट पर कार्रवाई करना राज्य सरकार और राज्य पुलिस का कार्य है। इसके आगे यह भी कहा गया कि केन्द्र सरकार इस प्रकार की कार्रवाई से किसी प्रकार संबंधित नहीं है तथा वह किसी भी प्रकार की अनौचित्यपूर्ण अथवा अतिरेक कार्रवाई का समर्थन अथवा इसकी अनदेखी नहीं करती। यह भी उल्लेख किया गया कि पहले हलफ़नामें का मुख्य उद्देश्य शमीमा कौसर तथा श्री पिल्लई द्वारा दायर याचिकाओं में प्रस्तुत किए गए अभिवचनों में अंतर्विरोध को उजागर करना था। यह भी प्रस्तुत किया गया कि पहले हलफ़नामें के दायर होते समय केन्द्रीय सरकार इस तथ्य से परिचित नहीं थी कि मृतकों के संबंध में धारा 176 के अंतर्गत एक न्यायिक जांच चल रही है। इस प्रकार एवं अन्यथा केन्द्रीय सरकार का गुजरात पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई के गुण-दोष से कोई सरोकार नहीं है तथा पहले हलफ़नामें में जो कुछ भी कहा गया, उसका उद्देश्य राज्य पुलिस की कार्रवाई का समर्थन करना अथवा उसे औचित्यपूर्ण ठहराना नहीं है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि भारत सरकार को इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी, यदि तथ्यों पर यथाविधि विचार करने के पश्चात् यह पाया जाता है कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा एक जांच अथवा अन्यथा की जानी चाहिए।
6. इसके पश्चात् माननीय गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा घटना की जांच का आदेश पहले न्यायालय द्वारा नियुक्त एक एसआईटी द्वारा तथा इसके पश्चात केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा दिनांक 01.12.2011 के एक निर्णय द्वारा दिया गया। केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने छानबीन के बाद पहली चार्जशीट 3.07.2013 को गुजरात के सात पुलिस-कर्मियों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302, 364, 368, 346, 120-ख, 201, 203, 204, 217, 218 तथा शस्त्र अधिनियम की धारा 25, 27 के अंतर्गत दर्ज करवाई। तदुपरान्त, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने दिनांक 06.02.2014 को 4 आई बी कार्मिकों के विरुद्ध आई पी सी की धारा 120ख के साथ पठित 302, 346, 364, 365 और 368 तथा आयुध अधिनियम की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत अनुपूरक आरोप पत्र दायर किया। तथापि, गृह मंत्रालय ने मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के बाद, इस मामले को आई.बी. के अधिकारियो पर अभियोजन चलाने की संस्तुति प्रदान करने के लिए उपयुक्त नहीं पाया। यह मामला विशेष न्यायाधीश, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो, अहमदाबाद के न्यायालय में न्यायाधीन है।
7. इसके अतिरिक्त, 26/11 के मुम्बई आतंकी हमले के मामले में अभियुक्त, डेविड कॉलमैन हेडली ने न्यायालय द्वारा माफी देने की शर्त के अधीन सत्र मामला संख्या 198/2013 में सरकारी गवाह बनने की इच्छा जाहिर की। सक्षम न्यायाधिकार क्षेत्र के मुम्बई स्थित न्यायालय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 307 के अंतर्गत डेविड कॉलमैन हेडली को माफी प्रदान की। इसके बाद 26/11 मुम्बई आतंकी हमले से संबंधित विचारण मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा हेडली से जिरह की गई। मुम्बई न्यायालय में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से साक्ष्य के दौरान डेविड कॉलमैन हेडली ने उल्लेख किया कि उसे अपने अपराध-सह-कर्मियों से पता चला था कि भारत में एक ‘’अभियान विफल’’ रहा, जिसमें पुलिस के साथ मुठभेड़ में एक महिला आतंकी मारी गई। सरकारी अभियोजन पक्ष ने उसे 3 महिला आतंकियों के नामों में से उक्त महिला आतंकी की पहचान करने का विकल्प दिया जिसके बाद हेडली ने इशरत जहान की पहचान संबंधित आतंकी के रूप में की।