1. मुझे इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधिकरण के 150 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित इस समारोह में मौजूद विशिष्ट जजों, गणमान्य
न्यायविदों, बार सदस्यों और अन्य विशिष्ट लोगों के साथ शामिल होकर खुशी हो रही है।
2. यह उच्च न्यायालय 150 साल पहले अस्तित्व में आया था। 17 मार्च, 2016 को इसने अपनी स्थापना के 150 साल पूरे कर लिए। इस समारोह को मनाने के दोहरे उद्देश्य हैं। यह न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के सबसे बड़े न्याय मंदिरों में से एक है।
3. इलाहाबाद हाई कोर्ट की स्थापना उत्तर पश्चिम प्रांत में हाई कोर्ट के न्यायाधिकरण के तौर पर एक रॉयल चार्टर के तहत हुई थी। इसकी स्थापना 17 मार्च, 1866 में हुई थी और शुरू में आगरा में इसकी एक पीठ थी। बाद में 1869 में उच्च न्यायालय इलाहाबाद में स्थांनातरित हो गया।
4. इतने वर्षों में हाई कोर्ट ने एक संस्थान के तौर पर उच्च मानक और आदर्श स्थापित किए हैं। इसकी पीठ और बार दोनों को बौद्धिक सक्षमता और विद्वता के लिए जाना जाता रहा है।
5. बार के सदस्यों ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान किया था। इनमें पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित मोतीलाल नेहरू, सर तेजबहादुर सप्रू, पुरुषोत्तम दास टंडन और पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे लोग शामिल हैं। प्रसिद्ध चौरी-चौरा और मेरठ षड्यंत्र केस जैसे कुछ प्रसिद्ध मामले हैं, जिनमें इस कोर्ट ने यादगार फैसले सुनाए। ये फैसले ऐसे थे, जिन्होंने आजादी की अवधारणा का समर्थन किया था।
6. आज, इलाहाबाद हाई कोर्ट का न्याय क्षेत्र भारत में सबसे बड़ा है। इसके दायरे में भारत की आबादी का छठवां हिस्सा आता है। छह जजों से काम शुरू करने वाले इस हाई कोर्ट में अब 160 जजों की क्षमता है। इस तरह यह इसे भारत का सबसे बड़ा कोर्ट बनाता है। 1866 में यहां के बार में 6 वकील थे। हाई कोर्ट के रजिस्टरी के मुताबिक आज यह संख्या 15000 तक पहुंच चुकी है। इस कोर्ट से निकले समृद्ध न्यायशास्त्र ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के लोगों को लाभ पहुंचाया है।
7. इलाहाबाद हाई कोर्ट के पांच जज भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद की शोभा बढ़ा चुके हैं। इनके नाम हैं सर्वश्री- के.एन. वांचू, मिर्जा हमीदुल्ला बेग, रघुनंदन स्वरूप पाठक, कमल नारायण सिंह, विश्वेश्वरनाथ खरे। मुझे यह जानकार बेहद खुशी है के मेरे विशिष्ट पूर्ववर्तियों में से एक डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1954 में हाई कोर्ट की एक नई विंग खोली थे। राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस उच्च न्यायालय के सौ साल पूरे होने पर आयोजित समारोह में हिस्सा लिया था। राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने इस उच्च न्यायालय के 125 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह में हिस्सा लिया था।
8. भारत में न्यायपालिका ने आजादी के समय से ही देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत बनाने और इसे बरकरार रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत के संविधान में उच्च न्यायालयों की अद्वितीय जगह है। ये केवल लोगों के अधिकारों और आजादी के ही अभिभावक नहीं हैं बल्कि इन पर आर्थिक और अन्य किसी वजह से न्याय से वंचित हर नागरिक तक न्याय पहुंचाने की महती जिम्मेदारी है। उच्च न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना है कि इन कारणों से देश का कोई नागरिक न्याय से वंचित न रह जाए।
9. लोकतंत्र के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक न्यायपालिका संविधान और कानून का व्याख्याता है। इसे कानून का दुरुपयोग करने वाले लोगों के खिलाफ त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करके सामाजिक व्यवस्था को कायम रखना होता है। कानून के राज का समर्थक और आजादी की रोशनी सुनिश्चित करने वाली न्यायपालिका बेहद पवित्र है। लोगों का न्यायपालिका में जो विश्वास है और सम्मान है, उसे बरकरार रखा जाना चाहिए। लोगों को न्याय देने का मतलब यह है कि यह उन तक पहुंचे। उन्हें सस्ता और त्वरित न्याय मिले। हालांकि भारतीय न्यायपालिका की कई शक्तियां हैं लेकिन अभी भी इसे लोगों को त्वरित और सस्ते न्याय की आकांक्षा को पूरा करना है।
10. हमारे न्यायालयों पर आज लंबित मुकदमों का भारी बोझ है। पूरे देश के विभिन्न न्यायालयों में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं। इनमें से 24 उच्च न्यायालयों में 38.5 लाख मुकदमे लंबित हैं। हालांकि उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों में थोड़ी कमी आई है। 2014 में इन न्यायालयों में 41.5 लाख मामले लंबित थे। लेकिन ये मामले 2015 में घट कर 38.5 लाख हो गए। उच्च न्यायालयों के पास 1056 जजों की मंजूर संख्या है लेकिन 1 मार्च, 2016 को इनमें से सिर्फ 591 ही काम कर रहे थे। इस तरह जिला और निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों की जो मंजूर संख्या 20500 है। इनमें से अभी सिर्फ 16,000 न्यायिक अधिकारी ही काम कर रहे हैं।
11. वर्तमान में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चीफ जस्टिस को मिला कर 71 जज हैं। जबकि इसकी मंजूर क्षमता 160 जजों की है। फरवरी, 2016 के अनुसार इस उच्च न्यायालय में 9,11,908 मामले लंबित हैं। वर्ष 2014 की तुलना में इसकी कमी आई है। वर्ष 2014 में इस उच्च न्यायालय में 10.1 लाख मामले लंबित थे। उत्तर प्रदेश की निचली अदालतों में 29.02.2016 तक 57,06,103 मामले लंबित थे। इनमें से 42,17,089 (29.02.2016) मामले आपराधिक थे।
12. कहा जाता है कि न्याय में देरी करना न्याय से वंचित करना है। मुझे पूरा विश्वास है केंद्र सरकार और राज्य सरकार लंबित मामलों का बोझ कम करने में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा की जा रही कोशिशों में पूरी मदद करेगी।
13. अदालतों की संख्या, जजों और न्यायिक अधिकारियों की संख्या में बढ़ोतरी करना इस दिशा में पहला कदम है ताकि समय से न्याय मुहैया कराने का उद्देश्य पूरा हो सके। सरकार और न्यायपालिका मिल कर इस दिशा में पहल कर रही हैं। वे उच्च न्यायालयों और जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में जजों की संख्या बढ़ाने की कोशिश कर रही है। इन मंजूर पदों को तुरंत भरे जाने की जरूरत है ताकि समय पर मुकदमों के निपटारे के लिए जरूरी जजों और न्याय अधिकारियों की कमी पूरी हो सके।
14. जजों की संख्या बढ़ाने के साथ ही न्यायिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना भी एक प्राथमिकता है। मुझे यह जानकर खुशी है कि केंद्र सरकार इस तरह के इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए केंद्र प्रायोजित स्कीम शुरू की है इसके तहत राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों को पिछले पांच साल में 3694 करोड़ रुपये मुहैया कराए हैं। इसमें राज्यों का इन्फ्रास्ट्रक्चर मिल जाएगा। इसके तहत नए अदालत परिसर बनेंगे। साथ ही न्यायिक अधिकारियों के लिए आवासीय परिसरों का भी निर्माण होगा।
15. यह जरूरी है कि हम न्यायिक प्रणाली में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करें। इस दिशा में केंद्र समेकित मिशन मोड परियोजना के तहत जिला और निचली अदालतो में ई-कोर्ट के जरिये कंप्यूटरीकरण और की प्रक्रिया चल रही है। ज्यादातर अदालतें कंप्यूटरीकरण की तरफ बढ़ चले हैं। मैं आगे आने वाले उस वक्त के लिए उत्सुक हूं जो देश की सभी अदालतें नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड से जुड़ जाएंगी। मुझे इस बात की खास खुशी है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र स्थापित किया गया है। एक साल में इसमें एक करोड़ फैसलों के 50 करोड़ पेजों को डिजिटलकरण किया जा चुका है।
16. पिछले कुछ दशकों में हमने अदालतों में दायर मामलों में काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखी है। सरकार न्यायिक प्रणाली को सरल बनाने के प्रति प्रतिबद्ध है। इसमें बेकार और पुराने कानूनों को हटाना शामिल है। इसमें ऐसे मामले कम हो सकेंगे, जिनमें सरकार प्रतिवादी है।