नई दिल्ली: उप राष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने आज पड़ोस में स्थित देशों सहित अन्य देशों को भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी से बचने की सलाह दी और जोर देकर कहा कि जम्मू व कश्मीर अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का फैसला देश की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता की रक्षा के हित में लिया गया है।
पूर्व विदेश मंत्री की पहली पुण्य तिथि के अवसर पर पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित पहला श्रीमती सुषमा स्वराज स्मारक व्याख्यान देते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि भारत एक संसदीय लोकतंत्र है और अनुच्छेद 370 को खत्म करने का फैसला संसद में व्यापक विचार विमर्श और अधिकांश सदस्यों के समर्थन से लिया गया है।
श्री नायडू ने कहा कि दूसरे राष्ट्रों को अन्य देशों के मामलों में दखल देने के बजाय अपनी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।
देहांत से पहले श्रीमती सुषमा स्वराज द्वारा अनुच्छेद 370 पर प्रदर्शित की गईं भावनाओं का उल्लेख करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि विदेश मंत्री के रूप में वह काफी कुशलता से और मृदु और शांत तरीके से भारत की स्थिति स्पष्ट किया करती थीं। साथ ही वह बेहद दृढ़ता से भारत का पक्ष रखा करती थीं।
श्रीमती सुषमा स्वराज को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उप राष्ट्रपति ने उन्हें एक आदर्श भारतीय महिला बताया। वह एक कुशल प्रशासक थीं और उन्होंने विभिन्न पदों और दायित्वों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी, जो उन्होंने ग्रहण किए।
उपराष्ट्रपति ने युवा राजनेताओं से श्रीमती सुषमा जी को अपना अनुकरणीय आदर्श बनाने और उनके गुणों का अनुसरण करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि वह एक बेहतरीन इंसान थीं, जो मित्रों, सहयोगियों और जन सामान्य के किसी भी अनुरोध पर तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिए सदैव तत्पर रहती थीं। उन्होंने कहा, “लोकसभा के लिए सात बार और विधानसभा के लिए तीन बार जीत से जनता के बीच उनकी लोकप्रियता का पता चलता है।”
उनकी खूबियों का उल्लेख करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि उनके चुटीले व्यंग्य, विदेश मंत्री के रूप में उनकी आत्मीयता, मुसीबत में फंसे लोगों के प्रति सहृदयता, उनकी समस्याओं के समाधान के लिए तत्परता, ये सब सोशल मीडिया पर दिखता था। उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें करोड़ों लोगों का स्नेह और सम्मान प्राप्त था, हाल के वर्षों में वे देश की सर्वाधिक लोकप्रिय विदेश मंत्रियों में से थीं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सुषमा जी प्रखर वक्ता थीं और भाषा की शुचिता, शब्दों का चयन, विचारों की स्पष्टता की वजह से वह खासी लोकप्रिय हो गई थीं।
उपराष्ट्रपति ने एक घटना को याद किया, जब 1996 में संसद में एक बहस के दौरान जिस प्रभावी ढंग से उन्होंने “भारतीयता” को परिभाषित किया, उससे उनके विचारों की गभीरता और उनकी समृद्ध भाषा तथा प्रभावी भाषण शैली का पता चलता है। सुषमा स्वराज को भारतीय संस्कारों की प्रतिमूर्ति बताते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनमें सनातन भारतीय संस्कारों और आधुनिक विचारों का अद्भुत संगम था। वह एक प्रखर राष्ट्रवादी थीं।
व्यक्तिगत संस्मरणों को याद करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनके लिए सुषमा जी परिवार की सदस्य ही थीं। उन्होंने कहा, “वे हर रक्षा बंधन पर राखी बांधने के लिए हमारे घर पर आती थीं। इस वर्ष रक्षा बन्धन पर अपने संबंधों की उसी आत्मीयता और स्नेह को याद कर मैं भावुक हो गया।”
उपराष्ट्रपति ने श्रीमती सुषमा स्वराज की स्मृति में वार्षिक व्याख्यान आयोजित करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय एलुमनी एसोसिएशन और विश्वविद्यालय के विधि संकाय की सराहना की। उन्होंने कहा कि स्मृति व्याख्यान मात्र श्रद्धांजलि अर्पित करने तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि युवा राजनेताओं और राजनैतिक कार्यकर्ताओं को ऐसे महान नेताओं के व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रेरणा लेकर, उनका अनुसरण करना चाहिए।
इस अवसर पर पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति राज कुमार, श्रीमती सुषमा स्वराज की पुत्री सुश्री बांसुरी स्वराज और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
भाषण का पूर्व विवरण निम्नलिखित है :
हम लोग श्रीमती सुषमा स्वराज याद करने और श्रद्धांजलि देने के लिए आज यहां एकत्रित हुए हैं, मेरे लिए अभी तक इस वास्तविकता को स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है कि उन्हें गुजरे हुए एक साल हो गया है। वह मेरी प्यारी बहिन थीं, जो हर रक्षा बंधन को मेरी कलाई पर राखी बांधने के लिए मेरे घर आया करती थीं। अपने आत्मीय संबंध को याद करके मैं कुछ दिन पहले काफी भावुक हो गया था, जब कुछ दिन पहले देश त्योहार मना रहा था।
सुषमा जी हमारे परिवार की एक सदस्य की तरह थीं। जब हम दिल्ली में नए थे, तब हम उनसे अक्सर परामर्श और सहायता लिया करते थे। वह बेहतरीन इंसान थीं, जो हमेशा ही किसी भी अनुरोध पर विचार करने और प्रतिक्रिया देने को तत्पर रहती थीं। वास्तव में, चाहे दोस्त, समर्थक और आम आदमी कोई भी हो, सभी के लिए उनका व्यवहार समान ही था।
जब सुषमा जी विदेश मंत्री थीं तो उनकी वाक्-पटुता, मानवीय स्वभाव और किसी भी समस्या के समाधान में उनकी तत्परता सोशल मीडिया पर भी सुर्खियों में रहती थी। उन्होंने खुद को करोड़ों देशवासियों का प्रिय बना लिया था और हाल के दौर में सबसे ज्यादा लोकप्रिय भारतीय विदेश मंत्रियों में से एक बन गई थीं।
कैसा संयोग है, जिस पंजाब विश्विद्यालय ने देश को सुषमा स्वराज जी जैसा यशस्वी नेता दिया, मुझे उस विश्विद्यालय के चांसलर होने का गौरव प्राप्त हुआ है। ऐसे मेधावी विद्यार्थियों से ही किसी शिक्षा संस्थान की कीर्ति बढ़ती है। सुषमा जी की भाषा और भाषणों के तो हम सभी मुरीद रहे। भाषा की शुद्धता, शब्दों का चयन, विचारों में निष्ठा, अकाट्य तर्क और तथ्य, उनको एक लोकप्रिय वक्ता बना देते थे। मुझे बताया गया कि भाषण कला का यह हुनर भी उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय की भाषण प्रतियोगिताओं में ही सीखा, जिन्हें वे हर वर्ष जीतती रहीं। इस विश्वविद्यालय से जो सीखा, उस हुनर का उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पटल पर प्रभावी प्रयोग भी किया। देश के लिए और अपने इस संस्थान के लिए ख्याति अर्जित की।
उन्होंने बेहद कम उम्र में गतिशील नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई थी और सिर्फ 25 साल की उम्र में ही हरियाणा में कैबिनेट मंत्री बन गई थीं। उन्होंने अपने शानदार राजनीतिक जीवन में कई काम पहली बार किए- वह अपने दल में पहली महिला महासचिव बनीं, वह दिल्ली की पहली मुख्यमंत्री बनी थीं।
वह लोकसभा के लिए सात बार और विधानसभा के लिए तीन बार निर्वाचित हुईं, जिससे जनता के बीच उनकी लोकप्रियता का पता चलता है। वह प्रखर राष्ट्रवादी थीं औरहमेशा ही उन्होंने स्पष्टता के साथ अपने विचारों को रखा। 1996 में लोकसभा में एक बहस के दौरान जिस प्रभावी ढंग से उन्होंने “भारतीयता” को परिभाषित किया, उसकी यादें आज भी उनके मन में तरोजाता हैं। वास्तव में, वह एक बेहतरीन वक्ता थीं और हर कोई उन्हें ध्यान से सुना करता था।
सुषमा जी की हिंदी सुनने और सभी के समझने लायक होती थी। उनके शब्दों का चयन शुद्ध होता था। फिर भी उनका भाषण इतना सहज और सरल लगता था कि श्रोता मंत्र मुग्ध होकर सुनते थे। संस्कृत के प्रति उनका विशेष आग्रह होता, वे अपनी शपथ संस्कृत में ही लेती थी। हरियाणा की निवासी होने की वजह से हरियाणवी हिंदी पर उनका अधिकार होना तो स्वाभाविक था, लेकिन कर्नाटक में चुनाव लड़ते समय कन्नड़ भाषा में उनके धारा प्रवाह भाषण, उनको सचमुच बहु भाषी बनाते थे। भारतीय भाषाओं के प्रति उनका अनुराग हम सबके लिए अनुकरणीय है। कोई भी भाषा कभी भी कमतर हो ही नहीं सकती, क्योंकि वो हमारा अपनी संस्कृति और संस्कारों से परिचय कराती है। भाषा, राजनैतिक विचारों और संसदीय आदर्शों के प्रति उनकी निष्ठा के कारण ही भारत की संसद ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान प्रदान किया था।
सुषमा जी को भारतीय संस्कृति की एक प्रतीक के रूप में देखा जाता था। वह आधुनिक सोच और पारंपरिक मूल्यों का मिला जुला रूप थीं। वह वरिष्ठ और बुजुर्गों के प्रति हमेशा ही सम्मान प्रदर्शित करती थीं।
वह सबसे ज्यादा मिलनसार भारतीय राजनेताओं में से एक थीं और सभी के साथ गर्मजोशी और स्नेह के साथ पेश आती थीं। वास्तव में, हर क्षेत्र में उन्हें मिली प्रशंसा उनके मित्रवत् व्यवहार का प्रमाण है।
सुषमा जी एक कुशल प्रशासक थीं और उन्होंने हर उस पद पर कार्य के दौरान अमिट छाप छोड़ी, जो उन्होंने संभाले थे। उदाहरण के लिए, सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने उद्योग का दर्जा देने की फिल्म क्षेत्र की बहु प्रतीक्षित मांग को स्वीकार कर लिया था।
आज हम उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं, ऐसे में मैं युवा राजनेताओं से उन्हें रोल मॉडल के तौर देखने और उनकी खूबियों को अपनाने का आह्वान करता हूं।
पंजाब विश्वविद्यालय की पूर्व छात्र रहीं सुषमा जी अपने आप में एक संस्थान थीं और देश उनकी तमाम उपलब्धियों तथा राष्ट्र निर्माण में उनके अंशदान पर गर्व करता है। मैं हर साल उनके सम्मान में एक स्मारक व्याख्यान के आयोजन का फैसला करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के अल्युमनी एसोसिएशन और विधि संकाय की सराहना करता हूं। कृपया याद रखिए कि स्मारक व्याख्यान या स्मृति समारोह का उद्देश्य सिर्फ श्रद्धांजलि देना नहीं, बल्कि महान पुरुषों और महिलाओं की खूबियों को अपनाने के लिए युवा पीढ़ी को प्रेरित करना भी है। सुषमा जी दवारा अपनाए गए मूल्य और आदर्श हर दौर में हर किसी को प्रेरित करते रहेंगे।