भारत के उपराष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडू ने प्रकृति के संरक्षण को एक जन-आंदोलन बनाने का आह्वान किया और सभी नागरिकों, विशेषकर युवाओं, से इसे सक्रिय रूप से अपना ध्येय बनाने की अपील की।
हिमालयन डे के अवसर पर एक वेबिनार में बोलते हुए, उपराष्ट्रपति ने हमें अपने विकास के प्रतिमान पर इस तरह से पुनर्विचार करने का आह्वान किया ताकि मानव एवं प्रकृति का सह-अस्तित्व हो और दोनों एक साथ पल्लवित हो सकें।
श्री नायडू ने आगे कहा कि हिमालय एक अमूल्य खजाना है। उन्होंने इसकी सुरक्षा एवं संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान पर आधारित एक अखिल- हिमालयी विकास की रणनीति बनाने का भी आह्वान किया।
कमजोर हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष गिरावट के खतरे की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उपराष्ट्रपति ने जोर दिया कि पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि लगातार आ रही प्राकृतिक आपदाएं प्रकृति के प्रति हमारी लापरवाही का परिणाम हैं।
हिमालय के पारिस्थितिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इन पहाड़ों की अनुपस्थिति में, भारत एक सूखा रेगिस्तान होता।
उन्होंने कहा कि ये पर्वत श्रृंखलाएं न केवल हमारे देश को मध्य एशिया से आने वाली ठंडी एवं शुष्क हवाओं से बचाती हैं, बल्कि मॉनसूनी हवाओं के समक्ष एक बाधा के रूप में कार्य करते हुए उत्तरी भारत की अधिकांश वर्षा का कारक बनती हैं।
हिमालय के पारिस्थितिकी– तंत्र के योगदान पर और आगे प्रकाश डालते हुए श्री नायडू ने कहा कि 54,000 से अधिक ग्लेशियर के साथ ये पहाड़ एशिया की 10 प्रमुख नदी- प्रणालियों के स्रोत हैं, जो लगभग आधी मानव आबादी की एक जीवन रेखा है।
उन्होंने हिमालय की अपार पनबिजली क्षमता की ओर भी ध्यान आकर्षित किया, जो इसे स्वच्छ ऊर्जा का एक विश्वसनीय स्रोत बना सकता है और इस प्रकार कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की बढ़ती दर पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इससे एक अरब से अधिक लोगों, जो पानी के लिए इन पर निर्भर हैं, के पीने, सिंचाई एवं ऊर्जा की जरूरतों पर गंभीर असर पड़ेगा।
उन्होंने चेतवानी के लहजे में कहा, “हम प्रकृति की इस तरह से अवहेलना करना जारी नहीं रख सकते। अगर हम प्रकृति की उपेक्षा या उसका अति-शोषण करते हैं, तो हम अपने भविष्य को खतरे में डाल रहे हैं।”
प्रकृति के संरक्षण को हमारी ‘संस्कृति’ बताते हुए उन्होंने प्रकृति का सम्मान करने तथा बेहतर भविष्य के लिए इस संस्कृति का संरक्षण करने की अपील की।
हिमालय की पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए ‘नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग द हिमालयन इकोसिस्टम’ एवं ‘सिक्योर हिमालय’ जैसे विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के बारे में बात करते हुए श्री नायडू ने जोर देकर कहा कि हमारा विकासात्मक दृष्टिकोण सतत होना चाहिए।
अपनी कृषि एवं बुनियादी जरूरतों के लिए स्थानीय समुदाय के जंगलों पर निर्भर रहने के तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उपराष्ट्रपति ने एक ऐसा विकास मॉडल तैयार करने का आह्वान किया जो आर्थिक गतिविधियों एवं इलाके के प्राचीन वातावरण के बीच संतुलन बनाए रखे।
उन्होंने कहा कि यह न केवल हिमालयी राज्यों बल्कि सभी उत्तर भारतीय राज्यों के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो वहां से निकलने वाली नदियों पर निर्भर हैं।
नाजुक पारिस्थितिकी में जैविक कृषि सबसे अच्छा उपाय बताते हुए उपराष्ट्रपति ने सिक्किम, मेघालय एवं उत्तराखंड जैसे राज्यों की सराहना की, जिन्होंने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है।
उन्होंने सरकारों, वैज्ञानिकों एवं विश्वविद्यालयों से जैविक खेती को अपनाने में किसानों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान खोजने की अपील की।
पर्यटन को हिमालय क्षेत्र के आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण मार्ग बताते हुए श्री नायडू ने पर्यटन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र पर आधारित एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया, जो दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ हो।
हिमालय के पारिस्थितिक एवं आध्यात्मिक महत्व की ओर इशारा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि पर्यटक अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ पवित्र तीर्थयात्रा के लिए इन शानदार पहाड़ों पर आते हैं।
उन्होंने अधिकांश हिमालयी पर्यटक स्थलों को प्रभावित करने वाले प्रदूषण, कूड़े एवं ठोस कचरे की समस्या के बारे में पर्यटकों तथा स्थानीय लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “लोगों को यह समझने की जरूरत है कि अगर पर्यावरण में गिरावट होती है, तो पर्यटन भी प्रभावित होगा।”
इस अवसर पर, उन्हें शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ द्वारा लिखित पुस्तक “सनद में हिमालय” नामक पुस्तक की प्रति भी आभासी रूप से भेंट की गई।
उपराष्ट्रपति ने श्री अनिल प्रकाश जोशी जी जैसे हरित कार्यकर्ताओं के प्रयासों की भी सराहना की, जो कृषि एवं इस इलाके के लोगों की आजीविका के लिए पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ प्रौद्योगिकियों के विकास की दिशा में काम कर रहे हैं।
इस वेबिनार में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री जितेन्द्र सिंह, युवा मामले एवं खेल राज्य मंत्री श्री किरेन रिजिजू,, वित्त एवं कॉर्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री श्री अनुराग सिंह ठाकुर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजीत डोभाल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार श्री विजय राघवन, नीति आयोग के उपाध्यक्ष श्री राजीव कुमार, हिमालयन पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण के संस्थापक डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, विज्ञान विभाग के सचिव श्री आशुतोष शर्मा, जैव-प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव सुश्री रेणु स्वरूप समेत कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।
उपराष्ट्रपति के भाषण का पूरा पाठ निम्नलिखित है: (कृपया अनुलग्नक देखें)