नई दिल्ली: कार्बन उर्त्सजन में कमी और सतत विकास की भारत की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर ने आज कहा कि भारत 100 अन्य
देशों के साथ 22 अप्रैल को वैश्विक जलवायु समझौते सीओपी 21 की अभिपुष्टि करेगा। सीओपी 21 की अभिपुष्टि न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित होने वाले एक उच्च स्तरीय हस्ताक्षर समारोह के दौरान की जाएगी। इस समझौते पर दिसंबर, 2015 में पेरिस में चर्चा की गई थी और वैश्विक गर्मी को कम करते हुए दो डिग्री सेल्सियस नीचे लाने की दिशा में एक अंतरराष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की गई थी।
मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ‘सीओपी 21-सहक्रिया निर्माण, कार्य प्रक्रियाओं को आकार’ संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री जावडेकर ने कहा कि सभी देशों ने अपनी अलग-अलग जिम्मेदारियों के साथ एक समान हरित मार्ग पर चलने का फैसला किया है। उन्होंने पेरिस समझौते को बहुपक्षवाद की जीत बताया और इसके माध्यम से भारत की अवधारणा की सही छवि सामने आने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि भारत के दृष्टिकोण को हमेशा से अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में कम आंका गया, लेकिन पेरिस में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जलवायु न्याय की अवधारणा पेश करते हुए सतत विकास का सकारात्मक संदेश दिया।
श्री जावडेकर ने कहा कि विकसित देशों के द्वारा पिछले 150 वर्षों में अनियंत्रित कार्बन उर्त्सजन के कारण तापमान में 1 डिग्री की वृद्धि जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता है। उन्होंने कहा कि इस कार्बन उर्त्सजन में अमेरिका का संचयी योगदान 30 प्रतिशत, यूरोप, कनाडा और अन्य विकसित देशों का 50 प्रतिशत और चीन का 10 प्रतिशत जबकि भारत का मात्र 3 प्रतिशत है। श्री जावडेकर ने कहा कि हालांकि भारत इस समस्या का हिस्सा नहीं है, लेकिन वह इसके समाधान का हिस्सा होना चाहता है। उन्होंने कहा कि हमारी प्रतिबद्धता सरकार द्वारा अपनाए जा रहे हर कार्यक्रम में परिलक्षित होती है।
उन्होंने कहा कि भारत ने कोयले पर प्रति टन 400 रुपये हरित उपकर लगाकर कार्बन को कम करने की दिशा में जीवाष्म ईंधन के उपयोग को घटाने के लिए पूर्व-सक्रिय उपाय अपना लिए हैं। उन्होंने कहा कि यदि विकसित दुनिया भी भारत के उदाहरण का अनुसरण करती है और कोयले पर उच्चतर कर लगाती है तो स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए अरबों डॉलर प्राप्त होंगे।
श्री जावडेकर ने कहा कि ‘हरित भारत’ पहल के लिए प्रस्तावित प्रतिपूरक वनीकरण कोष विधेयक 2015 से 40,000 करोड़ रुपये मिलेंगे। संसदीय स्थायी समिति को भेज दिये गये इस विधेयक के बजट सत्र की दूसरी छमाही में पारित हो जाने की संभावना है। सीएएफ के अंतर्गत देशभर में वनीकरण कार्यक्रमों को चलाने के लिए और मौजूदा वनों में वृक्षों की संख्या बढ़ाते हुए संघनता को बढ़ाने के लिए राज्यों को ये कोष उपलब्ध कराया जाएगा।
मंत्री महोदय ने जलवायु परिवर्तन को रोकने एवं सतत विकास के उद्देश्य से अपनाए जाने वाले उपायों जैसे वाहनों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारत 6 उर्त्सजन मानकों की ओर बढ़ना, अपशिष्ट प्रबंधन पर नीतियां, स्वच्छ भारत पहल, गंगा संरक्षण आदि आदि की भी जानकारी दी।
केंद्रीय कोयला, विद्युत, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत ने 2022 तक 20,000 मेगावाट सौर विद्युत उत्पादन की परिकल्पना के सौर ऊर्जा अभियान के लक्ष्य को तय करते हुए विश्व के सबसे बड़े अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम का शुभारंभ किया है। श्री गोयल ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री ने इस लक्ष्य को और आगे बढ़ाते हुए 1,00,000 मेगावाट कर दिया है। उन्होंने कहा कि उनका मंत्रालय सौर ऊर्जा परियोजनाओं के 19,000 मेगावाट के लिए पहले से ही बोली लगा चुका है और 2017 तक जितना शीघ्र संभव हो सके 20,000 मेगावाट की स्थापित क्षमता को प्राप्त किया जाएगा। हालांकि उन्होंने आगाह भी किया कि सभी अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम तभी दीर्घकालिक हो सकते हैं, जबकि वे आर्थिक रूप से व्यवहार्य हों।
श्री गोयल ने कहा कि विकसित देश में अपने दायित्वों को पूरा करने में प्रतिबद्धता की कमी है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत के हरित ऊर्जा कार्यक्रमों को संचालित किया जाएगा, चाहे इसके लिए हमें पश्चिमी जगत का समर्थन मिले या न मिले।
इस अवसर पर परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोडकर, मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. संजय देशमुख, टेरी के महानिदेशक डॉ. अजय माथुर भी उपस्थित थे।
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