नई दिल्ली: भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने आज (7 अप्रैल, 2016) उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता श्री गोविंद गोयल द्वारा लिखित ‘भारतीय कानून की अभिव्यक्तिः 1950 से उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के फैसलों के माध्यम से’ पुस्तक की पहली प्रति प्राप्त की। इस पुस्तक का विमोचन राष्ट्रपति भवन में हुए एक कार्यक्रम के दौरान भारत के मुख्य न्यायमूर्ति न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने किया था।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि संविधानवाद वह मुख्य आधार/इमारत है, जिस पर भारतीय लोकतंत्र टिका हुआ है। कानून के नियम ही हमारे लोकतंत्र की कसौटी (हालमार्क) हैं, जिनके कारण हर भारतीय खुद को सशक्त महसूस करता है, जो पूरी ताकत और उत्साह के साथ राष्ट्र निर्माण में भागीदारी करता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के उच्चतम न्यायालय, जहां विचारधारा संबंधी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक कार्यकारियों द्वारा पूरे जीवनकाल के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है, की तुलना में भारतीय उच्च न्यायालय में ऐसे विचारों को ध्यान में रखे बिना एक गैर राजनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। परिणाम स्वरूप भारतीय उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा की गई व्याख्या के अनुरूप कानून सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और नैतिक बंधनों को ध्यान में रखते हुए संचालित होता है। इससे भारतीय संविधान बदलते दौर के साथ एक सजीव दस्तावेज बन गया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान पीठ के फैसलों से एक तरह की तर्कसंगत मजबूती का पता चलता है और वक्त की रेत पर इनकी अमिट छाप रहती है। संविधान पीठ के 2,296 फैसलों में से सिर्फ लगभग एक फीसदी को ही खारिज किया गया है, जो संविधान संशोधनों की संख्या से भी कम है। अभी तक समाज की समकालिक जरूरतों के क्रम में एक फैसले में सुधार और औचित्य पर पुनर्विचार की संभावना और वांछनीयता हो सकती है।
‘भारतीय कानून की अभिव्यक्तिः 1950 से उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के फैसलों के माध्यम से’ पुस्तक भारत के उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा 1950 के बाद से सुनाए गए सभी फैसलों का एक अध्ययन है।