प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय भारती महोत्सव 2020 को संबोधित किया और भरतियार को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की। महाकवि सुब्रमण्यम भारती की 138वीं जयंती मनाने के लिए वनविल सांस्कृतिक केंद्र द्वारा उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने इस वर्ष के लिए भारती पुरस्कार प्राप्त करने वाले विद्वान श्री सीनी विश्वनाथन को बधाई दी, जिन्हें इस कार्यक्रम के दौरान पुरस्कार प्रदान किया गया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सुब्रमण्यम भारती का वर्णन करना बहुत कठिन है। श्री मोदी ने कहा कि भरतियार को किसी एक पेशे या आयाम से नहीं जोड़ा जा सकता है। वे कवि, लेखक, संपादक, पत्रकार, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, मानवतावादी और बहुत कुछ थे।
प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि कोई भी महान कवि, अपनी कविताओं, दर्शन और अपने जीवन के कार्य के रूप में चमत्कार कर सकता है। श्री मोदी ने वाराणसी के साथ महाकवि की निकटता को याद किया। भारती की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि 39 साल के छोटे से जीवन में उन्होंने बहुत कुछ लिखा, बहुत कुछ किया और इतने में उत्कृष्टता प्राप्त की। उनका लेखन एक गौरवशाली भविष्य की ओर हमारा मार्गदर्शन करता है।
प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि सुब्रमण्यम भारती से आज का युवा बहुत कुछ सीख सकता है। उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण साहसी होना है। सुब्रमण्यम भारती के लिए डर अज्ञात था। भारती को उद्धृत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “डर मुझे नहीं लगता, मुझे डर नहीं है, भले ही सारी दुनिया मेरा विरोध करे।” प्रधानमंत्री ने कहा कि वह आज यंग इंडिया में इस भावना को देखते हैं जब वे नवाचार और उत्कृष्टता के मामले में सबसे आगे हैं। उन्होंने कहा कि भारत का स्टार्ट-अप क्षेत्र निडर युवाओं से भरा है जो मानवता को कुछ नया दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा ‘कर सकता है’ की भावना हमारे देश और हमारे ग्रह के लिए आश्चर्यजनक परिणाम प्रदान करेगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भरतियार प्राचीन और आधुनिकता के बीच एक स्वस्थ मिश्रण में विश्वास करते थे। उन्होंने कहा कि भारती ने ज्ञान को हमारी जड़ों से जुड़े रहने के साथ-साथ भविष्य की ओर देखा और तमिल भाषा और मातृभूमि भारत को अपनी दो आंखें माना। भारती ने प्राचीन भारत की महानता, वेदों और उपनिषदों की महानता, हमारी संस्कृति, परंपरा और हमारे गौरवशाली अतीत के गीत गाए। लेकिन साथ ही उन्होंने हमें चेतावनी भी दी कि केवल अतीत के गौरव में जीना पर्याप्त नहीं है। श्री मोदी ने एक वैज्ञानिक स्वभाव विकसित करने, जांच की भावना और प्रगति की ओर अग्रसर होने की आवश्यकता पर जोर दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि महाकवि भरतियार की प्रगति की परिभाषा में महिलाओं की केंद्रीय भूमिका थी। उनकी सबसे महत्वपूर्ण दृष्टि स्वतंत्र और सशक्त महिलाओं की थी। महाकवि भरतियार ने लिखा है कि महिलाओं को अपना सिर उठा कर चलना चाहिए, जबकि लोगों को उनकी आंखों में देखना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार इस दृष्टिकोण से प्रेरित है और महिलाओं के नेतृत्व वाले सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है। श्री मोदी ने कहा कि सरकार के कामकाज के हर क्षेत्र में महिलाओं की गरिमा को महत्व दिया गया है। उन्होंने कहा कि आज, 15 करोड़ से अधिक महिला उद्यमी मुद्रा योजना जैसी योजनाओं से वित्त पोषित हैं। आज स्थायी कमीशन के साथ महिलाएं हमारे सशस्त्र बलों का हिस्सा बन रही हैं। आज, सबसे गरीब महिलाएं जो सुरक्षित स्वच्छता की कमी की समस्याओं का सामना करती थीं, उन्हें 10 करोड़ से अधिक सुरक्षित और स्वच्छ शौचालयों से लाभान्वित किया जाता है। उन्हें और परेशानियों का सामना न करना पड़े। “यह न्यू इंडिया की नारी शक्ति का युग है। वे बाधाओं को तोड़ रही हैं और अपना प्रभाव स्थापित कर रही हैं। यह सुब्रमण्यम भारती की श्रद्धांजलि है।”
प्रधानमंत्री ने टिप्पणी करते हुए कहा कि महाकवि भरतियार समझ गए थे कि कोई भी समाज जो विभाजित है वह सफल नहीं हो सकेगा। साथ ही, उन्होंने राजनीतिक स्वतंत्रता के खालीपन के बारे में भी लिखा जो सामाजिक असमानताओं का ध्यान नहीं करता है और सामाजिक कुरीतियो को समाप्त नहीं करता है। प्रधानमंत्री ने भारती को उद्धृत करते हुए कहा, “अब हम एक नियम बनाएंगे, और इसे कभी न कभी लागू करेंगे, अगर कभी एक आदमी को भुखमरी का सामना करना पड़ता है, तो दुनिया को विनाश के दर्द का सामना करना पड़ता है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी शिक्षाएं हमें एकजुट रहने और प्रतिबद्ध रहने के लिए एक मजबूत अनुस्मारक हैं। हर एक व्यक्ति विशेषकर गरीबों और हाशिए पर रहने वाले लोगों का सशक्तिकरण किया जाना चाहिये।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे युवाओं को भारती से सीखने के लिये बहुत कुछ है। हमारे देश में हर कोई उनके कामों को पढ़े और उनसे प्रेरित हो। उन्होंने भरतियार के संदेश को फैलाने में उनके अद्भुत काम के लिए वनविल संस्कृति केंद्र की प्रशंसा की। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस महोत्सव में रचनात्मक विचार-विमर्श होगा जो भारत का एक नया भविष्य बनाने में मदद करेगा।
मैं अपनी बात महान विभूति भारतियार को उनकी जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करने के साथ शुरू करता हूँ। इस विशेष दिन पर अंतर्राष्ट्रीय भारती पर्व में भाग लेते हुए मुझे अति प्रसन्नता हो रही है। मुझे इस बात पर भी प्रसन्नता हो रही है कि इस वर्ष का भारती सम्मान महान अध्येता श्री सीनी विश्वनाथन जी को देने का मुझे अवसर मिल रहा है, जिन्होंने भारती के कार्यों पर शोध में अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया। 86 वर्ष की उम्र में भी शोध कार्य जारी रखने के लिए मैं उनकी प्रशंसा करता हूँ। भारतियार को मात्र एक व्यवसाय या आयाम तक सीमित नहीं किया जा सकता। वह एक कवि, लेखक, संपादक, पत्रकार, समाज सुधारक, स्वतन्त्रता सेनानी, मानवतावादी और बहुत कुछ थे।
उनके कार्यों, उनकी कविताओं, उनके दर्शन और उनके जीवन से कोई भी चमत्कृत हो सकता है। वाराणसी के साथ भी उनके निकट संबंध थे, जिसका संसद में प्रतिनिधित्व करते हुए मुझे गौरव का अनुभव होता है। मैंने हाल ही में देखा कि उनके कार्यों को 16 भागों में संकलित कर प्रकाशित किया गया है। महज़ 39 वर्ष की छोटी उम्र में उन्होंने बहुत कुछ कार्य किए और बहुत कुछ लिख डाला। उनके लेख शानदार भविष्य के लिए हमारे मार्ग में पथ प्रदर्शक की भूमिका निभा सकते हैं।
आज हमारे देश का युवा सुब्रमनिया भारती से बहुत कुछ सीखा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण है साहस की सीख ग्रहण करना। सुब्रमनिया भारती भय से अनजान थे। उन्होंने कहा था:
அச்சமில்லைஅச்சமில்லைஅச்சமென்பதில்லையே
இச்சகத்துளோரெலாம்எதிர்த்துநின்றபோதினும்,
அச்சமில்லைஅச்சமில்லைஅச்சமென்பதில்லையே
इसका अर्थ है कि मुझे भय नहीं होता, मुझे भय नहीं होता, यहाँ तक कि समूचा विश्व भी मेरा विरोध करे। यही भावना मैं आज के युवा भारत में देखता हूँ। उनमें यह भावना मैं तब देखता हूँ जब वह नवाचार और उत्कृष्टता के क्षेत्र में अग्रणी होते हैं। भारत का स्टार्ट-अप आज भयमुक्त युवाओं के हाथों में है जो मानवता को कुछ अनोखा दे रहे हैं। ‘कर सकते हैं’ की भावना हमारे राष्ट्र और हमारे ग्रह के लिए चमत्कृत करने वाले परिणाम ला सकती है।
भारतियार प्राचीन और आधुनिकता के बीच संतुलित समन्वय में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपनी जड़ों से जुड़े रहने और भविष्य की ओर देखने में प्रज्ञता देखी। वह तमिल भाषा और मातृभूमि भारत को अपनी दो आँखें मानते थे। वह प्राचीन भारत की महानता, वेदों, उपनिषदों, हमारी संस्कृति,परंपरा और हमारे सर्वश्रेष्ठ अतीत के गीत गाते थे। लेकिन साथ ही वह हमें चेतावनी भी देते थे कि सर्वश्रेष्ठ अतीत में जीना ही पर्याप्त नहीं है। हमें वैज्ञानिक सोच विकसित करने, जिज्ञासु की भावना का विकास और प्रगति की तरफ आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
महाकवि भारतियार की प्रगति की परिभाषा में महिलाओं की केन्द्रीय भूमिका थी। उनकी दृष्टि में सबसे महत्वपूर्ण था महिलाओं का स्वतंत्र और सशक्त होना। महाकवि भारतियार ने लिखा है कि महिलाओं को अपना मस्तक ऊंचा कर लोगों की आँखों में आँखें डालकर चलना चाहिए। हम उनके इस विचार से प्रेरित हैं और महिलाओं का सशक्तिकरण सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत हैं। यह आपको भी प्रसन्नता का आभास कराएगा कि हमारी सरकार के सभी कार्यों में महिलाओं की मर्यादा को महत्व दिया जाता है।
आज लगभग 15 करोड़ महिला उद्यमियों को मुद्रा योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से आर्थिक मदद उपलब्ध कराई जा रही है। वह महिलाएं आज अपना मस्तक ऊंचा कर लोगों की आँखों में आँखें डालकर चल रही हैं और हमें बता रही हैं कि वे कैसे आत्म निर्भर बन रही हैं।
आज, हमारे देश के महिलाएं सशत्र बलों का हिस्सा बन रही हैं और उन्हें स्थायी कमीशन दिया जा रहा है। महिलाएं आज अपना मस्तक ऊंचा कर लोगों की आँखों में आँखें डालकर चल रही हैं और हमें आत्मविश्वास दे रही हैं कि देश सुरक्षित हाथों में हैं। सुरक्षित स्वच्छता से अब तक वंचित गरीब से गरीब महिलाएं भी देश में बनाए गए 10 करोड़ से अधिक सुरक्षित स्वच्छ शौचालय से आज,लाभान्वित हो रही हैं।
उन्हें अब इस तरह की किसी समस्या का सामना नहीं करना होगा। जैसा कि महाकवि भारतियार ने सोचा था वैसे ही महिलाएं आज अपना मस्तक ऊंचा कर लोगों की आँखों में आँखें डालकर आगे कदम बढ़ा रही हैं। यह नए भारत की नारी शक्ति है। वे बंधन तोड़ रही हैं और प्रभाव पैदा कर रही हैं। सुब्रमनिया भारती को यह नए भारत की श्रद्धांजलि है।
महाकवि भारतियार का मानना था कि जो समाज विभक्त है वह कभी सफल होने योग्य नहीं बन सकेगा। साथ ही वह राजनीतिक स्वतन्त्रता के खालीपन के बारे में भी लिखते हैं, जो कि असमानता जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म नहीं कर सकता। वह कहते हैं:
இனியொருவிதிசெய்வோம் – அதை
எந்தநாளும்காப்போம்
தனியொருவனுக்குணவிலையெனில்
ஜகத்தினையழித்திடுவோம்
इसका अर्थ: अब हम एक नियम बनाएँगे और उसे सदैव लागू करेंगे, यदि कभी भी कोई भी भूखा रह जाता है तो समूचे विश्व को इसके लिए प्रायश्चित करना होगा। उनकी शिक्षाएं हमें एकजुट रहने और प्रत्येक व्यक्ति को विशेष रूप से गरीब और वंचित तबकों को सशक्त करने के लिए याद दिलाती रहती हैं।
भारती से हमारे युवाओं को सीखने के लिए बहुत कुछ है। मेरी इच्छा है कि देश का प्रत्येक व्यक्ति उनके कार्यों को पढ़े और उनसे प्रेरित हो। मैं वनविल सांस्कृतिक केंद्र को भारतियार के संदेशों को प्रचारित करने के लिए किए जा रहे उल्लेखनीय प्रयासों हेतु शुभकामनायें देता हूँ। मेरा विश्वास है कि इस पर्व से रचनात्मक विचार निकलेंगे जो नए भारत की गाथा लिखने में मददगार होंगे।