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यूएसआईएआई के शुभारंभ के अवसर पर वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़ी तकनीकों की संभावनाओं, चुनौतियों और इसके दायरे के बारे में चर्चा की

देश-विदेश

 हाल ही में यूएस इंडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (यूएसआईएआई) के शुभारंभ के अवसर पर एक पैनल चर्चा में दुनिया भर के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के क्षेत्र में काम करने वाले प्रख्यात वैज्ञानिकों ने कृषि, ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, किफायती आवास और स्‍मार्ट सिटी जैसे विभिन्‍न क्षेत्रों में सफलता के बारे में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से जुड़ी प्रौद्योगिकियों की संभावनाओं, चुनौतियों और इसके दायरे के बारे में चर्चा की।

वैज्ञानिकों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नए लॉन्च किए गए यूएस इंडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (यूएसआईएआई) दुनिया भर के विशेषज्ञों को किस प्रकार इस तरह की चर्चाओं के लिए एक साथ जोड़ सकते हैं।

ऑनलाइन पैनल चर्चा में विज्ञान और इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) के सचिव प्रोफेसर संदीप वर्मा ने कहा, “यूएसआईएआई एआई के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के लिए द्विपक्षीय सहयोग, एआई नवाचार को सक्षम करने, एआई कार्यबल विकसित करने के लिए विचार साझा करने और साझेदारियों को बढ़ाने के लिए तंत्र की सिफारिश करने के संदर्भ में अवसरों, चुनौतियों और बाधाओं पर चर्चा करने के लिए एक मंच के रूप में काम करेगा। दोनों देशों के लिए अनुसंधान को समन्वित करने और विभिन्न संभावनाओं का पता लगाने का यह एक बेहतर मौका है।”

वाधवानी इंस्टीट्यूट फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सीईओ श्री पद्मनाभन आनंदन ने कहा कि एआई कई क्षेत्रों में समस्याओं को हल करने में मदद कर सकती है। उन्होंने कहा, “यह सभी समस्याओं को हल नहीं कर सकती है लेकिन निश्चित रूप से समस्यामूलक क्षेत्रों को खोजने और समस्याओं को नियंत्रित करने में हमारी मदद कर सकती है।”

सेंट जूड चिल्ड्रन रिसर्च हॉस्पिटल, मेम्फिस के रासायनिक जीव विज्ञान और चिकित्सीय विज्ञान के अध्यक्ष श्री आसीम अंसारी ने कहा, “हितधारकों को एक साथ लाकर स्वास्थ्य सेवा, कृषि, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में, स्मार्ट शहरों, आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में इस सहयोग के माध्यम से समस्याओं को हल करने से सामाजिक-आर्थिक स्तर में अत्‍यधिक सुधार संभव है।”

यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट के कॉलेज ऑफ इंफॉर्मेशन एंड कंप्यूटर साइंसेज के विशिष्‍ट विश्वविद्यालय प्रोफेसर जिम कुरोसे ने उम्मीद जताई कि दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक सहयोग से भविष्य की चुनौतियों से निपटने में आसानी होगी।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलि‍फोर्निया बर्कले के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग एवं कम्‍प्‍यूटर विज्ञान के जितेन्‍द्र मलिक ने कहा, “डेटा और तकनीक की उपलब्धता के कारण एआई के क्षेत्र में क्रांति आई है। इस क्षेत्र में अंतर्विषयी मुद्दों पर चिंतन करने और कार्यक्रमों के लिए साझेदार होने की आवश्यकता है। भारत में सही कौशल वाले लोगों की काफी कमी है और यह अमेरिका में भी एक समस्या है। सहयोग के माध्यम से ऐसी चुनौतियों को दूर किया जा सकता है और विज्ञान के क्षेत्र में बेहतर कार्य किया जा सकता है।

भारत सरकार के नीति आयोग के अटल नवाचार मिशन (एआईएम) के निदेशक श्री आर. रामानन ने कहा कि जनसांख्यिकीय लाभांश भारत के लिए सबसे बड़े लाभों में से एक है। उन्होंने कहा, “लगभग 150 मिलियन छात्र 5-10 वर्षों में कार्यबल में प्रवेश करने जा रहे हैं। हमारा लक्ष्य इस कार्यबल के बीच नवाचार की संस्कृति को चलाना और बनाना है, और यह दोनों सहयोगी देशों की समस्याओं का समाधान खोजने के लिए नवाचार की संस्कृति को चलाने में मदद कर सकता है।”

इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक श्री अनुराग अग्रवाल ने एआई के उपयोग द्वारा बायोमेडिसिन आपूर्ति और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए एआई की आवश्यकता के बारे में कहा, “एआई के उपयोग से बायोमेडिसिन में वृद्धि की एक बड़ी गुंजाइश है। पहला यह है कि जब हम डेटा जनरेट करने में बहुत कुशल होते हैं, तो हमें यह मालूम नहीं होता कि इसकी जरूरत कहां है और इसके साथ क्या करना है। बायोमेडिसिन में दूसरी प्रकार की समस्या यह है कि आप जानते हैं कि क्या करना है, लेकिन कुछ ही लोग इसे करने के लिए प्रशिक्षण लेते रहे हैं। तीसरी समस्या यह है कि हमारे पास लोग हैं, हमारे पास प्रक्रिया है लेकिन इसके पैमाने और पर्याप्तता नहीं है।”

अमेरिका के ऊर्जा विभाग के एशिया एवं अमेरिका के लिए उप सहायक सचिव सुश्री एलिजाबेथ अर्बनस ने कहा कि एआई संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय ऊर्जा साझेदारी को मजबूत कर सकता है। उन्‍होंने कहा, “हमारे पास कई क्षेत्र हैं जिन पर हम आईयूएसएसटीएफ कार्यक्रम के साथ काम करने की कल्पना करते हैं। हम भारत में अपने मौजूदा द्विपक्षीय ऊर्जा साझेदारी को बढ़ाने में मदद करने के लिए इस मंच और इसके जुड़ाव का लाभ उठाने की उम्मीद कर रहे हैं, जहां हम ग्रिड को आधुनिक बनाने और मजबूत बनाने, विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति के लिए नवीकरण के ग्रिड संपर्कता को बढ़ाने, स्मार्ट और अभिनव कुशल इमारतों को बढ़ावा देने और सामग्री व औद्योगिक क्षेत्र को विघटित तथा विद्युतीकृत के लिए प्राथमिकताएं साझा करते हैं।”

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकारों के बीच एक समझौते के तहत 2000 में इंडो-यू.एस. विज्ञान और प्रौद्योगिकी फोरम (आईयूएसएसटीएफ) स्थापित किया गया था। यह दो द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से संचालित होता है: इंडो-यू.एस. विज्ञान और प्रौद्योगिकी फोरम (2000) और यूनाइटेड स्टेट्स-इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंडोमेंट फंड (2009)।

वैज्ञानिकों ने एआई के इर्द-गिर्द भविष्य की सुरक्षा और गोपनीयता से जुड़ी चिंताओं के साथ-साथ एआई उपकरण और प्रौद्योगिकियों से अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में बदलाव लाने, एल्गोरिदम के गहन शिक्षण से कैंसर के निदान के बारे में, नई सामग्रियों की खोज के लिए मशीन शिक्षण के इस्‍तेमाल, उन्नत निर्माण में 3 डी प्रिंटर के उपयोग से लेकर उपलब्धि एवं निर्णय लेने की क्षमताओं के साथ इंटेलिजेंट प्रणालियों के बारे में चर्चा की।

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