अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में भारत के विभिन्न हिस्सों के विशेषज्ञों ने जैव विविधता के संरक्षण के महत्व एवं उसके विभिन्न पहलुओं और प्रौद्योगिकी एवं सतत विकास के साथ इसके संबंधों पर चर्चा की।
भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. रमेश कृष्णमूर्ति ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान इंस्टीच्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) पश्चिम बोरागांव, गुवाहाटी के साथ मिलकर बायोनेस्ट – आईएएसएसटी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ‘बायोडायवर्सिटी एंड टेक्नोलॉजी: टुवर्ड्स इंटीग्रेटेड नेचर – कल्चर सलूशन्स’ शीर्षक अपने व्याख्यान में जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रकृति और संस्कृति आधारित उपायों के महत्व पर जोर दिया।
आईएएसएसटी के निदेशक प्रोफेसर आशीष के. मुखर्जी ने जोर देकर कहा कि जैव विविधता सतत विकास से जुड़ी कई चुनौतियों का जवाब प्रस्तुत करती है और हमें जैव विविधता को विलुप्त होने से बचाने और संरक्षित करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए। प्रोफेसर मुखर्जी 22 मई, 2021 को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ: आज़ादी का अमृत महोत्सव के एक हिस्से के रूप में आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि जैव-विविधता और इको – सिस्टम आईएएसएसटी में किये जाने वाले अनुसंधानों के प्रमुख विषयों में से एक है। उन्होंने इस संस्थान में चल रही जैव विविधता से संबंधित विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं पर भी प्रकाश डाला।
इस कार्यक्रम में कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए ऑनलाइन डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से संस्थान के विभाग के सदस्यों, कर्मचारियों और शोधार्थियों सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में बायोनेस्ट (बायोइनक्यूबेटर्स नर्चिंग एंटरप्रेन्योरशिप फॉर स्केलिंग टेक्नोलॉजीज) फैसिलिटी के डॉ. तानिया दास पॉल और डॉ. देबाशीष चौधरी जैसे वैज्ञानिकों ने भाग लिया। इस अवसर पर जैव विविधता के संरक्षण और अन्वेषण पर अनुसंधान को बढ़ाने और मजबूत करने से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण संकल्प भी लिए गए।
अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस, जैव विविधता के मुद्दों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 22 मई को आयोजित होने वाला संयुक्त राष्ट्र स्वीकृत एक अंतरराष्ट्रीय दिवस है जो संयुक्त राष्ट्र के 2015 के बाद के विकास एजेंडा के सतत विकास लक्ष्यों के दायरे में आता है।