कोहरे के मौसम में भी अब वस्तुओं के स्पष्ट चित्र लेना (इमेजिंग) सम्भव है। शोधकर्ताओं ने एक ऐसा तरीका खोजा है जो ऐसे दिनों में खींची गई तस्वीरों को बेहतर बना सकता है। तकनीक में प्रकाश के स्रोत को संशोधित करने के बाद उन्हें पर्यवेक्षक के पास उन्हें डिमॉड्युलेट करना शामिल हैI
वैज्ञानिकों लंबे समय से परिणामी डेटा को संसाधित करने और छवियों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए विसरण की भौतिकी और कंप्यूटर एल्गोरिदम का उपयोग करने का प्रयास कर रहे थे । हालांकि कुछ मामलों में उतनी स्पष्टता नहीं मिली है इसके बावजूद कंप्यूटर एल्गोरिदम के बड़ी मात्रा में डेटा को संसाधित करने की आवश्यकता होती है और इसके लिए पर्याप्त भंडारण की सुविधा और प्रसंस्करण के लिए महत्वपूर्ण समय आवश्यक है।
एक टीम द्वारा अनुसंधान ने भारी गणनाओं के बिना छवि गुणवत्ता में सुधार के लिए एक समाधान की पेशकश की है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, रमन अनुसंधान संस्थान (आरआरआई), बेंगलुरु की टीम; अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, अहमदाबाद; शिव नादर विश्वविद्यालय, गौतम बुद्ध नगर; और यूनिवर्सिटी रीन्स एवं यूनिवर्सिटी पेरिस -सैक़ले , सीेएन आरएस, फ़्रांस ने प्रकाश स्रोत को संशोधित किया और अधिक सुष्पष्ट चित्रों (छवियों) को प्राप्त करने के बाद उन्हें डिमोड्युलेट करके पर्यवेक्षक के पास भेजा I यह शोध ‘ओएसए कॉन्टिनम’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
शोधकर्ताओं ने शिव नादर विश्वविद्यालय, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश में सर्दियों के मौसम में कोहरे वाली सुबह इस प्रौद्योगिकी के व्यापक प्रयोग करके का प्रदर्शन किया है। उन्होंने प्रकाश के स्रोत के रूप में दस लाल एलईडी लाइटों को चुना। फिर, उन्होंने एलईडी के लिए प्रयुक्त होने वाली विद्युत् धारा को लगभग 15 चक्र प्रति सेकंड की दर से प्रवाहित करके और आवृत्ति बदल-बदल कर प्रकाश के इस स्रोत को संशोधित किया।
शोधकर्ताओं ने एक कैमरा एलईडी से 150 मीटर की दूरी पर रखा। कैमरे ने इन चित्रों को खींचने के बाद उन्हें एक डेस्कटॉप कंप्यूटर पर प्रेषित किया। फिर, कंप्यूटर एल्गोरिदम ने स्रोत की विशेषताओं को जानने के लिए मॉड्यूलेशन आवृत्ति से सम्बन्धित जानकारी का उपयोग किया। इस प्रक्रिया को ‘डिमॉड्यूलेशन’ कहा जाता है। छवि का डिमॉड्यूलेशन उस दर पर किया जाना था जो एक स्पष्ट छवि प्राप्त करने के लिए प्रकाश के स्रोत के मॉड्यूलेशन की दर के बराबर था।
टीम ने मॉड्यूलेशन-डिमॉड्यूलेशन तकनीक का उपयोग करके प्राप्त चित्रों की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार देखा। कंप्यूटर को प्रक्रिया को निष्पादित करने में लगने वाला समय छवि के आकार पर निर्भर करता है। आरआरआई में पीएचडी विद्वान और अध्ययन के सह-लेखक बापन देबनाथ के अनुसार ” 2160 × 2160″ चित्रों के लिए, गणना का (कम्प्यूटेशनल) समय लगभग 20 मिलीसेकंड है”। यह मोटे तौर पर एलईडी वाली छवि का आकार है। उनके सहयोगियों ने 2016 में इस दर का अनुमान लगाया था।
टीम ने इस प्रयोग को कई बार दोहराया और हर बार सुधार मिला। एक बार, जब परीक्षण/अवलोकन के दौरान कोहरे की तीव्रता में अंतर् था, तब उन्हें चित्रों की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार नहीं दिखाई दिया। ऐसे ही एक प्रयोग में, तेज हवा चल रही थी, और उन्होंने पूरे दृश्य में कोहरे के निशान देखे। समय बीतने के साथ हवा में पानी की बूंदों का घनत्व बदल गया जिससे मॉड्यूलेशन-डिमॉड्यूलेशन की तकनीक को उतनी प्रभावी नहीं रह पाई ।
इसके बाद, शोधकर्ताओं ने अपने प्रयोगात्मक सेटअप को बदल दिया। उन्होंने एक बाहरी सामग्री बनाई जो गत्ते (कार्डबोर्ड ) का एक पटरा था और जिसे एलईडी से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर रखा गया था, ताकि कैमरे की रोशनी को परावर्तित किया जा सके। कार्डबोर्ड और कैमरे के बीच की दूरी 75 मीटर थी। कार्डबोर्ड से परावर्तित मॉड्युलेटेड प्रकाश कोहरे के माध्यम से यात्रा करता है और फिर कैमरे द्वारा उसका चित्रांकन (कैप्चर) किया जाता है। यहां उन्होंने दिखाया कि कैसे उनकी तकनीक से अभी भी अंतिम रूप से प्राप्त चित्रों की गुणवत्ता में काफी सुधार मिला है।
फिर साफ़ मौसम में धूप की परिस्थितियों में प्रयोग को दोहराते हुए, उन्होंने पाया कि स्रोत का डिमोड्यूलेशन करने के बाद, छवि गुणवत्ता इतनी अधिक थी कि एलईडी को दृढ़ता से परावर्तित सूर्य के प्रकाश से अलग किया जा सके।
इस अध्ययन को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आंशिक रूप से वित्त पोषित किया गया था।
इस तकनीक की लागत कम है और इसके लिए केवल कुछ एलईडी और एक साधारण डेस्कटॉप कंप्यूटर की आवश्यकता होती है, जो परिणामों को एक सेकंड के भीतर निष्पादित कर सकता है। यह प्राविधि वायुयानों के चालकों (पायलटों ) को रनवे पर बीकन का एक अच्छा दृश्य उपलब्ध करवाती है और इससे हवाई जहाज की लैंडिंग तकनीकों में सुधार कर लाया जा सकता है, जो वर्तमान में अभी केवल परावर्तित रेडियो तरंगों पर निर्भर होने से कहीं बेहतर और अद्यतन तकनीकी है। यह तकनीक सामने आने वाली में बाधाओं ऐसी को ढूंढने में मदद कर सकती है जो आमतौर पर कोहरे के दौरान रेल, समुद्र और सड़क परिवहन के दौरान दिखाई नहीं देती और यह तकनीक समुद्र में जहाज़ों को लाइटहाउस बीकन को खोजने में भी मदद करेगी। इस बारे में अधिक शोध दैनिक आधार पर वास्तविक परिस्थितियों भी अपनी में प्रभावशीलता प्रदर्शित कर सकते हैं। यह टीम यह भी जानने का प्रयास कर रही है कि क्या इस तकनीक को चलायमान स्रोतों पर भी लागू किया जा सकता है या नहीं।
प्रकाशन लिंक:https://doi.org/10.1364/OSAC.425499
अधिक जानकारी के लिए बापन देबनाथ (bapan@rri.res.in); Fabien Bretenaker (fabien.bretenaker@universite-paris-saclay.fr) से संपर्क किया जा सकता है।