भारतीय न्यायिक प्रणाली के डिजिटल बुनियादी ढांचे को दिव्यांगजनों के लिए और अधिक सुलभ बनाने का कार्य पिछले कुछ महीनों के दौरान उच्चतम न्यायालय की ई-समिति के काम का एक मुख्य घटक रहा है। इस उद्देश्य की दिशा में ई-समिति के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण पड़ाव यह सुनिश्चित करना है कि सभी उच्च न्यायालय की वेबसाइटों में अब दिव्यांगजनों के लिए कैप्चा सुलभ करा दिए गए हैं।
ये कैप्चा न्यायालय की वेबसाइट के कई आवश्यक पहलुओं जैसे कि निर्णय / आदेश, वाद-सूचियाँ और मामलों की स्थिति की जांच तक पहुँचने के लिए प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य करते हैंI उच्च न्यायालय की कई वेबसाइटें अब तक विशेष रूप से नेत्रहीनों के लिए निष्प्रयोज्य दृश्य कैप्चा का उपयोग कर रही थीं, जिससे उनके लिए ऐसी सामग्री को स्वतंत्र रूप से देख-समझ पाना असंभव हो गया था। सभी उच्च न्यायालयों के आपसी समन्वय से, ई-समिति ने अब यह सुनिश्चित किया है कि दृश्य कैप्चा के साथ शब्दों और श्रव्य कैप्चा भी होने चाहिए ताकि दृष्टिबाधित लोग भी ऐसी वेबसाइट की सामग्री को आवश्कतानुसार प्राप्त कर सके।
16 दिसंबर, 2020 के एक पत्र में, ई-समिति के अध्यक्ष, डॉ. न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने सभी उच्च न्यायालयों से दिव्यांगजनों के संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों के अनुरूप उनके लिए अपने डिजिटल बुनियादी ढांचे को सुलभ बनाने का आह्वान किया था। पत्र में इस संबंध में सभी उच्च न्यायालयों के लिए प्रक्रिया में संरचनात्मक हस्तक्षेपों की एक श्रृंखला भी शामिल की गई थी।
इस पत्र के बाद की प्रक्रिया अनुसरण में, ई-समिति ने इस परियोजना के पहले चरण में सभी उच्च न्यायालयों की वेबसाइटों के डिजिटल इंटरफेस की सब तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक कार्य योजना तैयार की। यह जानने के लिए निम्नलिखित छह मानक तैयार किए गए थे कि उच्च न्यायालय की वेबसाइट सुलभ है भी या नहीं: निर्णयों तक पहुंच; कारण-सूचियों तक पहुंच; मामले की स्थिति तक पहुंच; कंट्रास्ट/रंग विषय; पाठ का आकार [ए + एए]; और स्क्रीन रीडर एक्सेस।
ई-समिति ने सभी उच्च न्यायालयों के केंद्रीय परियोजना समन्वयकों और उनकी तकनीकी टीमों के लिए जागरूकता पैदा करने और सभी उच्च न्यायालयों की वेबसाइटों के डिजिटल इंटरफेस की पहुंच सुनिश्चित करने और सुलभ पीडीएफ बनाने के लिए प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए सत्रों की एक श्रृंखला आयोजित की। उच्च न्यायालयों की वेबसाइटें अब कुछ उन वेबसाइटों को छोड़कर उपरोक्त मापदंडों का अनुपालन करती हैं, जो स्क्रीन रीडर एक्सेस प्रदान करने की प्रक्रिया में हैं। इन मानकों के साथ उच्च न्यायालयों के अनुपालन की स्थिति- अनुलग्नक ए में दी गई है ।
ई-समिति सुलभ अदालती दस्तावेजों को तैयार करने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) बनाने की प्रक्रिया में भी है और अपने हितधारकों के लिए एक उपयोगी निर्देशिका के रूप में काम करेगी। यह वॉटरमार्क, हाथ से लिखने, गलत स्थानों पर टिकट चिपकाने और फाइलों में अनुपलब्ध पृष्ठों के मामलों का भी समाधान करेगा। इस संबंध में, ई-समिति के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति डॉ. डी वाई चंद्रचूड़ ने उक्त एसओपी तैयार करने के लिए सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को दिनांक 25.06.2021 को एक पत्र भी लिखा थाI
एनआईसी के सहयोग से ई-समिति द्वारा की गई एक अन्य महत्वपूर्ण पहल दिव्यांगजनों के लिए सुलभ निर्णय खोज पोर्टल (https://judgments.ecourts.gov.in) बनाना है। पोर्टल में सभी उच्च न्यायालयों द्वारा पारित निर्णय और अंतिम आदेश शामिल किए गए हैं। पोर्टल एक निशुल्क टेक्स्ट सर्च इंजन का उपयोग करता है। इसके अलावा, पोर्टल टेक्स्ट कैप्चा के साथ ऑडियो कैप्चा का उपयोग करने की सुविधा भी प्रदान करता है। यह सुलभ कॉम्बो बॉक्स का भी उपयोग करता है, जिससे नेत्रहीनों के लिए वेबसाइट पर काम करना आसान हो जाता है।
ई-समिति की वेबसाइट (https://ecommitteesci.gov.in/) और ई-कोर्ट्स वेबसाइट (https://ecourts.gov.in/ecourts_home/) भी दिव्यांगजनों के लिए उपलब्ध हैं। ई-समिति वेबपेज एस3डब्ल्यूएएएस प्लेटफॉर्म पर बनाया गया है, जो दिव्यांगजनों के लिए वेबसाइटों को सुलभ बनाने के मानकों का अनुपालन करता है।
वकीलों के लिए ई-समिति के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी अधिवक्ताओं को सुलभ फाइलिंग प्रथाओं को अपनाने के लिए आवश्यक जानकारी उपलब्ध करवाते हैं।
समग्र रूप से देखे जाने वाले इन उपायों ने दिव्यांगजनों के लिए न्याय तक पहुंच को महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाया है और उनकी गरिमा को सशक्त तरीके से बनाए रखने की दिशा में कार्य किया है जिससे वे समान आधार पर हमारी न्याय प्रणाली का एक हिस्सा बन सके हैंI दिव्यांग न्यायविदों के लिए ये उपाय उन्हें अपने पेशे में अन्य सक्षम समकक्षों के समान सक्षम बनाने में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हो रहे हैं। ई-समिति की इन पहलों ने हमारी अदालतों को दिव्यांगजनों के दुरूह माने जाने वाले स्थानों के बजाय उनकी भागीदारी के लिए भी स्थान बनाने के बदलाव में मदद की है और यह एक सुलभ और समावेशी कानूनी प्रणाली बनाने का भी एक तरीका है।