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पीकिंग विश्‍वविद्यालय में गोलमेज सम्‍मेलन के समापन के अवसर पर राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का संबोधन

देश-विदेश

नई दिल्ली: सर्वप्रथम मैं इस गोलमेज की मेजबानी के लिए पीकिंग विश्‍वविद्यालय और चीन के पीपुल्‍स गणराज्‍य के शिक्षा मंत्रालय को धन्‍यवाद देना चाहता हूं। मैं दोनों देशों के चुनिंदा शैक्षिक नेताओं के प्रजेंटेशनों को सुनने और उनके विचार-विमर्श के परिणामों को सुनने के लिए बहुत उत्‍सुक था। जिन विषयों पर आपने अपने विचार-विमर्शों को केंद्रित रखा है वे दोनों देशों में विश्‍वविद्यालय शिक्षा के भविष्‍य के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण हैं। ये पूरे विश्‍व में शैक्षिक समुदायों के मौजूदा ध्‍यान का प्रतिनिधित्‍व करते हैं और यह ऐसा क्षेत्र हैं जहां चीन और भारत दोनों के शैक्षिक समुदाय व्‍यापक आपसी लाभ के लिए सहयोग कर सकते हैं। ये आज पूरी दुनिया में उच्‍च शिक्षा के संस्‍थानों में आधुनिकीकरण और मानकों के उन्‍नयन तथा सामग्री के मूल बिंदु हैं।

हम आगे बढ़ने से पहले पीछे मुड़कर देंखे। यह स्‍मरण करना प्रासंगिक है कि भारत की प्राचीन शैक्षिक उन्‍नति चीन की तरह पूरे विश्‍व में प्रसिद्ध थी। छठी शताब्दी के दौरान उच्‍च शिक्षा के संस्‍थानों जैसे- नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा और ओदंतपुरी ने विद्वानों को आकर्षित किया और इस क्षेत्र तथा इससे बाहर के अन्‍य देशों में स्थित प्रसिद्ध शैक्षिक संस्‍थानों के साथ संबंधों को विकसित किया और शैक्षिक आदान-प्रदान किये। इन सब में तक्षशिला भारतीय विश्वविद्यालयों का सबसे अधिक संपर्क वाला विश्‍वविद्यालय था जो भारतीय, फारसी, यूनानी और चीनी सभ्‍यताओं का मिलन स्‍थल था। अनेक विख्‍यात लोग तक्षशिला आये जिनमें पाणिनि, सिकंदर, चंद्रगुप्त मौर्य, चाणक्य, चरक, और चीनी बौद्ध भिक्षु फाइयान और ह्वेन त्सांग जैसी हस्तियां शामिल हैं। आज भारत सरकार ने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ इस परंपरा को पुनर्जीवित करने और उत्कृष्टता के केन्द्रों का सृजन करने के लिए अनेक दूरगामी पहल शुरू की हैं ताकि ये केंद्र विश्‍व के शीर्ष संस्‍थानों में स्‍थान हासिल कर सकें। देवियों और सज्‍जनों,

अनुसंधान और नवाचार किसी देश की उत्पादन क्षमता को व्‍यापक बनाने वाले मूल तत्‍व हैं। राष्ट्रों के भविष्य का विकास उसके संसाधनों का मौजूदा प्रौद्योगिकी द्वारा होने वाले उपयोग से इतना अधिक नहीं हो सकेगा जितना अधिक उन्नत प्रौद्योगिकी के माध्यम से बेहतर उपयोग द्वारा हो सकता है। अनुसंधान में निवेश बहुत महत्‍वपूर्ण है। भारत में अनुसंधान और विकास व्‍यय वर्तमान में सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) का लगभग आठ प्रतिशत है। हम इसे और बढ़ाने के लिए ठोस प्रयास कर रहे हैं।

नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए एक अनुकूल शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र आवश्यक है। शैक्षिक संस्थानों से उत्तीर्ण छात्रों की गुणवत्ता हमेशा से अनुसंधान और नवाचार के लिए शिक्षण, अनुसंधान और ओरिएन्‍टेशन की गुणवत्ता से प्रेरित होती है। उद्योग के साथ अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता तीनों के माध्यम से ही शिक्षण संस्‍थानों के अंतर जुड़ाव के लिए विनिर्माण क्षेत्र में सतत गति और जनता का चहुंमुखी विकास तथा संतुलित आर्थिक विकास महत्‍वपूर्ण पहलू हैं।

उच्‍च शिक्षा के 116 राष्‍ट्रीय स्‍तर के संस्‍थानों के आगंतुक के रूप में मैं मेधावी छात्रों और बेहद सक्षम संकाय की अनुसंधान और नवाचार क्षमता को महसूस करने तथा उद्योग और शैक्षिक जगत के लिए एक सहयोगी मंच का सृजन करने की जरूरत पर जोर देता रहा हूं। भारत अपेक्षाकृत युवा देश है। इसकी 60 प्रतिशत आबादी 15 से 35 वर्ष के आयु समूह की है। शिक्षित युवाओं की क्षमता का फायदा उठाने के लिए मेरी सरकार ने उद्यमिता को बढ़ावा और प्रोत्‍साहन देकर और नौकरियों का सृजन करने के लिए स्‍टार्ट अप इंडिया पहल की शुरूआत की है। 4,500 से अधिक स्‍टार्ट अप इंडिया से यह कार्यक्रम विश्‍व में तीसरी सबसे बड़ी स्‍टार्ट अप पारिस्थितिकी प्रणाली बन गई है। स्‍टार्ट अप इंडिया कार्यक्रम के अधीन नई पहलों से यह प्रयास निसंदेह ठीक दिशा में जायेगा। इस प्रकार उच्‍च शिक्षा के संस्‍थान हमारे युवाओं की उद्यमी योग्‍यताओं का लाभ उठाने के लिए एक महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी है। सहयोग, संकाय और छात्रों के आदान-प्रदान, संयुक्‍त अनुसंधान और सेमीनारों के माध्‍यम से उच्‍च्‍ शिक्षा का अंतर्राष्‍ट्रीयकरण भारत में उच्‍च शिक्षा प्रणाली के विकास का अभिन्‍न हिस्‍सा रहा है। भारत ने ज्ञान (शैक्षिक नेटवर्क के लिए वैश्विक पहल) नामक एक विशिष्‍ट कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम के तहत हम उच्‍च्‍ शिक्षण संस्‍थानों में अल्‍पकालिक शिक्षण कार्य के लिए विदेशो से संकायों को शामिल कर रहे हैं।

देवियों और सज्‍जनों,

भारत जैसे विकासशील देशों को नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, पेयजल, स्‍वच्‍छता और शहरीकरण जैसे मुद्दों के नवाचारी समाधानों की जरूरत है। इसके लिए विकासात्‍मक चुनौतियां, उच्‍च शिक्षण प्रणालियों से प्रेरित प्रक्रिया का आह्वान करती हैं। इम्प्रिंट भारत कार्यक्रम जो एक पेन, आईआईटी और आईआईएससी पहल है पिछले वर्ष नवम्‍बर में शुरू किया गया था। इसने 10 विषयों की पहचान की है जो राष्‍ट्रीय महत्‍व के भारतीय संस्‍थानों द्वारा किये गये अनुसंधान को समाज की तत्‍काल आवश्‍यकताओं के साथ जोड़ देगी। एक अच्‍छा अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिए सहयोगात्‍मक साझेदारी और संयुक्‍त अनुसंधान प्रयासों जैसे उपायों की जरूरत है।

मैं आज भारत के उच्‍च शिक्षा के केंद्रीय संस्‍थानों को चीन के भागीदारी संस्‍थानों के साथ सहयोग के लिए समझौता ज्ञापनों पर हस्‍ताक्षर होते हुए देकर बहुत प्रसन्‍न हूं। मुझे विश्‍वास है इन ज्ञापनों से अनुसंधान एंव शिक्षा, संयुक्‍त सम्‍मेलनों एवं संकाय तथा छात्रों के आदान-प्रदान जैसे क्षेत्रों में शैक्षिक सहयोग के लिए एक सहयोगी मंच का निर्माण करेंगे। उच्‍च शिक्षा के संस्‍थानों के मध्‍य व्‍यापक आदान-प्रदान, अधिक सांस्‍कृतिक उत्‍सवों का आयोजन और संयुक्‍त अनुसंधान एवं छात्रवृत्ति कार्यक्रम यह सिद्ध करेंगे कि हमारी जनता को शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मे प्रगति करने के लिए केवल पश्चिम की ओर ताकने की जरूरत नहीं है।

भारत और चीन 21वीं सदी में महत्‍वपूर्ण और रचनात्‍मक भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। जब भारत और चीन के लोग वैश्विक चुनौतियों का सामना करने और अपने साझा हितों का निर्माण करने के लिए साथ आ जायेंगे तो इसकी कोई सीमा नहीं रह जायेगी कि हमारे दोनों देशों के लोग संयुक्‍त रूप से क्‍या-क्‍या अर्जित कर सकते हैं। इन शब्‍दों के साथ मैं आपके सहयोग में आपकी सफलता की कामना करता हूं।

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