पंतनगर: लघु और मध्यम उद्यमियों (एमएसएमई) को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष 30 अगस्त को लघु उद्योग दिवस मनाया जाता है ताकि ज्यादा से ज्यादा लघु उद्यमियों को प्रोत्साहन मिले और वे आगे आये व स्वरोजगार को बढ़ावा मिले। भारत जैसे देश के आर्थिक विकास में छोटे उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका है जो स्टार्टअप के रूप में पिछले पांच सालों में सामने आए है। लगभग 36.1 मिलियन इकाइयों के साथ, यह बताया गया है कि एमएसएमई विनिर्माण सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 6.11 प्रतिशत और सेवा गतिविधियों से सकल घरेलू उत्पाद का 24.63 प्रतिशत योगदान करते हैं जो कि 2025 तक बढ़ कर 50 प्रतिशत होने की क्षमता हैं। इस समय पूरे भारत में एमएसएमई उद्योग के कर्मचारी 120 मिलियन लोग हैं।
राष्ट्र निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर खरे उतरते हुए हिन्दुस्तान जिंक ने अपनी सूक्ष्म उद्यम पहल सखी उत्पादन समिति के तहत उत्तराखंड के पंतनगर में ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं सहित राजस्थान के अजमेर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद और उदयपुर में महिलाओं को स्थायी आजीविका के अवसर प्रदान किए हैं।
‘आत्मनिर्भर भारत’ को अपने मूल सिद्धांत के रूप में रखते हुए, हिंदुस्तान जिंक की सखी उत्पादन समिति, ग्रामीण महिला किसानों से उच्च गुणवत्ता, रसायन मुक्त उत्पाद प्राप्त कर 4 कृषि-व्यवसाय और 2 सिलाई केन्द्र चलाती है जो 130 से अधिक सखी महिलाओं को रोजगार देते हैं।
हिन्दुस्तान जिंक के सीईओ अरुण मिश्रा ने एक कार्यक्रम में कहा, ‘वोकल फॉर लोकल’ होने का हमारा मूल उद्देश्य हमारे स्थानीय समुदायों में छोटे उद्योग के विकास को बढ़ावा देता है। हम ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए अपने स्थानीय समुदायों को उद्यमशीलता और कौशल विकास की शक्ति के साथ सशक्त बनाने में विश्वास करते हैं। हमारी सखियाँ हमारे स्थानीय समुदायों में सामाजिक परिवर्तन की उत्प्रेरक हैं और हमारी सखी उत्पादन समिति के सामूहिक सूक्ष्म उद्यमों के माध्यम से हमने उन्हें कुशल बनाया है। इस प्रकार उन्हें एक समानतावादी समाज में महिलाओं का सामाजिक और वित्तीय समावेश कर मुख्यधारा में लाने के लिए एक मंच प्रदान किया है।”
गुड़िया कंवर और जमना खटीक इस बात का जीवंत प्रमाण हैं कि महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए एक मंच बनाने का अरुण मिश्रा का विजन सफलतापूर्वक आकार ले रहा है। राजस्थान के अजमेर के गांव कायड़ में अचार बनाने वाले केंद्र में काम करने वाली गुड़िया अपने अनुभव के बारे में बताती हैं, “ सखी के इस केंद्र में शामिल होने से मेरी ज़िंदगी बदल गई है। आज, मैं अकेले ही अपने बेटे की शिक्षा व उसका लालन-पालन कर रही हूं और अपना नया घर भी बनवा रही हूं। मुझे उम्मीद है कि किसी दिन हमारा यह छोटा सा केंद्र अचार की फैक्टरी में तबदील हो जाएगा। गुड़िया अब 4 से 5 पांच हजार रुपए प्रतिमाह कमाती है जिससे उसका परिवार का पालन-पोषण कर रही है।
राजस्थान के भीलवाड़ा के आगुचा गांव में कपड़ा सिलाई केंद्र में काम करने वाली जमना खटीक का कहना है, मैंने केंद्र में बहुत कुछ सीखा है। अब सिलाई में मेरी गति में सुधार हुआ है। प्रति दिन 50 से 500 सिलाई कर रही हूं। मेरा सपना है कि मैं अपना खुद का सिलाई केंद्र बनाऊं जहां मैं रोजगार दे सकूं और अन्य सखियों को पढ़ा सकूं, जिससे वे समाज में अपनी सामाजिक स्थिति को बढ़ा सकें। ”जमना ने अपनी यात्रा 4 से 5 हजार रुपये के मासिक वेतन के साथ शुरू की। वह अब 25,000 रुपये से अधिक कमा रही है। अपनी कमाई के साथ, वह अपने बच्चों की उच्च शिक्षा को सुरक्षित करने के लिए एक एफडी करवाने जा रही है।
हिंदुस्तान जिंक ने अपने बिजनेस पार्टनर्स मंजरी फाउंडेशन और सहेली समिति के साथ मिलकर गुड़िया और जमना जैसी महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़कर दूर दराज की महिलाओं को सशक्त बनाया है।