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केंद्रीय मंत्री ने आईएसटीएम दिल्ली में 2018 बैच के एएसओ (परिवीक्षाधीन) के बुनियादी प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन किया

देश-विदेश

केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान, राज्य मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा तथा अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि प्रोबेशनर्स के लिए पूरे प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का पुनर्विन्यास किया गया है क्योंकि अगले 25 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता और निर्धारित किये गए रोडमैप को आकार देने के वास्ते नई पहल, नीतियों एवं कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने में सिविल सेवाओं को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।

सचिवालय प्रशिक्षण तथा प्रबंध संस्थान (आईएसटीएम) में 2018 बैच के एएसओ (परिवीक्षाधीन) के फाउंडेशन प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में केंद्रीय मंत्री ने कहा, प्रोबेशनर्स उस समय का नेतृत्व करने और भारत को एक पूर्व-प्रतिष्ठित राष्ट्र बनाने के लिए नए वास्तुकार बनेंगे, जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक नए भारत के निर्माण के लिए अपने दृष्टिकोण को साझा किया है जहां प्रत्येक नागरिक का कल्याण राष्ट्रीय योजना और कार्यक्रमों के केंद्र में है। उन्होंने कहा, इसके आलोक में ऊपर से नीचे तक संपूर्ण प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का सम्पूर्ण पुनर्विन्यास प्रस्तावित हुआ है।

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प्रोबेशनर्स को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, आप सेवा में उस समय शामिल हो रहे हैं, जब भारत अपनी आजादी के 75 साल पूरे होने पर आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन अगले 25 साल आपके लिए और साथ ही साथ देश के विकास और प्रगति के लिए भी महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं। उन्होंने कहा, मिशन कर्मयोगी के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को शामिल करते हुए एएसओ बुनियादी प्रशिक्षण कार्यक्रम को फिर से डिजाइन किया गया है। डॉ. सिंह ने प्रोबेशनर्स से कहा कि वे उस ऐतिहासिक बैच का हिस्सा हैं, जो सबसे पहले “भूमिका आधारित” और “योग्यता-आधारित” प्रशिक्षण प्राप्त करेगा।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह चाहते हैं कि प्रोबेशनर्स फाउंडेशन मॉड्यूल के दौरान आईएसटीएम द्वारा दिए जा रहे इस पुन: डिज़ाइन किए गए योग्यता आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम का अधिक से अधिक उपयोग करें, जो उन्हें राष्ट्र और उसके नागरिकों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए सशक्त बनाएगा।

इस तथ्य को सकारात्मक रूप से ध्यान में रखते हुए कि 900 अधिकारियों में से 60 प्रतिशत से अधिक इंजीनियरिंग या तकनीकी पृष्ठभूमि से हैं, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह बहुत अच्छा संयोग है क्योंकि पिछले 7 वर्षों में मोदी सरकार की अधिकांश योजनाओं में एक विशाल वैज्ञानिक अभिविन्यास और निर्भरता शामिल है जैसे कि जैम ट्रिनिटी, कृषि और मृदा स्वास्थ्य कार्ड, शहरी गतिशीलता, स्मार्ट सिटी, डीबीटी, डिजिटल इंडिया, राष्ट्रीय राजमार्ग और शहरी नियोजन इसके कुछ प्रमुख उदहारण हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार ने सिविल सेवा क्षमता निर्माण या मिशन कर्मयोगी के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम को मंजूरी दे दी है, जिसका उद्देश्य नियम आधारित प्रशिक्षण के बजाय “भूमिका-आधारित” सीखने के प्रमुख सिद्धांत के आधार पर सभी सरकारी अधिकारियों के लिए विश्व स्तरीय क्षमता निर्माण का अवसर पैदा करना है। उन्होंने कहा, यह प्रशासन के लिए एक वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण तथा वैज्ञानिक रूप से उन्नत धरातल पर अगली भूमिका के लिये खुद को तैयार करने के अलावा और कुछ नहीं है।

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, केंद्रीय सचिवालय भारत सरकार  के कामकाज का प्रमुख केंद्र है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों में सरकार की बहुत बड़ी हिस्सेदारी है, क्योंकि उनकी भूमिका न केवल प्रस्ताव तैयार करने में बल्कि नीतियों की निगरानी और कार्यान्वयन में भी महत्वपूर्ण होगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अधिकारी विभिन्न मंत्रालयों में काम करेंगे जो देश की सुरक्षा, गरीबों की सेवा, किसानों के कल्याण, महिलाओं और युवाओं के हित तथा वैश्विक मंच पर भारत का स्थान सुरक्षित करने की जिम्मेदारी साझा करते हैं। उन्होंने कहा कि, इन मंत्रालयों के जनादेश के हिस्से के रूप में आपको नए लक्ष्यों को प्राप्त करने में, नए दृष्टिकोण और नवीन तरीकों को अपनाने के लिए चुनौतियों का सामना करने हेतु तैयार रहना होगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने प्रशिक्षु अधिकारियों को सूचित किया कि वह उन संस्थानों द्वारा संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए काम कर रहे हैं, जो सुशासन हेतु क्षमता निर्माण के वास्ते समर्पित हैं, उदाहरण के तौर पर, एलबीएसएनएए, राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (एनसीजीजी), भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) सचिवालय प्रशिक्षण तथा प्रबंधन संस्थान (आईएसटीएम) आदि, ताकि दायरे में सीमित रहकर काम करने के बजाय, सहक्रियात्मक कार्यक्रम आयोजित हो सकें जो इन संस्थानों द्वारा किए गए व्यक्तिगत प्रयासों के पूरक होंगे।

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