Online Latest News Hindi News , Bollywood News

केन्द्रीय मंत्री ने सागर मंजूषा, सागर तारा और सागर अन्वेषिका सहित खोजी जलयानों की समीक्षा भी की: डॉ. जितेंद्र सिंह

देश-विदेश

केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री; लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अन्तरिक्ष मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारतीय उप-महाद्वीप के अग्रणी अनुसंधान जल पोत ‘सागर निधि’ का दौरा किया और उस पर मौजूद शीर्ष वैज्ञानिकों से बातचीत की।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव ने कहा कि डॉ. जितेंद्र सिंह चेन्नई बंदरगाह से रवाना होने वाले खोजी जलयान जहाज़ पर वैज्ञानिकों के साथ उपस्थित होने वाले पहले विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री हैं।

केन्द्रीय मंत्री ने शीर्ष वैज्ञानिकों के साथ पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान के अन्य खोजी जलयानों के बारे में समीक्षा भी की।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने समुद्री संसाधनों की खोज और बचाव कार्यों में भागीदारी, विशेष रूप से डीप ओशन मिशन के कार्यान्वयन के लिए ‘सागर निधि’ जलयान की भूमिका के महत्व को समझा। यह जल पोत, भू-वैज्ञानिक, मौसम संबंधी विज्ञान और समुद्र विज्ञान से जुड़े अनुसंधान करने में सक्षम है। साथ ही इसे ब्लू वाटर क्षमता के साथ डिजाइन किया गया है और यह समुद्र में लगातार 45 दिनों तक रहते हुए 10,000 समुद्री मील (19,000 किमी) तक का सफर तय कर सकता है।

केन्द्रीय मंत्री ने मंत्रालय की अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों के कार्यान्वयन में सहायता के लिए चेन्नई पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष और अधिकारियों द्वारा दिए गए समर्थन की सराहना की। उन्होंने भारत के अत्याधुनिक आइस-क्लास अनुसंधान पोत ओआरवी ‘सागर निधि’ पर सवार होकर कुछ समय के लिए समुद्री क्षेत्र का दौरा किया और इस दौरान उन्होंने जहाजों की वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी प्रदर्शन क्षमताओं की समीक्षा की। उन्हें बताया गया कि सागर निधि पहला भारतीय अनुसंधान जल पोत है, जो विषम प्राकृतिक परिस्थितियों का सामना करते हुए 66 डिग्री दक्षिणी अक्षांश (अंटार्कटिक जल) तक पहुंचा और इस दौरान इस जल पोत को 11 तूफानों का सामना करना पड़ा तथा इसने अधिकतम 73 समुद्री मील प्रति घंटा की गति से यात्रा की।

डॉ. जितेंद्र सिंह को इस खोजी यान में गियर से लेकर प्रॉपल्सन और नियंत्रण प्रणाली जैसी सुविधाओं से अवगत कराया गया। इस दौरान उन्होंने यह अनुभव किया कि ब्लू इकोनोमी के लिए समुद्री संसाधनों की खोज और उनके दोहन के लिए ऐसे प्रौद्योगिकी क्षमता वाले जहाजों की आवश्यकता है। उन्होंने समुद्र क्षेत्र में ज्ञान को बढ़ाने की दिशा में इन अनुसंधान जहाजों के बहुमूल्य योगदान की प्रशंसा की और सागर मंजुशा, सागर तारा तथा सागर अन्वेषिका सहित अनुसंधान जहाजों के बेड़े की समीक्षा भी की।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने डीप ओशन मिशन के मुद्दे पर चर्चा करते हुए कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस साल जून में 5 साल के लिए 4077 करोड़ रुपये की मंजूरी दी जिसका क्रियान्वयन का दायित्व पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय को सौंप गया है। उन्‍होंने कहा कि डीप ओशन मिशन एक बहु-मंत्रालयी, बहु-विषयक कार्यक्रम है जिसके अंतर्गत गहरे समुद्र से जुड़ी प्रौद्योगिकियों के विकास पर जोर दिया गया है और जिसमें गहरे समुद्र में खनन के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास से लेकर समुद्र के भीतर 6000 मीटर पानी की गहराई में जाकर खोज के लिए मानवयुक्त सबमर्सिबल जल पोत का विकास, गहरे समुद्र में मौजूद खनिज संपदा और समुद्री जैव विविधता के बारे में पता लगाने, समुद्र के भीतर अन्वेषण के लिए शोध जलयान का अधिग्रहण, गहरे समुद्र के बारे में जानकारी जुटाना और समुद्री जीव विज्ञान में क्षमता निर्माण शामिल है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि ब्लू इकोनोमी को बढ़ावा देने की दिशा में समुद्री संसाधनों का खनन, जैव विविधता, ऊर्जा, स्वच्छ जल इत्यादि समुद्री अभियानों के लिए प्रौद्योगिकी विकास में निजी संस्थानों को भी शामिल किया जाएगा। उन्‍होंने कहा कि वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ 3 लोगों को समुद्र में 6000 मीटर की गहराई तक ले जाने के लिए एक मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित करने की योजना है। इस मिशन के सभी घटकों पर काम 2021 में ही शुरू हो जाएगा।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पास मौसम पूर्वानुमान, जलवायु, समुद्री और भूकंपीय सेवाएं प्रदान करने और सजीव तथा निर्जीव संसाधनों का दोहन करने की जिम्मेदारी है। इसके अलावा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय समुद्र से जुड़ी प्रासंगिक प्रौद्योगिकियों और समुद्री विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के सर्वेक्षण के साथ-साथ खनिजों तथा ऊर्जा के लिए गहरे समुद्री अभियानों के विकास में भी शामिल है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) चेन्नई को समुद्री संसाधनों के स्थायी दोहन के लिए प्रौद्योगिकियों को विकसित करने का अधिकार है।

एनआईओटी ने लक्षद्वीप में पीने के पानी के लिए विलवणीकरण संयंत्र का विकास, समुद्र से ऊर्जा का दोहन, पुद्दुचेरी में समुद्र तट की पुनः स्थापना, दूर से संचालित पानी के नीचे चलने वाले वाहनों (आरओवी) का विकास और 5500 मीटर पानी की गहराई के लिए खनन मशीन जैसी तकनीकों का सफलतापूर्वक विकास और प्रदर्शन किया है। एनआईओटी के पास समुद्र से जुड़े डेटा संग्रह के भी अधिकार हैं जो मौसम की भविष्यवाणी, चक्रवात ट्रैकिंग और सुनामी की पूर्व चेतावनी में सहायक होते हैं।

समुद्र से जुड़ी प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास में यह अनुसंधान पोत (जहाज) एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में काम करते हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पास वर्तमान में ऐसे 6 जहाज- सागर निधि, सागर मंजुषा, सागरकन्या, सागर संपदा, सागर तारा और सागर अन्वेषिका हैं, जिनका उपयोग समुद्र के अवलोकन सहित कई महासागर अध्ययनों और अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।

भारत एक पारंपरिक समुद्री देश है जिसके पास समृद्ध समुद्री विरासत है। भारत के पास लगभग 2.37 मिलियन वर्ग किलोमीटर का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) है, जिसमें सभी सजीव और निर्जीव संसाधनों का उपयोग करने का विशेष कानूनी अधिकार भारत को प्राप्त हैं। इसके अलावा भारत को अंतर्राष्‍ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण द्वारा मध्य हिंद महासागर में 75000 वर्ग किलोमीटर, दक्षिणी हिंद महासागर में 10000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र भी आवंटित किया गया है। ये क्षेत्र मैंगनीज, कोबाल्ट और निकेल जैसे खनिजों के मामले में समृद्ध हैं। इन सजीव और निर्जीव समुद्री संसाधनों को निरंतर प्राप्त करने के लिए हमें समुद्र में अन्वेषण को बढ़ाने और समुद्र को बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है।

Related posts

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More