उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज बीमारियों को रोकने और लोगों के समग्र रहन-सहन में योगदान देने के लिए शुद्ध पेयजल और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने लोगों को आगाह करते हुए कहा कि कोविड महामारी के समाप्त होने के बाद भी लोगों को अपना बचाव कम नहीं करना चाहिए और बार-बार हाथ धोने की आदत को बनाए रखना चाहिए।
राष्ट्रीय वॉश कॉन्क्लेव-2022 का राजभवन, चेन्नई से वर्चुअल तरीके से उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने कहा कि बच्चों को ऐसे वातावरण में पलना-बढ़ना चाहिए जो भौतिक और भावनात्मक दोनों रूप से स्वस्थ हो। इसके लिए उन्होंने कहा कि शुद्ध पेयजल, स्वच्छता और स्वास्थ्यकर आदतों जैसे निवारक स्वास्थ्य उपायों को आंगनबाड़ियों और प्राथमिक विद्यालयों से शुरू करना चाहिए।
जल, स्वच्छता और आरोग्य शास्त्र (डब्ल्यूएएसएच-वॉश) पर तीन दिवसीय वर्चुअल सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर), हैदराबाद द्वारा जल शक्ति मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय, यूनिसेफ और अन्य विकास भागीदार के सहयोग से किया जा रहा है। इस सम्मेलन में ‘पंचायतों में पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्यकर आदतों को आगे बढ़ाने’ पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि ग्राम पंचायतों के लिए वॉश एजेंडा को आगे बढ़ाना महत्वपूर्ण है क्योंकि ग्रामीण जलापूर्ति का काम उन्हीं का है। श्री नायडू ने सभी ग्रामीण लोगों तक प्रभावी सेवा वितरण के लिए पंचायतों को संस्थागत मजबूती सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “यह शासन का एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर मैं हमेशा जोर देता हूं- हर क्षेत्र में सेवाओं का कुशलता से अंतिम व्यक्ति तक वितरण- चौतरफा विकास को तेज करने की कुंजी है।”
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि एक राष्ट्र के रूप में, हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि प्रत्येक घर को सभी बुनियादी सुविधाएं मिलें – उनमें से सबसे आवश्यक वॉश से संबंधित सुविधाएं हैं। उन्होंने यह माना कि प्रत्येक ग्रामीण परिवार को शुद्ध पेयजल और स्वच्छता उपलब्ध कराना एक बहुत बड़ा कार्य है। श्री नायडू ने कहा कि “इसे तभी संभव किया जा सकता है जब इस एकमात्र लक्ष्य और दृढ़ संकल्प के साथ जिम्मेदार लोगों का बड़ा समूह आपस में हाथ मिलाए।”
श्री नायडू ने कहा कि देश भर में ग्रामीण जल आपूर्ति नेटवर्क में जारी विस्तार के साथ कई सकारात्मक अनपेक्षित लाभ होना तय है। उन्होंने कहा कि इससे प्लम्बर, इलेक्ट्रीशियन, पानी के क्लोरीनीकरण में प्रशिक्षित लोगों की भारी मांग होगी। इसके साथ ही उन्होंने स्कैंडिनेवियाई देशों से सीखने का आह्वान किया जहां स्थानीय सरकारें टूट-फूट और रखरखाव के काम हेतु कुशल जनशक्ति की आवश्यकता को पूरा करने के लिए हब-एंड-स्पोक मॉडल का पालन करती हैं।
उपराष्ट्रपति ने हमारे देश में इस सर्वोपरि महत्व के विषय को उजागर करने के लिए सम्मेलन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि कई भारतीय भाषाओं में पानी शब्द का अर्थ ‘जीवन’ से जुड़ा है। बार-बार दोहराए जाने वाले वाक्य ‘जल ही जीवन है’ का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले इस कथन के पीछे अंतर्निहित सच्चाई को देखा था – इसलिए हमने सदियों से इस विशाल देश चारों तरफ बह रही जीवन देने वाली नदियों की पूजा की है।”
प्रत्येक ग्रामीण परिवार के लिए पर्याप्त मात्रा में शुद्ध पेयजल को मूलभूत आवश्यकता बताते हुए श्री नायडू ने कहा कि भारत इस संबंध में काफी प्रगति कर रहा है। उन्होंने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में वॉश सुविधाओं से संबंधित सभी पहलुओं पर और अधिक तेजी से नज़र रखने और अधिक ध्यान देने का आह्वान किया। वॉश अभियान में शामिल सरकार और गैर सरकारी संगठनों की पहल की सराहना करते हुए उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र में हमने जो प्रगति की है, उसका कई अन्य विकास संकेतकों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन- डब्ल्यूएचओ के एक अध्ययन का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति ने खराब स्वच्छता आदतों के कारण कई गांवों में भूजल स्रोतों के दूषित होने की समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया और जिम्मेदार व्यवहार अपनाकर कचरे के अंधाधुन निपटान की आदत को रोकने का आह्वान किया। इस महत्वपूर्ण विषय पर जन-जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि इसे जनता का आंदोलन यानी जन आंदोलन का रूप दिया जाए।
उद्घाटन समारोह के दौरान उपराष्ट्रपति ने एक कॉन्क्लेव बुकलेट का विमोचन भी किया। इस वर्चुअल कार्यक्रम में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत, एनआईआरडीपीआर के महानिदेशक डॉ. जी नरेंद्र कुमार, यूनिसेफ इंडिया की राष्ट्र प्रतिनिधि सुश्री गिलियन मेल्सोप, सीआरआई, एनआईआरडीपीआर प्रमुख डॉ. आर रमेश और अन्य लोगों ने भाग लिया।