हल्ला बोल!
– श्याम कुमार –
बोल जम्बूरे हल्ला बोल,
बोल जम्बूरे हल्ला बोल।
पगड़ी जिसकी चाहे खोल,
बोल जम्बूरे हल्ला बोल।
सेज बिछाकर लोकहितों की,
लोकतन्त्र का चीर-हरण कर,
कातिल, गुंडे, चोर, लुटेरे,
गले लगाकर इन्हें वरण कर।
फिर जनता का खून चूसकर
तोंद बना ले अपनी गोल।
जनता को कुछ नहीं चाहिए,
इसको तो झुनझना थमा दे।
प्यास बुझाने को इसकी, बस
थोड़ा अपना थूक चटा दे।
माल देश का लूट-लूटकर
स्वीस बैंक में खाता खोल।
ये अन्धी है, नहीं देखती,
गूंगी है ये नहीं बोलती।
चाहे जितने थप्पड़ मारो,
गाल घुमाना नहीं भूलती।
एक बार इसकी जय कहकर,
पांच बरस अपनी जय बोल।
‘सेकुलरिज्म’ का ढोल बजाकर,
सगे भाइयों को लड़वाकर।
राम शब्द का नाम मिटाकर,
सीता को कलमुंही बताकर।
भारतीय संस्कृति की जड़ में,
‘श्याम’ जहर का मट्ठा घोल।
(श्याम कुमार)
सम्पादक समाचारवार्ता