उपराष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि इतिहासकारों को सत्य के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए और तथ्य-आधारित शोध के माध्यम से भारतीय इतिहास के वस्तुनिष्ठ पुनर्मूल्यांकन का आह्वान किया।
ऐतिहासिक शोध में अधिक अकादमिक दृढ़ता की आवश्यकता पर बल देते हुए, उन्होंने “भारतीय इतिहास के चुनिंदा या अधूरे वर्णनों” के प्रति आगाह किया। उन्होंने कहा कि एक वैचारिक दृष्टिकोण के माध्यम से ऐतिहासिक तथ्यों को फिर से सुनाने से एक तोड़ा-मरोड़ा मत मिलेगा, जैसा कि औपनिवेशिक शासन के तहत किया गया था। इसके बजाय, उन्होंने इतिहासकारों से ‘ भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) जैसे विशिष्ट निकायों की मदद से इतिहास के वैज्ञानिक लेखन को मजबूत करने का आग्रह किया।
उपराष्ट्रपति संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) के स्वर्ण जयंती वर्ष के समापन समारोह में भाग ले रहे थे। उन्होंने इस अवसर पर उन्होंने आईसीएचआर द्वारा ‘भारत की स्वतंत्रता संग्राम’ पर एक प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया।
श्री नायडू ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम भारतीय नायकों पर अधिक शोध करने का भी आह्वान किया, जिनमें से कई ‘इतिहास की किताबों में केवल फुटनोट्स तक ही सीमित’ रह गई हैं। आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में, उन्होंने कहा, उनकी व्यक्तिगत कहानियों को उनके ‘दर्द, संघर्ष और उस महान गौरव को प्रकट करने के लिए लिखा जाना जाना चाहिए जिसके साथ उन्होंने मातृभूमि के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने कहा, ‘अनकहा इतिहास बताया जाना चाहिए।’
लोकप्रिय नायकों के बारे में, श्री नायडु ने सुझाव दिया कि ऐतिहासिक शोध को अधिक व्यापक तरीके से उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं की गहराई तक जाना चाहिए। उन्होंने ‘बिना किसी संगठनात्मक समर्थन के अंग्रेजों से लड़ने वाली आम जनता के अदम्य साहस’ को समझने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में आदिवासी और किसान विद्रोहों का अधिक विस्तार से अध्ययन करने की आवश्यकता पर बल दिया।
श्री नायडु ने देखा कि देश के विभिन्न हिस्सों में कई लोग अंग्रेजों के खिलाफ लड़े और वे सभी ‘राष्ट्रीय नायक’ हैं।
श्री नायडू ने कहा, ‘ हमारे स्वाधीनता सेनानियों के सर्वोच्च बलिदान और औपनिवेशिक शासकों से आजादी हासिल करने के उनके महान संघर्ष को याद करना हमारा कर्तव्य – सर्वोच्च देशभक्ति मिशन है।
भारत के सभ्यतागत मूल्यों जैसे भाईचारे, सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर बात करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘इन मूल्यों ने हमारी व्याख्या की है और हमारी सभ्यता के इतिहास में अटल रहे हैं। समय के साथ राजा और साम्राज्य बदल गए, लेकिन ये मूल्य हमारे लिए मार्गदर्शक प्रेरणा स्रोत बने रहे।’
उन्होंने कहा कि भौगोलिक विविधताओं, भाषाई, धार्मिक और जातीय विविधता के बावजूद, ‘हम विशिष्ट रूप से इन भारतीय मूल्यों को साझा करते हैं। इसलिए मैं कहता हूं, हम सब मूल रूप से सबसे पहले भारतीय हैं। हमारी क्षेत्रीय, धार्मिक और भाषाई पहचान बाद में आती है।’
लोगों से भारतीय इतिहास के बारे में गंभीरता से अध्ययन करने का आह्वान करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि इतिहास ‘किसी भी प्रकार की हीन भावना से हमारे दिमाग को बंधनमुक्त कर सकता है’। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम के किस्सों का वर्णन करने से ‘हमें न केवल राष्ट्रवाद के महत्व की बल्कि सामाजिक सद्भाव और भाईचारे की भी याद आएगी।’
यह सुझाव देते हुए कि ‘इतिहास एक विशिष्ट विषय नहीं होना चाहिए जिस पर कुछ चुने हुए लोगों का एकाधिकार हो, उपराष्ट्रपति ने कहा कि साहित्यिक और ऐतिहासिक स्रोतों और प्राचीन और मध्यकालीन युगों के लेखों के अनुवाद के क्षेत्र में बहुत काम किया जाना बाकी है।
श्री नायडु ने राज्य सरकारों से बच्चों के लिए महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थानों की नियमित यात्राओं का आयोजन करने का आह्वान किया। उन्होंने सुझाव दिया कि स्कूली पाठ्यपुस्तकों में स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन की कहानियों को रोचक और आकर्षक तरीके से शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि हमारी ऐतिहासिक शख्सियतों का जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होना चाहिए।’
उपराष्ट्रपति ने ऐतिहासिक शोध के 50 साल पूरे करने और “भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण अंतराल को भरने के लिए दृढ़ रहने” के लिए आईसीएचआर की सराहना की। उन्होंने लोगों, विशेषकर युवाओं से अपील की कि वे भारत के लिए स्वराज प्राप्त करने के महान संघर्ष को बेहतर ढंग से समझने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में आईसीएचआर द्वारा लगाई जा रही प्रदर्शनियों को देखें। उन्होंने सांसदों से प्रदर्शनी का दौरा करने और स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को जानने और आईसीएचआर के प्रयासों की सराहना करने का भी आह्वान किया।
कार्यक्रम के दौरान माननीय केन्द्रीय शिक्षा मंत्री और कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान, आईसीएचआर के अध्यक्ष प्रो. रघुवेन्द्र तंवर, आईसीएचआर के पूर्व अध्यक्ष प्रो. अरविंद पी. जामखेडकर, आईसीएचआर के सदस्य सचिव प्रो. कुमार रत्नम और अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।