बचपन में हम सभी ने लकड़ियों के गट्ठर की कहानी सुनी होगी। उस कहानी का आधार यह है कि एक अकेली लकड़ी टूट सकती है, लेकिन जब कई लकड़ियों को एक साथ बांध कर रख दिया जाता है तो फिर उन्हें तोड़ना कठिन होता है उसी तरह जब विचारों, परियोजनाओं और योजनाओं का आपस में विलय होता है तो चमत्कार होते हैं I माननीय प्रधान मंत्री जी इस विचार के ध्वजवाहक हैं। इस सरकार के लिए अभिसरण ( कन्वर्जेन्स ) की अवधारणा के महत्व को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि सरकार के पहले कार्यकाल के पहले बजट भाषण (2014) के दौरान स्वर्गीय अरुण जेटली जी ने अभिसरण ( कन्वर्जेन्स ) को सरकार के प्राथमिक संचालन सिद्धांतों में से एक के रूप में प्रस्तुत किया था। जल शक्ति मंत्रालय में हमने इस अवधारणा का सदा परीक्षण ही किया है। इसका सबसे अच्छा प्रदर्शन इसका जल जीवन मिशन और स्वच्छ भारत मिशन है जो एक साथ मिलकर काम करते हैं और परस्पर एक दूसरे को सक्षम बनाते हैं ।
हमारी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान खुले में शौच की समस्या को रोकना सर्वोच्च प्राथमिकता थी और इसके लिए स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया गया था। एक रिकॉर्ड सेटिंग के रूप में 10 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया था I लेकिन जो अब दिखता है वह एक दुस्वप्न भी हो सकता था अगर इस सरकार के पास ट्विन पिट डिज़ाइन पर शौचालय बनाने की दूरदर्शिता नहीं होती जिसमें मल एवं कीचड़ का एक-साथ उपचार होता है। दूसरे कार्यकाल में जल जीवन मिशन के माध्यम से घरेलू नल के पानी के कनेक्शन के मुद्दे को हल किया जा रहा है I अगस्त, 2019 में प्रधान मंत्री द्वारा इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की घोषणा के बाद से अब तक 50% से अधिक यानी 9.6 करोड़ ग्रामीण परिवारों को नल के पानी की आपूर्ति मिल रही है और विशेष रूप से 6.36 करोड़ से अधिक घरों में नल के पानी के कनेक्शन प्रदान किए गए हैं।
परन्तु जल जीवन मिशन को अब एक वैसी ही समस्या का सामना करना पड़ रहा है जैसी स्वच्छ भारत मिशन के सामने मल कीचड़ प्रबंधन यानी अपशिष्ट जल गंदले ( भूरे पानी ) की निकासी के सफल प्रबंधन के साथ आई थी । चूंकि सभी घरेलू घरों से अपशिष्ट रूप में बाहर जाने वाले पानी का 70% गंदले ( ग्रे) पानी में बदल जाता है और जिसे अगर अनुपचारित छोड़ दिया जाता है उसके तो अवांछनीय परिणाम होते हैं, ऐसे यही वह जगह है जहां सरकार ने अभिसरण की अवधारणा का उपयोग किया है।
सरकार ने प्लास्टिक कचरा प्रबंधन, जैविकरूप से विखण्डनीय ( बायोडिग्रेडेबल ) ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, ग्रेवाटर प्रबंधन और मल कीचड़ प्रबंधन पर ध्यान देने के साथ ही स्वच्छ भारत मिशन, चरण 2 शुरू किया। इस प्रकार, यह ध्यान देने योग्य है कि सरकार अपनी सोच में कैसे एकदम तैयार और नवीन होने में सक्षम रही है ? स्वच्छ भारत मिशन के लिए अभिनव प्रयोग था जब उसने ऐसे ट्विन पिट शौचालयों का उपयोग किया जिन्हें घरेलू नल कनेक्शन और कम मात्रा के मल कीचड़ की आवश्यकता नहीं थी और जब इसे घरेलू नल कनेक्शन प्रदान किया जाना था तब इसने समग्र स्वच्छता प्राप्त करने के लिए स्वच्छ भारत मिशन के साथ अभिसरण कर लिया जिससे यह ग्रे वाटर प्रबंधन का उपचार एक महत्वपूर्ण घटक बन गया।
स्वच्छ भारत मिशन फेज-2 के तहत अब तक 41,450 गांवों में ठोस और तरल कचरा प्रबंधन की व्यवस्था की जा चुकी है और करीब 4 लाख गांवों में न्यूनतम अपशिष्ट पानी रुका हुआ हैI ओडीएफ प्लस योजना के तहत लगभग 22 हजार गांवों को आदर्श ( मॉडल ) गांव का नाम दिया गया है और अन्य 51,000 गांव इस प्रतिष्ठित तमगे को हासिल करने की राह पर हैं। कम समय में ही जल जीवन मिशन और स्वच्छ भारत मिशन दोनों ने उल्लेखनीय प्रगति का प्रदर्शन किया है है, जो इस बात का जीवंत प्रमाण है कि अभिसरण ( कन्वर्जेन्स ) से क्या हासिल किया जा सकता है।
अभिसरण के अलावा हमारी सोच का एक और हृदयस्पर्शी पहलू पूर्णता की निरंतर खोज करना , सभी ढीले सिरों को समाहित करने, सेवा प्रदान करने में मौजूदा अंतराल को पाटने और हाशिए पर खड़े अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंचाने के लिए अडिग इच्छाशक्ति है। इसका एक उदाहरण यह है कि कैसे स्वच्छ भारत मिशन ( एसबीएम ) चरण -2 में एसबीएम चरण -1 से पहले की समस्याओं से किस तरह निपटा जा रहा है। एसबीएम की शुरुआत से पहले लगभग 1,20,000 टन मल कीचड़ को अनुपचारित छोड़ दिया गया था क्योंकि सभी शौचालयों में से दो-तिहाई मुख्य सीवर लाइनों से जुड़े ही नहीं थे। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के मामले में, भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण का पैमाना चौंका देने वाला है। ये दोनों समस्याएं एसबीएम चरण 2 के एजेंडे में अब खुद को पाती हैं। कुछ ही समय में 3.50 लाख गाँव प्लास्टिक डंप मुक्त हो गए हैं और जिसमें लगभग 4.23 लाख गाँव अपने यहां न्यूनतम कूड़ा दिखा रहे हैं। इसी तरह इसके लिए , लगभग 178 मल कीचड़ उपचार संयंत्र और लगभग 90,000 किलोमीटर नालियों का निर्माण किया गया है।
अभिसरण ( कन्वर्जेन्स ) की अभूतपूर्व शक्ति का हवाला देते हुए अक्सर एक उपलब्धि पर चर्चा नहीं की जाती है और वह है महिलाओं पर इसका प्रभाव। जहां जल जीवन मिशन महिलाओं को पानी लाने के लिए लंबी दूरी तय करने के कठिन परिश्रम से मुक्त करता है वहीं दूसरी ओर स्वच्छ भारत मिशन महिलाओं की गरिमा के इर्द-गिर्द केंद्रित है। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और यूनिसेफ द्वारा किए गए एक स्वतंत्र अध्ययन में यह पाया गया कि एक बड़ी संख्या (80%) ने शौचालय बनाने के अपने निर्णय के मुख्य संचालक के रूप में सुरक्षा और सुरक्षा को देखा जिससे 93% महिलाओं घरेलू शौचालयों का उपयोग किए जाने से अपने आप को सुरक्षित महसूस करने और सम्मान पाने की जानकारी मिली ।
जल जीवन मिशन भी गांव और जल स्वच्छता समितियों में महिलाओं के लिए 50% सदस्यता आरक्षित करके जमीनी स्तर पर परिवर्तन को उत्प्रेरित कर रहा है। उन्हें गांव में पेयजल आपूर्ति योजना की योजना, कार्यान्वयन, प्रबंधन और संचालन के हर पहलू में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। प्रत्येक गांव में 5 से अधिक महिलाओं को पानी की गुणवत्ता निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी गई है और कई महिलाओं को प्लंबर, मैकेनिक, पंप ऑपरेटर आदि के रूप में प्रशिक्षण देकर कुशल बनाया जा रहा है। इन अग्रणी महिलाओं का युवा लड़कियों के मन मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ेगा वह प्रभाव वास्तव में जबर्दस्त होगा । उनकी छत्र छाया में युवा लड़कियां आगे बढ़ेंगी और भविष्य में अन्य स्थापित लैंगिक भूमिकाओं में अपनी जगह बना लेंगी।
एक अंतिम अवलोकन जिसे हमेशा ही अनदेखा किया जाता है, वह है देश के सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) पर इन योजनाओं का प्रभाव। 2006 में, डब्ल्यूएसपी, एशियाई विकास बैंक ( एडीबी ) और यूकेएआईडी के एक संयुक्त अध्ययन में यह पाया गया कि अपर्याप्त स्वच्छता की लागत भारत में 2.4 ट्रिलियन रुपये अथवा 53 अरब 80 करोड़ ( 53.8 बिलियन ) डॉलर थी I यानी उस समय भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 6% थी I इस तरह की चौंका देने वाली वास्तविकताओं के बावजूद इस निरंतर खतरे को दूर करने के लिए तब तक बहुत कुछ प्रयास या अभियान नहीं शुरू हुए जब तक कि वर्तमान सरकार ने इसे संभव नहीं बनाया। आज स्वच्छ भारत अभियान भारतीय सकल घरेलू उत्पाद के 6.4% की बचत के अलावा 53,000 प्रति परिवार का वार्षिक लाभ देता है और जल जीवन मिशन आईडीई द्वारा की गई गणना के अनुसार भारतीय महिलाओं के लिए 15 करोड़ कार्य दिवस प्रतिवर्ष बचाएगा।
किसी भी अन्य सरकार के लिए, भारत को खुले में शौच से मुक्त करने या फिर हर घर में घरेलू नल कनेक्शन प्रदान करने की बात अपने आप में राजनीतिक रूप से चातुर्य माना जाता। लेकिन स्वच्छ भारत मिशन ( एसबीएम ) अथवा जल जीवन मिशन ( जेजेएम ) के लिए सफलता की मधुर स्वर लहरियां कभी भी इस सरकार के लिए लोरी नहीं होकर अगली बड़ी और कठिन चुनौती के लिए एक जागृत करने वाला आह्वान है। इस तरह के विश्वास के पीछे के वास्तुकार माननीय प्रधान मंत्री हैं जो कोई शॉर्टकट नहीं लेते हैं। वह सामाजिक समस्याओं की जड़ों में एक चीरा लगाने में विश्वास रखते हैं और अभिसरण ( कन्वर्जेन्स ) एक ऐसा ही उपकरण है जिसका उपयोग करने के लिए वह अक्सर जोर देते हैं । यह एक सबक है जिसे हमने दिल पर ले लिया है और यह एक ऐसा सबक है जो उस मानचित्र की तरह काम करता है जब हम कभी-कभी उस राह से से भटक जाते हैं जिसे हासिल करने के लिए ही हम प्रयास कर रहे हैं ।
– गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री