केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग, उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्री श्री पीयूष गोयल द्वारा आज जिनेवा में विश्व व्यापार संगठन के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान कृषि पर थीमेटिक सत्र में दिए गए वक्तव्य का मूल पाठ इस प्रकार है:
‘हम बातचीत के तहत एक सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं जो दुनिया भर में लाखों लोगों के जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।
कृषि विकासशील देशों में अधिकतर किसानों और कृषि श्रमिकों के लिए न केवल आजीविका का स्रोत है बल्कि यह उनकी खाद्य सुरक्षा, उनके पोषण, देश के विकास और बड़े पैमाने पर लोगों के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है।
हालिया खाद्य संकट, कोविड 19 के दौरान और वर्तमान भू-राजनीतिक परिस्थिति, के कारण कई देश गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। मिस्र और श्रीलंका के मेरे दोस्तों ने कल इस बारे में बात की थी और हमें यह देखने की जरूरत है कि क्या मसौदा घोषणाओं और निर्णयों से उनके देशों में खाद्य उपलब्धता में सुधार करने में मदद मिलेगी।
वास्तव में ये दोनों सदस्य खाद्य सुरक्षा घोषणा के मसौदे पर सहमत नहीं हैं लेकिन उन्होंने पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग के मुद्दे के तत्काल स्थायी समाधान की मांग की है।
हम एक ऐसी स्थिति में हैं जहां पब्लिक स्टॉक होल्डिंग के स्थायी समाधान के बिना अस्थायी घोषणाओं से देशों को मदद नहीं मिल रही है। नौ साल से अधिक समय से लंबित इस मुद्दे को निपटाने पर अब भी ध्यान नहीं दिया रहा है।
भारत को खाद्य किल्लत वाले देश से व्यापक तौर पर आत्मनिर्भर खाद्य संपन्न देश बनने का अनुभव रहा है। हमारे यहां सब्सिडी एवं अन्य हस्तक्षेपों के रूप में सरकारी मदद ने इस पर्याप्तता को हासिल करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसलिए हम एलडीसी सहित सभी विकासशील देशों की ओर से सामूहिक तौर पर अपनी यात्रा और अपने अनुभव के आधार पर लड़ रहे हैं। जरा उरुग्वे दौर से लेकर अब तक की कहानी पर गौर करें जहां 1985-86 से 1994 के बीच 8 साल की बातचीत के बाद मारकेश समझौते के तहत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की स्थापना हुई थी। कृषि को हमेशा एक कच्चा सौदा और असंतुलित नतीजा मिला है। जो बड़ी सब्सिडी देकर बाजारों को विकृत कर रहे थे, वे अपनी सब्सिडी को सुरक्षित करने में कामयाब रहे जो उस समय प्रचलित थे। ऐसे में अन्य देश, खासकर विकासशील देश अपने लोगों के लिए विकास और समृद्धि लाने की अपनी ही क्षमता से वंचित हो रहे थे।
हम जो चर्चा कर रहे हैं वह विकसित देशों के लिए काफी हद तक अनुकूल एक समझौते के नियम हैं जो उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के लिए काम करते हैं और जो पहले से ही विकसित दुनिया को अधिक अधिकार प्रदान करते हैं। जिन गणनाओं के तहत विकसित दुनिया पर सवाल उठाए जाते हैं वे 35 साल पहले प्रचलित की स्थितियों के आधार पर त्रुटिपूर्ण हैं। कीमतों में वृद्धि, मुद्रास्फीति, बदलते परिदृश्य और इसे युक्तिसंगत बनाने के लिए वर्षों से कोई व्यवस्था न होने के कारण मौजूदा परिस्थिति के लिए प्रासंगिकता के बिना हम 86 के स्तर पर बरकरार है और आज हम उसका नतीजा भुगत रहे हैं।
आज के अपने पहले के हस्तक्षेप में मैंने अपने अन्य दोस्तों को सचेत करने के लिए इसका उल्लेख किया था कि एक बार फिर मत्स्य पालन में ऐसा करने की कोशिश की जा रही है। 11 दिसंबर 2013 के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में निर्णय लिया गया था और मैं ‘निर्णय’ शब्द को दोहराता हूं क्योंकि सदस्यों ने 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन द्वारा स्वीकार किए गए मुद्दों के स्थायी समाधान के लिए समझौते पर बातचीत करने के लिए एक अंतरिम तंत्र स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की गई थी। उसकी प्रक्रिया तय हो गई थी। हम सब इस पर सहमत हुए थे और विकसित देशों के साथ व्यापार सुविधा पर समझौते को काफी उत्सुकता के साथ अपनाया गया। हमने समझौता किया, उनके व्यापार सुविधा समझौते पर सहमति व्यक्त की और पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग के स्थायी समाधान के लिए समझौता किया।
वास्तव में, पैरा 8 कहता है और मैं इसे उद्धृत करता हूं, ‘सदस्य स्थायी समाधान के लिए सिफारिशें करने के उद्देश्य से इस मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए कृषि समिति में एक वर्क प्रोग्राम स्थापित करने के लिए सहमत हुए।’ पैरा 9 कहता है, ‘सदस्य 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन से पहले पूरा करने के उद्देश्य के साथ वर्क प्रोग्राम के लिए प्रतिबद्ध हैं।’ और पैरा 10 कहता है, ‘वर्क प्रोग्राम की प्रगति के बारे में जनरल काउंसिल 10वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन को रिपोर्ट करेगा।’ मैं आपको इसलिए याद दिला रहा हूं क्योंकि हमें उस मुद्दे पर एक बार फिर चर्चा शुरू करने का सुझाव दिया गया है जिसे 28 नवंबर 2014 को जनरल काउंसिल के दस्तावेज में दोहराया गया था और जिसमें कहा गया था कि विकासशील देशों के खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिए पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग अंतिम होगी। वास्तव में, 2015 में भी मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के 10वें सत्र में इस पर ध्यान दिया गया था और निर्णय लिया गया था कि वे 2014 के जनरल काउंसिल के निर्णय की पुष्टि करते हैं और इस निर्णय को स्वीकार करने और अपनाने के लिए सभी ठोस प्रयास करने के लिए रचनात्मक तौर पर कार्य करने के लिए सहमत हैं।
मैं यह दु:ख के सथ कह रहा हूं क्योंकि हम 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन तक पहले ही पहुंच चुके हैं। इस मंत्रिस्तरीय सम्मेलन का आयोजन देरी से हुआ है और तकनीकी तौर पर यह 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन का समय है लेकिन हमें स्थायी समाधान को अंतिम रूप देना अभी बाकी है। मुझे लगता है कि ऐसा करना संभव है। हमारे पास बिल्कुल स्थापित और प्रमाणित तंत्र उपलब्ध हैं और दस्तावेज मेज पर हैं। इन्हें अपनाया और अंतिम रूप दिया जा सकता है ताकि हम इस अति महत्वपूर्ण मुद्दे को खत्म कर सकें।
डब्ल्यूटीओ व्यापार के लिए एक संगठन है लेकिन यह याद रखना चाहिए कि व्यापार से पहले भूख आती है और कोई खाली पेट व्यापार नहीं कर सकता।
पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग के मुद्दे को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाने और खाद्य असुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में 80 से अधिक देश एक साथ खड़े हैं।
विडंबना है कि एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर (एओए) विकसित सदस्यों को एग्रीगेट मेजर ऑफ सपोर्ट (एएमएस) के रूप में भारी सब्सिडी प्रदान करने और आगे इन सब्सिडी को कुछ उत्पादों पर असीमित तरीके से केंद्रित करने के लिए लचीलापन प्रदान करता है, लेकिन उसमें एलडीसी सहित अधिकतर विकासशील देशों के लिए समान लचीलापन उपलब्ध नहीं है।
विकासशील देशों के न्यूनतम समर्थन अधिकारों द्वारा व्यापार को खराब करने के नाम पर डरना व्यर्थ है।
डब्ल्यूटीओ को मिली जानकारी के अनुसार, विभिन्न देशों द्वारा प्रदान की जा रही वास्तविक प्रति किसान घरेलू सहायता में भारी अंतर है। विकासशील देशों की तुलना में कुछ विकसित देशों में यह अंतर 200 गुना से अधिक है। इसलिए विकसित देश अधिकतर विकासशील देशों की क्षमता के मुकाबले 200 गुना से अधिक समर्थन दे रहे हैं।
इसके बावजूद कुछ सदस्य कम आय और कम संसाधन वाले गरीब किसानों को मिल रहे मामूली सरकारी मदद से भी वंचित करने पर जोर दे रहे हैं।
विकासशील देशों के लिए अलग एवं विशेष व्यवस्था हमारे लिए महत्वपूर्ण है और इसलिए इसे वार्ता के दायरे में लाना स्वीकार्य नहीं है।
हमें लगता है कि कृषि पर मंत्रिस्तरीय निर्णयों का मसौदा विस्तृत है और यह दोहा दौर के निर्णय से कहीं आगे है और इसमें अब तक की प्रगति पर गौर नहीं किया गया है।
बहरहाल, भारत कमजोर देशों को खाद्य सहायता प्रदान करने में हमेशा सक्रिय रहा है। विश्व खाद्य कार्यक्रम को निर्यात प्रतिबंधों से छूट प्रदान करने के प्रस्ताव पर, जबकि हम ऐसी छूटों का समर्थन करते हैं, हमारा मानना है कि हमें जी2जी लेनदेन के लिए भी प्रावधान करना चाहिए ताकि वास्तव में हम व्यापक दृष्टिकोण के साथ खाद्य सुरक्षा- वैश्विक और घरेलू दोनों के लिए, सुनिश्चित कर सकें, विशेष रूप से इस तथ्य पर विचार करते हुए कि आकार, व्यापकता और वित्त पोषण के लिहाज से विश्व खाद्य कार्यक्रम की अपनी सीमाएं हैं।
मैं डब्ल्यूटीओ के सदस्यों से आग्रह करता हूं कि 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग के स्थायी समाधान के इस कार्यक्रम पर गंभीरता से विचार करें ताकि दुनिया को यह संदेश मिले कि हमें परवाह है, हम गरीबों की परवाह करते हैं, हम कमजोर लोगों की परवाह करते हैं, हम खाद्य सुरक्षा की परवाह करते हैं, हम दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए कहीं अधिक संतुलित और न्यायसंगत भविष्य की परवाह करते हैं।’