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प्रदेश सरकार मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के प्रति बेहद गम्भीर: रविदास मेहरोत्रा

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: नवजात शिशु की मृत्यु दर में कमी लाने के लिए चिकित्सकों को अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है। प्रदेश में प्रतिवर्ष 56 लाख से अधिक बच्चों का जन्म हो रहा है, जबकि 26 लाख बच्चे सरकारी अस्पतालों में पैदा होते हैं। इसके अलावा 20 लाख शिशुओं का जन्म अभी भी घरों में रहा है। प्रतिवर्ष कतिपय कारणों से 3.40 लाख बच्चों की मृत्यु हो जाती है। यह स्थिति बहुत ही चिन्तनीय है। नवजात शिशुओं की एक से छः सप्ताह तक बेहतर देख-भाल से ही शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है। खासतौर पर बच्चों का जन्म अस्पतालों में हाने से काफी हद तक शिशु मृत्यु दर पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसमें आशा बहुओं की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। प्रदेश सरकार राज्य में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के प्रति बेहद गम्भीर है।

यह विचार प्रदेश के मातृ, शिशु एवं परिवार कल्याण राज्यमत्रंी (स्वतंत्र प्रभार) श्री रविदास मेहरोत्रा ने आज यहां इंदिरानगर स्थित राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान, उ0प्र0 में नवनियुक्त चिकित्साधिकारियों हेतु आयोजित आधारभूत प्रशिक्षण तथा तीन दिवसीय राष्ट्रीय शिशु सुरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बच्चों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि प्रसव अस्पताल में ही हो। प्रदेश सकार जननी सुरक्षा योजना के अन्तर्गत महिलाओं को ग्रामीण क्षेत्र में 1400 रुपये व शहरी क्षेत्र में 1000 रुपये उपलब्ध करा रही हैं, आशा कार्यकत्र्री को संस्थागत प्रसव कराने हेतु 600 रुपये दिये जाने का प्राविधान किया गया है।
श्री मेहरोत्रा ने कहा कि अस्पतालों में डाक्टर, नर्स, वार्ड व्बाय और आशाओं की संख्या कम है, इस कमी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। जहां एम्बुलेंस नहीं पहुँच सकती है, वहां आशा कार्यकत्रियाँ पहुँच जांए। बहुत ही गम्भीर विषय है कि प्रदेश में वर्तमान में 1000 बेटे और 900 बेटियों का अनुपात है। इसका तात्पर्य यह है कि इनमें से बहुत सी बेटियों की भ्रूण हत्या कर दी जाती है। यह एक जघन्य अपराध है। बेटी को भी दुनिया में जीने का हक है। किसी भी कीमत पर भ्रूण हत्या न होने पाए। सरकार की यह मंशा है कि अस्पतालों के अन्दर पर्याप्त इलाज की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि दवा और इलाज की कमी से मृत्यु न होने पाए।
श्री मेहरोत्रा ने कहा कि प्रदेश में 2.7 करोड़ बच्चों की उम्र 5 वर्ष से कम है। इन बच्चों को उचित देख-भाल की आवश्यकता है, ताकि इनमें किसी भी प्रकार का कुपोषण न होने पाए। उन्होंने कहा कि शिशु के जन्म के उपरान्त दो मिनट का समय बहुत संवेदनशील है। इस दौरान शिशु को अतिविशिष्ट देख-भाल की जरूरत है। इसके लिए चिकित्सकों को और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दस्त नियंत्रण पखवाड़े के तहत 100 प्रतिशत जिंक और ओ0आर0एस0 के वितरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। उन्होंने कहा कि पूर्वांचल में 38 जिले हैं, जहां दिमागी बुखार से बहुत से बच्चों की मौत होती है। वहाँ पर शत-प्रतिशत टीकाकरण होना चाहिए, इसके लिए हम लोग प्रयास कर रहे हैं। श्री मेहरोत्रा ने कहा कि एक साल से कम के बच्चों की मृत्यु अधिक हो रही है। हमें इस मृत्यु को रोकने का प्रयास करना है। हमारे प्रयास के बावजूद भी प्रदेश में 56 लाख बच्चों में से 26 लाख बच्चे सरकारी अस्पताल में, 10 लाख बच्चे प्राइवेट नर्सिंग होम्स में और 20 लाख बच्चे घर पर ही पैदा हो रहे हैं।
इसके पूर्व आधारभूत प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रतिभागी चिकित्सा अधिकारियों ने मंत्री को अपने कार्य-स्थल की समस्याओं से अवगत कराया। चिकित्सा अधिकारियों ने बताया कि उन्हें वेतन मिलने में देर हो जाती है। एक चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि उनके यहाँ पानी की उपलब्धता बहुत कम है, जिससे कि दिन-प्रतिदिन के कार्य में परेशानी होती है। एक चिकित्सा अधिकारी ने विद्युत आपूर्ति की समस्या से अवगत कराते हुए सुझाव दिया कि जनरेटर के लिए अतिरिक्त ईंधन दिया जाना चाहिए, ताकि मरीजों के साथ-साथ चिकित्सा अधिकारी भी उसका प्रयोग कर सकें। आवास के सम्बन्ध में समस्या बताते हुए एक चिकित्सा अधिकारी ने सुझाव दिया कि सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र स्तर पर अच्छे आवास उपलब्ध हों तथा उन्हें चिकित्सा अधिकारियों और अन्य स्टाफ को आवंटित कर दिया जाए ताकि एक ओर वे रह कर मरीजों को देख सकें वहीं उनके परिवार भी एक समूह में रह कर सुरक्षित महसूस कर सकें। सभी चिकित्सा अधिकारियों ने आधारभूत प्रशिक्षण कार्यक्रम को अत्यन्त उपयोगी बताते हुए इसकी अवधि बढ़ाने का आग्रह किया।
इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डा0 एन0एल0 श्रीवास्तव ने आधारभूत प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में उपस्थित अतिथियों को जानकारी दी। प्रशिक्षण कार्यक्रम में स्वास्थ्य सलाहकार राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, डा0 बी0एस0 अरोड़ा, पूर्व परिवार कल्याण महानिदेशक, डा0 मीनू सागर एवं लखनऊ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा0 एस0एन0एस0 यादव ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

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