लखनऊ: प्रदेश में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए गुणवत्तापूर्ण एवं सुलभ स्वास्थ्य सेवायें प्रदान की जा रही हैं। स्वास्थ्य और स्वच्छता एक दूसरे के पूरक हैं। सावर्जनिक राजकीय स्वास्थ्य इकाइयों में रोगियों का भार अधिक होने के कारण पारस्परिक संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए स्वच्छता और हाईजीन पर विशेष ध्यान देना होता है। कोविड-19 के संक्रमण से दुनिया अभी उबर नहीं सकी है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-2021) के अनुसार प्रति लाख जीवित प्रसव के आधार पर मातृ मृत्यु दर 167 है, जिसे सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल-2030 के अनुसार कम कर के 70 पर लाने का लक्ष्य रखा गया है। इसी प्रकार नवजात शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित प्रसवों के आधार पर 28 है जिसे SDG के अनुसार 2030 में 12 तक लाने का लक्ष्य रखा गया है। स्वास्थ्य सेवाओं और स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण से बचाने और सुरक्षित रखने के लिए इकाइयों में गुणवत्तापरक स्वच्छ स्वास्थ्य सेवायें प्रदान करने के लिए प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग कृत-संकल्प है।
चिकित्सा इकाईयों में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैण्डर्ड‘ मानकों को स्थापित किया गया है, जिसके अन्तर्गत नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस सर्टिफिकेशन वर्ष 2013 में प्रारम्भ किया गया। उक्त NQA प्रमाणीकरण हेतु तीन चरणों में असेसमेंट निर्धारित चेकलिस्ट के माध्यम से किया जाता है ।
अन्तिम चरण का असेसमेंट भारत सरकार द्वारा नामित राष्ट्रीय स्तर पर इम्पैनल्ड एक्सटर्नल असेसर्स द्वारा सघन रूप से किया जाता है। चिकित्सा इकाईयों में मातृ एवं बाल स्वास्थ्य में सुधार एवं प्रमाणीकरण हेतु ‘लक्ष्य‘ प्रमाणीकरण तथा ‘मुस्कान‘ प्रमाणीकरण कार्यक्रम भी संचालित किया जा रहा है।
आगामी समय में अधिक से अधिक चिकित्सा इकाईयों के प्रमाणीकरण हेतु रणनीति तैयार की जायेगी, जिससे कि प्रदेश की जनता गुणवत्तापरक उपचार ‘जीरो पाकेट खर्च‘ के रूप में हो सके।
जिला चिकित्सालय श्रेणी में प्रदेश को पूरे राष्ट्र में ‘प्रथम‘ स्थान प्राप्त करने का गौरव प्राप्त हुआ है। अब तक प्रदेश के 46 जनपदों की 81 चिकित्सा इकाईयाँ NQA प्रमाणीकरण प्राप्त कर चुकी हैं, जिसमें 43 जनपद स्तरीय, 16 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र तथा 22 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र सम्मिलित हैं।