लखनऊ: पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वीजन का आशीर्वाद प्राप्त होगा। जन्माष्टमी पूरे भारत में उस त्योहार का उत्साह देखने योग्य होता है। चारों ओर का वातावरण भगवान श्रीकृष्ण के रग में डूबा हुआ होता है। जन्माष्टमी पूर्ण आस्था व श्रृद्धा के साथ मनाया जाता है। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्री को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्र रुप में भगवान का जन्म हुआ था।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत का पालन करने से भक्त को मोक्षघ की प्राप्ति होती है। यह व्रत कामनाओं को पूर्ण करने वाले होता है। श्रीकृष्ण की पूजा अराधना का यह पावन पर्व सभी को कृष्ण भक्ति से परिपूर्ण कर देता है। इस दिन व्रत उपवास रखे जाते हैं व कृष्ण भक्ति के गीतों का श्रवण किया जाता है।
घर के पूजागृह व मंदिरों मे श्रीकृष्ण लीला की झाँकियां सजाई जाती हैं। जन्माष्टमी पर्व के दिन सुबह उठ कर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र नदियों में पोखरों में या घर पर ही स्नान इत्यादि करके जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लिया जाता है।
पंचामृत व गंगा जल से माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण की सोने चाँदी, तांबा, पीतल, मिट्टी की मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करते हैं व भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति नए वस्त्र धारण कराते हैं।
बालगोपाल की प्रतिमा को पालने में बिठाते हैं व सोलह उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करते हैं। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नामों का उच्चारण करते हैं व उनकी मूर्तियां भी स्थापित करते हैं। इसके साथ ही पंचामृत में तुलसी डालकर व माखन मिश्री का भोग लगाते हैं।
रात्रि समय भागवद्गीता का पाठ तथा कृष्ण लीला का श्रवण एवं मनन करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का दूध, दही, शहद, यमुना जल आदि से अभिषेक किया जाता है तथा भगवान श्री कृष्ण जी का षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। भगवान का श्रृंगार करके उन्हें झूला झुलाया जाता है, श्रद्धालु भक्त मध्यरात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं।
जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण, कीर्तन किए जाते हैं व अर्धरात्रि के समय शंख तथा घंटों के नाद से श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव को संपन्न किया जाता है।