लखनऊ: प्रदेश में फसलों कीे प्रति वर्ष कुल क्षति की 26 प्रतिशत क्षति रोगों द्वारा होती है। रोगों से होने वाली क्षति
कभी-कभी महामारी का रूप भी ले लेती है और इनके प्रकोप से शत-प्रतिशत तक फसल नष्ट होने की सम्भावना बनी रहती हैं। अतः बुवाई से पूर्व सभी फसलों में बीजशोधन का कार्य शत-प्रतिशत कराया जाना नितान्त आवश्यक है।
यह जानकारी कृषि निदेशक श्री ज्ञान सिंह ने दी है। उन्होंने बताया कि बीजशोधन का मुख्य उद्देश्य बीज जनित /भूमि जनित रोगों को रसायनों एवं बायोपेस्टीसाइड्स से शोधित कर देने से बीजों एवं मृदा पर पाये जाने वाले रोगों के कारक को नष्ट करना होता है। बीजशोधन हेतु प्रयोग किए गए रसायनों/ बायोपस्टीसाइड्स को बुवाई के पूर्व सूखा/स्लरी के रूप में अथवा कभी-कभी संस्तुतियों के अनुसार घोल बनाकर मिलाया जाता है जिससे इनकी एक परत बीजों की बाहरी सतह पर बन जाती हैं जो बीज के साथ पाये जाने वाले शुक्राणुओं/जीवाणुओं को अनुकूल परिस्थितियों में नष्ट कर देती है।
श्री सिंह ने बताया कि प्रदेश में रबी की प्रमुख फसलों में शत-प्रतिशत बीजशोधन कराने हेतु 212.67 लाख कुन्तल बीजशोधन का लक्ष्य रखा गया है जिसमें से 15.72 लाख कुन्तल बीज कृषि विभाग के माध्यम से 45.24 लाख कुन्तल बीज अन्य संस्थाओं तथा शेष 151.71 लाख कुन् तल बीज कृषक स्तर पर शोधित कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। कृषि विभाग द्वारा अधिकारियों/कर्मचारियों के माध्यम से बीजशोधन हेतु 16 अक्टूबर से 15 नवम्बर 2016 तक अभियान के रूप में समस्त ग्राम पंचायत में कृषकों को प्रेरित किया जायेगा।
कृषि निदेशक ने बताया कि रबी की प्रमुख फसलों गेहूँ, जौ, चना, मटर, मसूर, राई/सरसांे, आलू एवं गन्ना के बीजशोधन हेतु संस्तुतियों के अनुसार कृषि विभाग द्वारा प्रमुख कृषि रक्षा रसायनों थिरम 75 प्रतिशत डब्ल्यू0एस0, कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0, ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2.0 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 एवं स्यूडोमोनास फ्लोरीसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 की व्यवस्था सुनिश्चित की जा चुकी है।
श्री सिंह ने बताया कि खाद्यान्न उत्पादन के राष्ट्रीय कार्यक्रम तथा बीजशोधन अभियान को सफल बनाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, स्वयं सेवी संगठन, स्वयं सहायता समूह, महिला संगठन, कृषि तकनीकी प्रबन्ध अभिकरण (आत्मा), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के विभिन्न कार्यक्रम, कृषि रक्षा अनुभाग की कीट/रोग नियंत्रण योजना एवं प्रगतिशील किसानों के साथ ही साथ पेस्टीसाइड्स एसोसिएशन, थोक और फुटकर विक्रेताओं का सहयोग अपेक्षित है।
यह जानकारी कृषि निदेशक श्री ज्ञान सिंह ने दी है। उन्होंने बताया कि बीजशोधन का मुख्य उद्देश्य बीज जनित /भूमि जनित रोगों को रसायनों एवं बायोपेस्टीसाइड्स से शोधित कर देने से बीजों एवं मृदा पर पाये जाने वाले रोगों के कारक को नष्ट करना होता है। बीजशोधन हेतु प्रयोग किए गए रसायनों/ बायोपस्टीसाइड्स को बुवाई के पूर्व सूखा/स्लरी के रूप में अथवा कभी-कभी संस्तुतियों के अनुसार घोल बनाकर मिलाया जाता है जिससे इनकी एक परत बीजों की बाहरी सतह पर बन जाती हैं जो बीज के साथ पाये जाने वाले शुक्राणुओं/जीवाणुओं को अनुकूल परिस्थितियों में नष्ट कर देती है।
श्री सिंह ने बताया कि प्रदेश में रबी की प्रमुख फसलों में शत-प्रतिशत बीजशोधन कराने हेतु 212.67 लाख कुन्तल बीजशोधन का लक्ष्य रखा गया है जिसमें से 15.72 लाख कुन्तल बीज कृषि विभाग के माध्यम से 45.24 लाख कुन्तल बीज अन्य संस्थाओं तथा शेष 151.71 लाख कुन् तल बीज कृषक स्तर पर शोधित कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। कृषि विभाग द्वारा अधिकारियों/कर्मचारियों के माध्यम से बीजशोधन हेतु 16 अक्टूबर से 15 नवम्बर 2016 तक अभियान के रूप में समस्त ग्राम पंचायत में कृषकों को प्रेरित किया जायेगा।
कृषि निदेशक ने बताया कि रबी की प्रमुख फसलों गेहूँ, जौ, चना, मटर, मसूर, राई/सरसांे, आलू एवं गन्ना के बीजशोधन हेतु संस्तुतियों के अनुसार कृषि विभाग द्वारा प्रमुख कृषि रक्षा रसायनों थिरम 75 प्रतिशत डब्ल्यू0एस0, कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0, ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2.0 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 एवं स्यूडोमोनास फ्लोरीसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 की व्यवस्था सुनिश्चित की जा चुकी है।
श्री सिंह ने बताया कि खाद्यान्न उत्पादन के राष्ट्रीय कार्यक्रम तथा बीजशोधन अभियान को सफल बनाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, स्वयं सेवी संगठन, स्वयं सहायता समूह, महिला संगठन, कृषि तकनीकी प्रबन्ध अभिकरण (आत्मा), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के विभिन्न कार्यक्रम, कृषि रक्षा अनुभाग की कीट/रोग नियंत्रण योजना एवं प्रगतिशील किसानों के साथ ही साथ पेस्टीसाइड्स एसोसिएशन, थोक और फुटकर विक्रेताओं का सहयोग अपेक्षित है।
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