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राष्‍ट्रपति ने नौंवे विश्‍व मानवता समागम, शक्ति ओर अध्‍यामिकता का उद्घाटन किया

देश-विदेश

नई दिल्ली: राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने एसोचेम( एएसएसओसीएचएएम), श्री फाउंडेशन और टाइम्‍स समूह द्वारा आयोजित नौंवे विश्‍व मानवता समागम, शक्ति और अध्‍यामिकता का आज नई दिल्‍ली में उद्घाटन किया।

इस अवसर पर राष्‍ट्रपति महोदय ने कहा कि इस समागम को विषय वस्‍तु ‘ सच भारत: काम पर अध्‍यामिकता’ बहुत ही प्रासंगिक है। उन्‍होंने कहा कि अध्‍यामिकता किसी भी व्‍यकित के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण है। इस समय धर्म के कारण इससे भ्रम पैदा होता है लेकिन अध्‍यामिकता का इससे अधिक गुढ़ अर्थ है जिसका हमारे दैनिक जीवन और काम के स्‍थान से गहरा संबंध है। अध्‍यामिक होना काम के प्रति समर्पण के सथ समर्पित होना भी है। देश के लिए कठोर परिश्रम करना भी समर्पण है। उन्‍होंने आशा जताई कि मंच इस तरह के संदेश प्रसार करने में मदद करेगा। ‘

राष्‍ट्रपति महोदय ने कहा कि आज जब हम अधिकाधिक एकाकी होते जा रहे हैं ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि हम अपने विचारों और कार्यों का दिशा देने में अध्‍यामिकता का प्रयोग करें। अध्‍यामिकता हमें यह बताती है कि हम दूसरों से कैसा व्‍यवहार करें। सभी धर्म मनुष्‍य में सुधार के लिए मूल्‍यों का उपदेश देते हैं। अध्‍यामिकता का अर्थ अपने में दया, करुणा और निस्‍वार्थता को प्रत्‍यारोपित करना है। अगर ये नैतिक मूल्‍य हमारे नागरिकों में पनपे तो कार्यलायों और फैक्‍टरियों में कार्य की संस्‍कृति पैदा हेागी। इससे हमारे देश के नागरिक खुशहाल होंगे और कार्यस्‍थलों की उत्‍पादकता भी बढ़ेगी। इसका लाभ समुदाय को व्‍यापक स्‍तर पर मिलेगा। सांगठनिक स्‍तर पर कंपनियों को देखना चाहिए कि वे किस तरह इन मूल्‍यों का पालन कर रहे हैं। वे मूल्‍यों को पालन करने के लिए किस स्‍तर तक साहसिक कदम उठाते हैं? उनका कार्य कितना नैतिक है और उनका व्‍यवहार कितना उचित है ? अपने कर्मचारियों को उनके किस तरह के मूल्‍यों को वे पुरस्‍कृत करते हैं?क्‍या उनका आचरण इन मूल्‍यों के अनुरूप होता है ? अगर संगठन के भीतर विश्‍वास है और बाहरी दुनिया का विश्‍वास संगठन पर है ? ये कुछ इस तरह के सवाल हैं जिसका हमें अपने आप से जवाब देना है।

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