माननीय उच्चतम् न्यायालय के आदेशानुसार धर्म, जाति वंश एंव समुदाय और बोली के आधार पर वोट मंगना, भ्रष्ट आचारण की श्रेणी में परभार्षित किया गया है। इसी क्रम में भारत निर्वाचन आयोग ने सभी राजनैतिक दलों द्वारा प्रचार-प्रसार में धर्म , जाति वंश एवं समुदाय और बोली के आधार पर वोट मांगने को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अन्तर्गत भ्रष्ट आचरण मानते हुए दिशा-निर्देश जारी किये गये है। राजनैतिक दलों से अनुरोध किया गया है कि वे इस संबंध में माननीय उच्चतम् न्यायालय के निर्णय के आलोक में अपने कार्यकर्ता, कैडर पार्टी पदाधिकारियों को भी जागरूक एवं निर्देशित करें। भारत निर्वाचन आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करने हेतु समस्त जिलाधिकारियों, जिला निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश देने के बावजूद, समस्त राजनैतिक पाटियों इलेक्ट्रानिक, प्रिंट मीडिया समूहों, धर्मगुरूओं, समाजिक संस्थाओं द्वारा उत्तर प्रदेश विधानसभा 2017 के प्रथम चरण एवं अन्य चरणों पर संविधान, उच्चतम् न्यायालय के निर्णय भारत के चुनाव आयोग के आदेशों की धज्यियां छलनी-2 कर दी गयी है। समस्त राजनैतिक दलों एवं क्षेत्रिय पार्टियों ने अपने धोषण पत्र में अल्पसंख्यकों को विशेष सुविधा, बेरोजगार भत्ता, युवकों को निशुल्क शिक्षा, मुफ्त भोजन, लैपटाप, स्मार्टफोन एवं महिलाओं को खाना पकाने के लिए कुकर, साडी धोती न जाने क्या-2 प्रलोभन दिये गये है। ऐसा प्रतीत होता है कि जहाँ-जहाँ प्रदेशों के विधानसभा का चुनाव हो रहे है। वहां कि समस्त राजनैतिक पार्टियाँ वोट के नाम पर आम नाागरिकों को सिर्फ भिखारियों के रूप में देख रही है। यह विड़म्बना नहीं है तो क्या है?
कुछ महीने पहले कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी द्वारा खाट सम्मेलन किया गया था। जिसमें गांव के लोगों ने सभा स्थल से खाट उठाकर अपने-2 घर ले गये थे। जब हमारे आम नागरिकों के पास सोने के लिए चारपाई (खाट) तक नही है तो भारत देश कैसे विश्व के मानचित्र महान शक्ति के रूप में देखा जा रहा है। जिस देश में दो वक्त की रोटी नसीब नही, किसान मर रहे। जहाँ करोड़ों युवक-युवतियां बेरोजगार है। जबकि राजनेता झूठे वायदों से जनता को बरगलाती है। आज भारतवर्ष की दुर्दशा, झूठे प्रचार-प्रसार में विदेशों में अपनी शान से इठलाये धूमते रहते है। क्या विश्व की नजर में भारतीयता की अर्थव्यस्था के बारे में उनको जानकारी नहीं है। विदेशीयों के नजर में भारतीयो की स्थिति क्या है? यह सोचनीय प्रश्न है?
उत्तर प्रदेश के प्रथम चरण में उ0प्र0 के पुलिस-प्रशासन ने करोडों रूपये की शराब एवं हिरोइन, अस्लहे पकडी गयी है। ये शराब-हिरोइन चुनाव के लिए आम जनता में बांटने के लिए लाई जा रही थी।
इलेक्शन वांच ने उ0प्र0 विधान सभा 2017 में विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों के अपराधिक रिकार्ड जारी किये गये है। जिनमें भारतीय जनता पार्टी के सबसे अधिक 40 फिसदी, कांग्रेस के 25 फिसदी, बसपा के 38, आरएलडी के 33 एवं समाजवादी पार्टी के 29 फिसदी है। उत्तर प्रदेश में सभी पार्टियों के प्रत्याशी करोड़पति है।
इस देश में विडम्बना है कि कोई भी ईमानदार व्यक्ति, चाय बेचने वाला, नाई, लोहार, मिस्त्री, किसान, मजदूर और मध्य आय वर्ग के लोगों को कोई भी राजनैतिक दल टिकट नहीं देती। जबकि उन्ही को चुनाव का टिकट दिया जाता है जो लाखों, करोड़ों रूपये पार्टी फंड में देते है अगर पास करोड़ों रूपये है तो तुरंत समस्त पार्टी आपको अपनी पार्टी का सम्मानित सदस्य बनाने में कोई कोताई नही बरतेगी, क्यों न आप अपराधिक प्रवृति के हो।
यह भी देखने में आया है कि सभी राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता की बहुत दयनीय स्थिति है। वे अपने कार्यकर्ता दरी बिछाने, कुर्सी लगाने, पंडाल बनाने, पार्टी का झंडा उठाने, अपने क्षेत्र के नागरिकों के तन-मन से सेवा करने, कभी-कभार अपने पार्टी के धरने प्रर्दशन में पुलिस की लाठी खाने, पुलिसीया की कानूनी लाडाई में फर्जी केस लगायें जाते है। जिससे ये कार्यकर्ता बेचारे कोर्ट-कचहरी को चक्कर लगाकर अपने परिवार पैसो की बरबादी कर देते है। परन्तु ये राजनैतिक दलों के नेता इनकी सुध नहीं लेते है। इन कार्यकर्ता के मेहनतकश के प्रयासों के बदौलत बडे-बडे राजनेता राजनैतिक मलाई खाते है। जबकि अधिकांश राजनैतिक दल इन कार्यकताओं को हक का टिकट न देकर अपने भाई-भतीजे को टिकट दिया जाता है जिससे इन कार्यकर्ता में असंतोष व्याप्त है।
देश के सबसे बडें राज्य उत्तर प्रदेश एवं राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को संयोजने वाले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश एवं पांच राज्यों में हो रहे चुनाव में केन्द्र सरकार द्वारा गत 8 नवम्बर को बिना किसी तैयारी अथवा पूर्व सूचना को लागू की गयी नोटबंदी ने पूरे देश की जनता को झकझौर कर रखा दिया। लगभग सभी वर्गों ने यह परेशानी झेली मजदूरी, व्यवसाय दोनों प्रभावित हुए, देश के विकास दर घटी और चुनाव पर भी नोटबंदी का सीधा प्रभाव नजर आ रहा है। नोटबंदी का जनता पर भाजपा पार्टी पर सम्भावित प्रभाव पडेगा।
समाजवादी पार्टी के चार-पांच महीने जो राजनैतिक नोंटकी देखने को मिली, जिसमें समाजवादी पार्टी के संरक्षक धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव ने चालाकी से सम्पूर्ण पार्टी साइकिल निशान चुनाव आयोग से दिलाया, जिससे पार्टी के अधिकांश नेता अंचाभित है। यही नहीं निर्वाचन आयोग का भी समय व संविधान की धजियाँ उडाई। इसी के साथ उनके पुत्र मुख्यमंत्री अखिलश यादव ने दिल्ली और लखनऊ के प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया समूहों के मालिक आज समाजवादी पार्टी के दलाल बन गये है। आज सम्पूर्ण जनमानस सभी राष्ट्रीय चैनलों में चल रहें राजनैतिक डिबेट में समाजवादी अन्य पार्टीयों के नेताओं (चमचों) को देख सकते हैं। ये प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया अपने-अपने चैनलों एवं अखबारों में अखिलेश यादव की छवि बनाते इन्हे जीतता ‘‘बेकिग न्यूज‘‘ में दिखाते मिल जायेंगों। इन मीडिया समूहों के मालिकों ने पांच साल में अखिलेश के चमचागीरी से अरबों रूपये कमाकर कईयों ने स्वयं का अपना चैनल बना डाला है। 90 प्रतिशत मुख्यधारा में मीडिया घराने जिसमें अखबार और चैनल दोनों शामिल है। यू0पी0 की सरकार के रहमों करम में पले-बढे़ है, ये मीडिया समूहों के मालिक इतना ब्लैक पैसा और नगद विज्ञापन पा चुके है कि अखिलेश यादव को जीतना हुआ दिखाना जरूरी है। भारत में चैथा स्तम्भ पूरा बिका हुआ है। जनता इन टी0वी0 चैनलों में विश्वास न करें। ये सब इलेक्ट्रानिक मीडिया समाजवादी पार्टी से प्रयोजित किये गये है जिसमें उ0प्र0 के वरिष्ठ आई0ए0एस0 अधिकारिगण भी शामिल है। इससे चुनावी प्रक्रिया में प्रभाव डाल रहे है। परन्तु मुख्य निर्वाचन अधिकारी एवं आयकर विभाग द्वारा इन मीडिया समूहों को विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा चुनाव प्रसार के लिए अरबों रूपये का चुनावी प्रचार-प्रसार में व्यय पर अंकुश लागने में अस्मर्थ है।
यह भी देखने में आया है कि चुनाव के ठीक पहले मुस्लिम धर्मगुरूओं एवं समाजवादी पार्टी एवं बसपा को मुस्लमानों से वोट देने की अपील (फतवा) जारी किया गया है। जबकि माननीय उच्च न्यायालय के आदेशानुसार धर्म जाति, वंश एवं आधार पर वोट मांगना, भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में परीभाषित किया गया है। जबकि प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अन्तर्गत भारत निर्वाचन एवं पुलिस प्रशासन द्वारा इन धर्मगुरूओं पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गयी है। इस चुनाव में राजनैतिक दलों द्वारा भारतीय संविधान की धज्जियां उडाई जा रही है। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि भारतीय चुनाव आयोग सफेद हाथी की तरह है।
मैं भारत की महान जनता से विन्रम पूर्वक अपील/अनुरोध कर रहा हूँ कि वोट मांगने वाले नेताओं से तीन सवाल जरूर पूछें……
1) आप जो जनता को कैशलेस और एटीएम तथा आॅनलाइन पेमेंट की बात समझते हो तो ऐसा संविधान क्यों नही बनाते कि देश की सभी पाटियाँ आॅनलाइन और एटीएम से ही चन्दे की रकम स्वीकार करें। ये सारे नियम सिर्फ जनता ही क्यों पालन करे? राजनैतिक पार्टियाँ क्यों नही?
2) राजनैतिक पाटियों चाहे कोई भी हो आरटीआई और इनकम टैक्स के दायरे में आने से क्यों बचती है और अपने आय व्यय का हिसाब अपने वेबसाइट पर क्यों नही देती?
3) उनका जो चुनावी धोषण पत्र है जब पार्टीं का या कोई भी व्यक्ति नांमकन करने से पूर्व भारतीय निर्वाचन आयोग को उसे वे एफिडेविट क्यों नहीं देती और नेताओं का आय का जरिया क्या है? ये जो चुनावी धोषण पत्र है उसमें जो मुफ्त सामान देने की बातें की जा रही है। उसके फंड क्या पोलिटिकल पार्टी अपने चंदे से देगी या उसके लिए सरकारी खजाने को सहारा बनाया जायेगा। इसके साथ-2 समय सीमा का उल्लेखित भी करना अनिवार्य होना चाहिए।
मैं भली भांति जानता हूँ कि हिन्दुस्तान के किसी भी राजनैतिक पार्टी संसद में निर्वाचन प्रक्रिया में इन महत्वपूर्ण प्रश्नों अध्यादेश पारित करने मेें दम नही है?
ये संपादके के अपने विचार हैै।
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