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राजनेता है, साधू भी हैं, संत भी है और सूफी भी हैं- देश के गौरव सतपाल जी महराज

राजनेता है, साधू भी हैं, संत भी है और सूफी भी हैं- देश के गौरव सतपाल जी महराज
अध्यात्मउत्तराखंड

भारत ऋषि-मुनियों और सूफी संतो का देश है, जहां हर युग में अनेक महापुरूषों ने जन्म लेकर भटकी हुई इंसानियत को प्रेेम, एकता, शान्ति, सद्भाव और भाई-चारे का उपदेश देकर सच्चाई व ईमानदारी के रास्ते पर चलते रहने के अमर संदेश से अभिसिंचित किया। भारत ही वह देश है, जिसने सर्वप्रथम समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ की भावना के मर्म का प्रचार कर सारी दुनिया के लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि सभी इंसान एक ही परिवार के अंग है। इसी बात को नानक, चिश्ती, गौतम, गांधी और पं0 दीन दयाल उपाध्याय ने अपनी अमृत-वाणी सेे सारे संसार को अप्लावित किया।

इसी पंक्ति में आज के युगप्रवत्ता, आध्यात्मक के अनन्य ज्ञाता, प्राचीन भारतीय संस्कृति के पारंगत विद्धान, मानवतावादी, सामाजिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में अपनी अपूर्व पहचान बनाकर अपना सारा जीवन मानवता के कल्याण के लिए अर्पित करने वाले उत्तराखंड के हरिद्वार में पवित्र कनखल जैसे धार्मिक स्थान में 21 दिसम्बर 1951 को अवतरित होने वाले श्री सतपाल जी महाराज आते है, जिन्होने उत्तराखंड भूमि को धन्य-धन्य कर दिया।

यह सचमुच कितना हास्यापद लगता है कि आज हमारे तथाकथित सम्य समाज में कुछ असभ्य और स्वार्थी लोगों ने धर्म और मजहब के नाम पर अपने को समाज का ठेकेदार समझ लिया है और लोगों को धर्म, जाति, माला व क्षेत्र के भूलभुलैया में फंसा कर अपना उल्लू सीधा करने में अपना कीमती वक्त जाया करने में लगे हुए है। लोगों में अलगाव, हिंसा और नफरत की भावना पैदा करने की कोशिश की साजिश में ईश्वर को भी भूल गये है। श्री सतपाल जी महाराज ने इस मर्म की गुत्थी सुलझाने के लिए मानव धर्म का अचूक मंत्र जपने का रास्ता आज के भटके-भूले और मूल्यहीन, अपसंस्कृति से प्रभावित युवा पीढ़ी को दिखाने का प्रयास किया है। उनके उदार विचारों से तो ‘मजहब नहीं सिंखाता आपस में बैर रखना‘ की भावना ही मानव-कल्याण का रास्ता खोजने में मदद कर सकती है।

मानव धर्म के हिमायती और अध्यात्म दर्शन के सार्वभौमिक सिद्धान्तों को घर-घर पहुंचाने का बीड़ा उठाने वाले श्री सतपाल जी महाराज जी का सारा जीवन देश के सर्वांगीण विकास व उत्थान के लिए समर्पित है। मानव मात्र काल्याण ही उनका धर्म है, मानवता की पूजा ही उनका मंदिर है और सारी दुनिया का सृजन करने वाले परम परमेश्वर के अस्तित्व का ज्ञान कराने का उनका संकल्प है, जिसे लाखों-लाख श्रद्धालुओं ने अपने श्रद्धा सुमन उनके चरणों में चढ़ा कर उन्हें आत्मिक सम्मान का कवच पहनाया है। आस्था चैनल के माध्यम से जब टी.वी. में एक विशाल जनसमूह को मंत्र-मुग्ध कर देने वाले अपने प्रवचनों से एक जादुई वातावरण सृजित करने की अद्भुत क्षमता का परिचय देते हैं, तो लगता है इन प्रवचनों को निरंतर सुनते रहें और अपने जीवन को धन्य करे लें। धनी, काली इन्द्रधनुषी मूंछो के बीच में अध्यात्म के तेज से दमकता उनका चेहरा बरबस ही भक्तजनों के मन में श्रद्धा-भाव पैदा कर देता है। यह है उनके ज्ञान, तप और लोगों में ईश्वर के प्रति विश्वास पैदा करने के लिए इन्हें प्रेरित कर यह बताना कि ईश्वर कण-कण में है, घट-घट में बसता है और वही एकमात्र ऐसी शक्ति है जो सारे संसार के कष्टों से छुटकारा दिला सकती हैं।

बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्तियों में रूचि लेने और मानव-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत महाराज जी का हृदय अत्यन्त कोमल और दयालू है। उनके नेत्र असीम तेजस्वपूर्ण हैं जिनमें असंख्य जनमानस के अवसाद, कुण्ठाओं और निराशाओं के प्रज्वलित करने की अद्भुत क्षमता है। अपनी शालीनता, दूरदर्शिता और दृढ़निश्चयी सक्रियता से सभी आयु वर्ग, जाति, धर्म, सम्प्रदाय और अपने आंचल के सभी वासियों को आकर्षित करने वाला यह व्यक्तित्व उत्तराखंड का सिरमौर बन कर ध्रव सा चमक रहा है और एक दिन निश्चय ही महाराज जी उत्तराखंड़ के विकास के लिए सुनहरा वरदान बन कर सबके दिलो-दिमाग पर छा जायेंगे।

संकल्प की उर्जा से भरपुर व्यक्तित्व के धानी श्री सतपाल जी महाराज राष्ट्रीयता के बोध, कर्तव्यपरायणता के एहसास, समर्पण की निष्काम भावना और मानव मात्र के कल्याण की गहन भावनाओं को अपने जीवन का ध्यये बना कर उत्तरांचल वासियों के दिलों में गहरे पैठ चुके है। गांधी विचारधारा में विश्वास और उनके सत्य, अहिंसा एवं प्रेम के संदेश को भारत के कोने-कोन तक पहुंचाने तथा लोगों मेें पारस्परिक सद्भाव, राष्ट्रीय एकता की भावना जाग्रत करने के उद्देश्य से सतपाल महाराज जी ने देश के अनेक राज्यों में पदयात्रा करके भाजपा के सिद्धान्तों को फैलाने का गौरवमयी कार्य किया जा रहा है उनकी बद्रीनाथ-दिल्ली (वोट क्लब) यात्रा, भारत जागो यात्रा, बोधगया से पटना यात्रा, जनता जागे यात्रा, सिलीगुड़ी से गैंगटोक यात्रा, जनता-जागरण यात्रा, हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत करने के उद्देश्य से कबीर की निर्वाण स्थली मगहर से लखनऊ तक गांधी यात्रा, गोपेश्वर से रामपुर तिराहा तक श्रद्धाजंलि यात्रा और दांडी से अहमदाबाद तक सद्धभावना यात्रा उनके जीवन पथ की महानतम पद यात्राओं में से हैं। जिन्हे राष्ट्रीय स्तर पर भरपूर सराहा गया है।

भारत में ही नहीं विश्व के अनेक देशों में उनके सामाजिक एवं मानवतावादी विचारों तथा गतिविधियों को विशेष रुप से सम्मानित किया गया। जिसमें नेपाल मारिशस, केन्या तथा दक्षिणी अमेरिका आदि विशेषरुप से उल्लेखनीय हैं। महाराज जी के हौसले और अदम्य साहस की दाद देनी होगी जब उन्होंने 15,200 फीट की ऊँचाई पर स्थित हेमकुण्ड साहब गुरुद्वारे के निकट लोकपाल तीर्थ को प्राचीन व प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर का जीर्णोद्धार करके देश की प्राचीनतम सांस्कृ़तिक विरासत को कायम करने का साहसिक कार्य किया, जिसका हम सब को गर्व है।
सतपाल जी महाराज देश के गौरव को हमेशा बनाये रखने के पक्षधर रहे हैं और इसी ध्येय को पूरा करने के लिए महाराज जी ने देश-विदेश मे विशाल राष्ट्रीय एकता सम्मेलन का समय-समय पर आयोजन करके जब मानव में सर्वधर्म समभाव एवं सामाजिक व धार्मिक सहिष्णुता की भावना जागृत करने का गुरुतर कार्य किया है जो साधारण व्यक्ति की शक्ति के बाहर है।

सतपाल महाराज जी अपने धार्मिक व सामाजिक कार्यों केे अलावा अपनी लेखनी को भी मुखर कर अपनी विद्वता व ज्ञान का प्रकाश आम लोगों में फैलाते रहे है। हिन्दी, अंगे्रजी, विज्ञान व साहित्य के प्रकाण्ड जानकर होने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त है। उन्होंने अपने सुविचारों ईश्वर प्रदत्त ज्ञान को जिन पुस्तकों के जरिये लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया हैं, उनमें प्रमुख हैं अध्यात्म एवं विज्ञान, भारत सोने का देश बने, अपने आपका जानो, त्रिवेणी के तट पर और मानव-धर्म। यह सब पुस्तकें उनकी विस्तृत धार्मिक, सामाजिक सांस्कृ़ति व वैज्ञानिक ज्ञान के परिचायक हैं।

महाराज जी देश में हिन्दुओं के सारभूत सिद्धान्तों एवं समाज में सद्भावना के महत्व पर विश्व की अनेक सामाजिक सांस्कृ़तिक संस्थाओं द्वारा आयोजित आख्यानमालाओं में अपने गर्वित विचारों को प्रकट करने के लिए कई बार विदेश भ्रमण पर गये और देश का नाम गौरवान्वित किया।

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