20.2 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

भारतीय वन सेवा परिवीक्षार्थियों को प्रमाण-पत्र वितरित करते हुएः राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

भारतीय वन सेवा परिवीक्षार्थियों को प्रमाण-पत्र वितरित करते हुएः राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
उत्तराखंड

देहरादून: इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, देहरादून के सत्र 2015-17 के भारतीय वन सेवा परिवीक्षार्थियांे का दीक्षान्त समारोह 05 मई, 2017 को वन अनुसंधान संस्थान के दीक्षान्त गृह में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर श्री प्रणब मुखर्जी, माननीय राष्ट्रपति, भारत सरकार समारोह के मुख्य अतिथि जबकि राज्यपाल डाॅ.कृष्णकांत पाल व मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने प्रशिक्षु अधिकारियों को उनकी सफलता पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी द्वारा युवा अधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण भविष्य में उनके सामने आने वाली कठिन चुनौतियों के लिए तैयार करता है। उन्होंने भारत में वानिकी प्रबंधन और प्रशिक्षण के इतिहास की ओर झांकते हुए अतीत और वर्तमान के संदर्भ में वानिकी संरक्षण के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने संरक्षण और विकास के बीच समन्वय कायम करने पर बल दिया क्योंकि ये दोनों ही मानवता के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि लगभग 30 वर्ष पहले की तुलना में वर्तमान में देश के वनावरण में बढ़ोत्तरी हुई है। फोरेस्ट कवर 30 प्रतिशत होना चाहिए। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने नए अधिकारियों से इस दिशा में और अधिक दूरदर्शिता से कार्य करने का आह्वान किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के दीर्घकालिक उपयोग और दृढ़ प्रतिबद्धता के द्वारा ही विश्व स्तर पर गरीबी और भूख की चुनौती का समना किया जा सकता है और आम आदमी को विकास प्रक्रिया के केन्द्र में रखकर इस लक्ष्य को प्रभावी रूप से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने युवा अधिकारियों को सलाह दी कि गरीबी के उन्मूलन द्वारा वनों के समक्ष उत्पन्न खतरों को एक अवसर में बदलने का माध्यम बन सकते हैं। उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया कि युवा पेशेवर होने के नाते आपको यह ध्यान रखना है कि आपको देश की पर्यावरणीय नींव पर दीर्घकालिक असर डालने वाले निर्णय लेने में सक्षम होना होगा। उन्होंने समस्त वानिकी समुदाय को वैश्विक चुनौती के रूप में तेजी से उभर रहे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए कार्य करने की सलाह दी।
उन्होंने युवा अधिकारियों से कहा, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधक के रुप में आपका पहला कर्तव्य वैज्ञानिक साधनों का उपयोग करते हुए वनों की रक्षा और उनकी उत्पादकता में वृद्धि करना तथा सामान्य जन की वनों से जुड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति होना चाहिए। देश के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण ही अंततः पारिस्थितिकीय सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उन्होंने सूखते जलाशयों और जलस्त्रोतों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हमें विकास और पर्यावरण संरक्षण को एक दूसरे के विरोधी के रूप में नहीं अपितु पूरक के रूप में देखना चाहिए और उनके बीच से सुसंगत संतुलन स्थापित करने की ओर प्रयास करना चाहिए। अंत में उन्होंने सभी युवा अधिकारियों को बधाई दी और विश्वास व्यक्त किया कि इन युवा अधिकारियों द्वारा वानिकी की उच्च व्यावसायिक मानदंडों को बनाए रखेंगे और उन्हें आगे ले जाएंगे।
उत्तराखण्ड के राज्यपाल डाॅ. कृष्णकांत पाल ने नए वन अधिकारियों को अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि उत्तराखण्ड देश के सबसे समृद्ध वन क्षेत्रों में से एक है और राज्य की एक बड़ी आबादी अपनी आजीविका और निर्बाह के लिए पूर्णतः वनों पर ही निर्भर है। राज्य के सामने पहली चुनौती यह है कि वनों को फिर से उगाने और उनके संरक्षण में भागीदारी के लिए लोगों को तैयार किया जाए, तभी वनों का स्थाई प्रबंधन संभव है। ‘‘चिपको आंदोलन’’ उŸाराखण्ड में ही शुरू हुआ था जो कि पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व प्रसिद्ध है। हमें अभी भी कई पक्षों पर ध्यान देना होगा ताकि समृद्ध जैवविविधता से लाभ उठाया जा सके। उŸाराखण्ड की संवेदनशील इकोलाॅजी के कारण प्राकृतिक आपदा की सदैव सम्भावना रहती है। वनों का प्राकृतिक आपदाओं को नियंत्रित करने के साथ ही समाज को सम्पदा उपलब्ध करवाने में महत्व होने से वन संसाधनों के संरक्षण में आम लोगों की रूचि बढ़ी है। इसलिए वन अधिकारियों से अपने ज्ञान को समाज के साथ साझा करने की अपेक्षा रहती है।
उन्होंने कहा कि हमें तेजी से घटती जा रही जैव-विविधता को न केवल भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित रखना है बल्कि ऐसे कार्यक्रम तैयार करने हैं जिनसे उनका चिरस्थाई उपयोग करते हुए अपने लोगों के आर्थिक उत्थान को संभव बनाया जा सके। वनों के कटाव से ग्लोबल ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। इससे हमारे ग्रह के भविष्य पर भी खतरा व्याप्त होता है। जीडीपी की भांति ही हमें ग्रीन जीडीपी की अवधारणा भी अपनानी होगी। उन्होंने नए वन अधिकारियों को तकनीकी रूप से योग्य बनाने हेतु इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी द्वारा दी जा रही ट्रेनिंग की सराहना की।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने संबोधन में नए अधिकारियों को बधाई देते हुए कहा कि हमारे देश में वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन दुनिया की सबसे पुरानी व्यवस्थाओं में से एक है और आज से आप सभी इस ऐतिहासिक उपलब्धि का एक हिस्सा बनने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आने वाला समय नए विचारों को अपनाने और नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों, प्राकृतिक वातावण और पारम्परिक संस्कृति के संरक्षण का समय है। उन्होंने इन अधिकारियों को चेताया कि उनका कैरियर काफी चुनौतीपूर्ण है उन्हें याद रखना चाहिए कि वैज्ञानिक और विकास सम्बन्धी गतिविधियों के नाम पर पर्यावरण व वनों की अनदेखी न हो और सतत विकास के लक्ष्य प्राप्त हो सके। उन्होंने कहा कि आपका कर्तव्य केवल प्रशासन तक सीमित न होकर पृथ्वी पर उस पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता और संतुलन की सुरक्षा भी है, जो अनेक पीढ़ियों से हमारे पूर्वजों द्वारा सुरक्षित और संरक्षित रखा गया है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि वन संरक्षण व जनसामान्य की अपेक्षाओ ंव आवश्यकताओं में संतुलन जरूरी है। जैव विविधता को संरक्षित करते हुए वनों के आसपास रहने वालों के लिए आजीविका के अवसर उत्पन्न करना अधिकारियो ंके लिए चुनौतिपूर्ण होगा। पर्यावरण संरक्षण, समावेशी व स्थायी विकास में संतुलन स्थापित करना होगा। वन संरक्षण में स्थानीय जनसमुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
केद्रीय (राज्य) मंत्री वन एवं पर्यावरण श्री अनिल माधव दवे ने अधिकारियों को बधाई देते हुए कहा वन केवल पेड़ों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें पूरा इको सिस्टम समाहित है। वन, पर्यावरण व वनों पर आधारित समुदाय इससे संबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपने वन अधिकारियों पर पूरा विश्वास है कि वे वन संरक्षण, वनो ंसे स्थानीय लोगों को आजीविका उपलब्ध करवाने व क्लाईमेट चेंज की चुनौति का मुकाबला कर सकंेगे। उन्होंने वनाश्रित समुदायों को सशक्त बनाने तथा वनों से स्थाई लाभ प्राप्त करने एवं जलवायु परिवर्तन को रोकने के उक साथ्धन के रूप् में वनों को संरक्षित किए जाने के प्रयासों पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि 1980 और 1988 की वन नीति के द्वारा न केवल आम जनता की वनों से जुड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति पर ध्यान दिया गया बल्कि वनों के प्रबंधन में आम जनता की भागीदारी की बात भी की गई। उन्होंने कहा कि आज वन सेवा अधिकारियो ंके कार्यक्षेत्र. में लगातार विस्तार हो रहा है। आज उसे मानव और प्रकृति के बीज सामंजस्य बनाए रखने की कोशिश करते हुए जहां एक ओर के प्रति चिंतित ‘‘मानव के अधिकारों ’’ रहना है तो साथ ही ‘‘प्रकृति के अधिकारों’’ की भी चिंता समान रुप से करनी है।
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के निदेशक डाॅ. शशि कुमार ने अपने सम्बोधन में कहा कि यह संस्थान पूर्व में इंडियन फोरेस्ट कालेज और अब इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के रूप में पिछले 77 वर्षों से देश की सेवा कर रहा है। स्वतंत्र भारत के सभी भारतीय वन सेवा अधिकारियों और 14 पड़ोसी मित्र राष्ट्रों के लगभग 345 वन अधिकारियों ने अब तक इस संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त किया है। उन्होंने बताया कि वर्तमान 2015-17 बैैच में आज कुल 45 भारतीय वन सेवा परिवीक्षार्थियों और भूटान के 2 विदेशी प्रशिक्षु अधिकारियों को डिप्लोमा प्रदान किया जा रहा है। इस बैच में 01 पी.एच.डी., 36 बी.एमसी और 10 परास्नातक शामिल हैं। इन अधिकारियों में 27 ने 75 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त करते हुए आॅनर्स डिप्लोमा प्राप्त किया है। सफलतापूर्वक अपना प्रशिक्षण पूर्ण करने वाले सभी अधिकारियों को इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के एसोसिएट डिप्लोमा से भी सम्मानित किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय वन सेवा के 2015-17 बैच में आई.आई.एम. लखनऊ अटैचमैंट, एनजीओ अटैचमैंट, साउथ इंडिया टूर, मिनिस्ट्री काॅन्फ्रेंस के साथ-साथ फिनलैंड/रुस और स्पेन/इटली की स्पेशल ओवरसीज एक्सपोजर विजिट जैसे कार्य भी किए गए हैं। उन्होंने अकादमी से पास-आउट होने वाले परिवीक्षार्थियों को वनाश्रित निर्धन लोगों की आजीविका से सम्बन्धित मामलों में खुले दिल से कार्य करने की सलाह दी। उत्कृष्ट उपलब्धियां प्राप्त करने वाले परिवीक्षार्थियों को समारोह में विभिन्न पुरस्कार प्रदान किए गए।

Related posts

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More