नई दिल्ली: वाणिज्य और औद्योगिक मंत्रालय में औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग- डीआईपीपी के तत्वाधान में बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) संवर्द्धन एवं प्रबंधन प्रकोष्ठ-सीआईपीएएम ने #लेट्सटॉकआईपी के साथ मिलकर भारतीय भौगोलिक संकेतकों को बढ़ावा देने के लिए एक सोशल मीडिया अभियान शुरु किया है। बौद्धिक संपदा अधिकार के बारे में लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से सीआईपीएएम द्वारा #लेट्सटॉकआईपी आंदोलन पहले से ही चलाया जा रहा है।
भौगोलिक संकेतक या जीआई उत्पादों पर अंकित वो छाप है जो उत्पादों की विशेष भौगोलिक पहचान बताता है और उसकी मूल गुणवत्ता को दर्शाता है। ऐसे नाम उत्पादों की गुणवत्ता और उसकी विशिष्टता के बार में एक आश्वासन देता है जो उस खास भौगोलिक स्थान के चलते उसमें खासतौर पर निहित होता है। दार्जीलिंग की चाय, महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर की ब्लू पॉटरी, बनारसी साड़ी, और तिरुपति के लड्डू भौगोलिक संकेतक या जीआई के कुछ उदाहरण हैं।
भौगोलिक संकेतक देश के लिए काफी अहमियत रखता है क्योंकि यह भारत की महान संस्कृति और सामूहिक बौद्धिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। जीआई को बढ़ावा देना सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के अनुरुप है। भारत के लिए यह ताकत और उम्मीद की पहचान है जिससे जीआई हस्त निर्मित और विनिर्मित उत्पादों, खासकर अनैपचारिक क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान किया है।
कुछ निश्चित जीआई उत्पाद दूर-दराज के इलाकों में शिल्पकारों, किसानों और बुनकरों की आय बढ़ाते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचा सकते हैं। हमारे ग्रामीण शिल्पकार पारंपरिक हूनरों और प्रक्रियाओं की जानकारी से पूर्ण हैं जिसे उन्होंने पीढ़ी-दर-पीढी हस्तांतरण से सीखा, उन हूनरों को संरक्षित और संवर्द्धित करने की जरूरत है।
हाल ही में, सरकार ने पारंपरिक बुनकरी को पुनर्जवित करने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए #वीयर हैंडलूम और #कॉटनइजकूल जैसी पहल शुरू की है।
सीआईपीएएम #लेट्सटॉकआईपी हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए अपने ट्वीटर हैंडल @CIPAM_India और फेसबुक पेज @CIPAMIndia पर देशभर से जीआई संबंधित कहानियों और ज्ञानवर्द्धक तथ्यों के बार में शीघ्र ही जानकारी देगा। सरकार भविष्य में पंजीकृत जीआई को बढ़ावा देने के लिए कई अन्य पहल भी करेगी।