लखनऊ: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान एवं ग्राम्य संदेश, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में सुमित्रानंदन पंत की पावन स्मृति को समर्पित एक दिवसीय ‘युवा काव्य रचना कार्यशाला‘ का आयोजन श्री उदय प्रताप सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ की अध्यक्षता में यहां निराला साहित्य केन्द्र एवं सभागार, हिन्दी भवन में किया गया। कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में डाॅ0 कमल नयन पाण्डेय एवं डाॅ0 गणेश प्रसाद पाण्डेय सम्मिलित हुए।
श्री उदय प्रताप सिंह कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने अध्यक्षीय सम्बोधन करते हुए कहा कि कविता कोई लिखना सिखा नहीं सकता। कोई एक दिन में दिनकर नहीं बन सकता। कविता में छन्द और लय महान होती हैं। नव रचनाकारों को अच्छी कविता लिखने का प्रयास करना चाहिए। बड़ी कविता वही जो विश्व को सुन्दर बनाये, बड़ा आदमी वही जो जिन्दगी भर काम करता रहे।
श्री उदय प्रताप सिंह एवं डाॅ0 सुधाकर अदीब, निदेशक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान सहित अन्य मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा एवं सुमित्रानन्दन पंत के चित्र पर पुष्पार्पण के उपरान्त प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में वाणी वन्दना की प्रस्तुति श्री अतुल पाण्डेय द्वारा की गयी।
प्रथम सत्र में अभ्यागतों का स्वागत करते हुए डाॅ0 सुधाकर अदीब ने कहा – हर व्यक्त किया गया विचार या भावना कविता है कि नहीं, आज जानने व समझने की आवश्यकता है। संवेदना व भावना जब पंख लगाकर उड़ने का प्रयास करती है तो कविता का जन्म होता है। कविता के सम्मुख आज चुनौतियाँ हैं कि कैसे सारगर्भित कविता लिखी जाय। अन्तर्निहित भावों व विचारों का जब प्रस्फुटन होता है तो एक कविता जन्म लेती है।
प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित डाॅ0 कमल नयन पाण्डेय ने ‘पारम्परिक कविता‘ विषय पर बोलते हुए कहा – परम्परा में व आधुनिकता में कोई सीमा रेखा नही खीची जा सकती है। पंत का काव्य नयी पीढ़ी के लिए पाठशाला है। कला के सृजन में प्रकृति का सबसे बड़ा योगदान है, आज की कविता प्रकृति से दूर होती जा रही है। कवि पीड़ा को पचाता है। कविता सीधे दिल तक पहुँचती है। कविता का सृजन कला से नहीं कलेजे से होता है। कवि बनाया नहीं जा सकता। कविता का मूल तत्व आनंद का सृजन है। कविता दुःख को दूर करती है। कवि वही हो सकता है जो समय, समाज के प्रति सचेत व जागता रहता है। कवि जागता है। दुनियाँ की पीड़ा को सहता है जीता है फिर लिखता है।
प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित डाॅ0 गणेश प्रसाद पाण्डेय ने ‘आधुनिक कविता‘ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा – कविता का अनन्त आकाश नहीं है। उसकी भी अपनी सीमा होती है। काव्य रचना दूसरों के लिए की जाती है। कविता अभिव्यक्ति का माध्यम है। स्वंातः सुखाय में जग की खुशी निहित होती है। कवि के हृदय की अनुभूति पाठक के ह्दय तक जानी चाहिए। कविता में छन्द अनुशासन का कार्य करता है।
इस कार्यशाला में युवा रचनाकार के रूप में आमंत्रित श्री अतुल बाजपेयी, लखनऊ, श्री नितीष तिवारी, बलिया, श्री गौरव दीक्षित मासूम, शाहजहाँपुर, श्री क्षितिज उमेन्द्र, बाराबंकी, श्री अभय सिंह निर्भीक, लखनऊ, श्री मध्यम सक्सेना, बरेली, श्री संदीप सिंह, बहराइच, श्री चन्द्रेश शेखर, सीतापुर, सुश्री शुभी सक्सेना, गाजियाबाद और श्री जितेन्द्र कुमार सिंह ‘संजय‘, सोनभद के कवियों ने कार्यशाला में भाग लेकर गीत एवं कविता पढ़ी।
मंचासीन अतिथियों का स्वागत डाॅ0 सुधाकर अदीब, निदेशक हिन्दी संस्थान एवं सहयोग श्री अनिल मिश्र, प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया। काव्य गोष्ठी में धन्यवाद ज्ञापन श्री सर्वेश अस्थाना ने दिया।