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उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की उपलब्धियां

देश-विदेश

नई दिल्‍ली: देश में खाद्य सुरक्षा को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ उपभोक्ता के रूप में आम आदमी के हितों की रक्षा राजग सरकार की एक उच्च प्राथमिकता रही है। पिछले एक वर्ष के दौरान खाद्य प्रबंधन को औऱ ज्यादा सक्षम बनाने एवं किसानों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। देश में उपभोक्ता वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता के बारे आश्वस्त होने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, ताकि ‘मेक इन इंडिया’ को नई गति प्रदान की जा सके।

किसान कल्याण एवं खाद्य सुरक्षा को मजबूती प्रदान करना

  • बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों को राहत देने और गेहूं की अंधाधुंध बिक्री से उन्हें बचाने के लिए इसकी खरीद के गुणवत्ता मानकों में ढील दी गई है। केंद्र सरकार ने एमएसपी पर मूल्य कटौती (वैल्यू कट), यदि कोई लागू थी, की राशि राज्यों को वापस करने का निर्णय लिया, ताकि किसानों को गेहूं के टूटे-फूटे एवं चमक रहित दानों के लिए भी पूर्ण एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) प्राप्त हो सके। किसानों पर केंद्रित इस तरह का कदम पहली बार किसी केंद्र सरकार ने उठाया है।
  • पूर्वी राज्यों के किसानों खासकर पूर्वी यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम के छोटे एवं सीमांत किसानों को मूल्य समर्थन से जुड़ी बेहतर सेवाएं मुहैया कराने के लिए एफसीआई द्वारा एक कार्य योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इन राज्यों में फिलहाल जो खरीद प्रणाली है उस तक किसानों की पहुंच अपेक्षा से काफी कम है। प्रस्तावित कार्य योजना से किसान अंधाधुंध बिक्री के साथ-साथ बिचौलियों के शोषण से भी बच सकेंगे। एमएसपी का बढ़ा हुआ दायरा किसानों को प्रौद्योगिकी अपनाने और इन राज्यों में धान/ चावल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा, जहां उत्पादन स्तर फिलहाल राष्ट्रीय औसत से कम है। इससे अंततः आमदनी बढ़ेगी और इस क्षेत्र के किसान समृद्ध होंगे।
  • किसानों के हित में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) दलहन और तिलहन के लिए भी एक खरीद योजना पर काम कर रहा है, ताकि इन दोनों ही फसलों के लिए किसानों को एमएसपी सुनिश्चित किया जा सके।
  • ज्यादा से ज्यादा धान उत्पादकों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए खरीफ विपणन सीजन 2014-15 में चावल पर मिलों का शुल्क घटाकर 25 फीसदी के स्तर पर ला दिया गया और अक्टूबर, 2015 से इसे समाप्त करने का निर्णय लिया गया है। इससे किसान शोषण से बच सकेंगे और वे अपना धान बेचने के लिए मिल मालिकों पर निर्भर नहीं रहेंगे।
  • इस पहल से खासकर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बाजार मूल्यों के एमएसपी से नीचे रहने के बावजूद धान के लिए किसानों को एमएसपी मुहैया कराने में सुधार देखा गया है। इन राज्यों में किसान अपना धान बेचने के लिए मिल मालिकों पर काफी हद तक निर्भर हैं।
  • खरीफ विपणन सीजन (केएमएस) 2013-14 के दौरान एकीकृत आंध्र प्रदेश में सरकारी एजेंसियों द्वारा किसानों से सीधे महज 8.52 लाख एमटी धान खरीदा गया था, लेकिन केएमएस 2014-15 के दौरान आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में धान की इस तरह सीधी खरीद बढ़कर 36.76 लाख एमटी के स्तर पर पहुंच गई है। केएमएस 2014-15 के दौरान शुल्क में कमी होने के बावजूद केएमएस 2013-14 की तुलना में इन दोनों राज्यों में अब तक चावल की कुल खरीद में कोई खास कमी देखने को नहीं मिली है।
  • इसी तरह उत्तर प्रदेश में धान की खरीद पिछले सीजन के 9.07 लाख एमटी से बढ़कर वर्तमान सीजन में 18.18 लाख एमटी के स्तर पर पहुंच गई है और चावल की कुल खरीद भी पिछले सीजन के 11.05 लाख एमटी से सुधरकर अप्रैल, 2015 तक 16.10 लाख एमटी हो गई है।
  • पश्चिम बंगाल में धान की खरीद पिछले सीजन के 5.79 लाख एमटी से बढ़कर वर्तमान सीजन में 13.29 लाख एमटी हो गई है। इसी तरह चावल की कुल खरीद पिछले सीजन के 8.27 लाख एमटी से सुधरकर अप्रैल 2015 तक 13.31 लाख एमटी (मीट्रिक टन) के आंकड़े को छू गई है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लाभार्थियों को उनके हक वाला अनाज सकारात्मक रूप से सुनिश्चित करने के लिए लाभार्थी को खाद्यान्न की डिलीवरी न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के लिए जनवरी, 2015 में नियम अधिसूचित किए गए।
  • केंद्र सरकार ने राज्यों द्वारा उठाए जाने वाले खाद्यान्न के संचालन एवं ढुलाई लागत बोझ का 50 फीसदी (पहाड़ी एवं दुर्गम क्षेत्रों के मामले में 75 फीसदी) वहन करने का भी निर्णय लिया है।

खाद्यान्न प्रबंधन को बेहतर करना

  • भारतीय खाद्य निगम के पुनर्गठन के बारे में सिफारिश करने के लिए अगस्त 2014 में विशेषज्ञों की एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई थी, ताकि खाद्यन्न प्रबंधन बेहतर हो सके, सक्षम एमएसपी परिचालन एवं वैज्ञानिक भंडारण सुनिश्चित किया जा सके और देश में खाद्यान्न की आपूर्ति शृंखला मजूबत हो सके। समिति द्वारा पेश की गई रिपोर्ट पर आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं।
  • एफसीआई के गोदामों के सभी परिचालनों को ऑनलाइन करने और अनाज को अन्यत्र ले जाने की प्रवृत्ति की रोकथाम के लिए ‘डिपो ऑनलाइन’ प्रणाली शुरू की गई और एकीकृत सुरक्षा प्रणाली सभी संवेदनशील डिपो में लगाई जा रही है। देश में खाद्यान्न भंडारण की व्यवस्था का आधुनिकीकरण करने के लिए पहले चरण में ‘साइलो’ के आकार में 20 लाख टन की भंडारण क्षमता सृजित की जा रही है।
  • गरीबों को अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ बेहतर ढंग से देने के लिए उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री की अध्यक्षता में मंत्रियों की एक समिति गठित की गई। समिति ने न केवल अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए खाद्यान्न आवंटन को जारी रखने का निर्णय लिया, बल्कि इन योजनाओं के तहत दूध, अंडे इत्यादि मुहैया कराते हुए पोषण संबंधी सहायता भी देने का फैसला किया।
  • वर्ष 2014-15 के दौरान लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत वितरण के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 612.42 लाख टन अनाज आवंटित किया गया।
  • किसानों से खरीद का सिलसिला जारी रहने की बदौलत केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक 1 अप्रैल, 2015 को बढ़कर 343.15 लाख टन हो गया, जबकि न्यूनतम बफर मानक 210.40 लाख टन का ही था।
  • आंध्र प्रदेश में आए ‘हुद-हुद’ तूफान और जम्मू-कश्मीर में आई विनाशकारी बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओँ के दौरान खाद्यान्न की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित की गई। आमान परिवर्तन कार्य़ के चलते प्रमुख रेल मार्ग के बाधित रहने के बावजूद पूर्वोत्तर राज्यों में पर्याप्त खाद्यान्न की उपलब्धता भी सुनिश्चित की गई। हर महीने सड़क मार्गों से 80,000 एमटी खाद्यान्न की ढुलाई की गई। इसके अलावा 20,000 एमटी की अतिरिक्त भंडारण क्षमता सृजित की गई।

  • पूर्वोत्तर क्षेत्र में 76.85 करोड़ रुपये की लागत से 43,480 मीट्रिक टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता विकसित की गई है। भंडारण क्षमता में इस वृद्धि से इस क्षेत्र में खाद्यान्न की आवश्यकता को पूरा करने में मदद मिलेगी।
  • किसानों के प्रतिनिधियों, गन्ना उत्पादक प्रमुख राज्यों के मुख्यमंत्रियों और प्रतिनिधियों की बैठक में गन्ना की फसल के बकाये के भुगतान को आसान बनाने के लिए उपायों पर चर्चा की गई। तदनुसार, गन्ना क्षेत्र में तरलता में सुधार लाने और गन्ना किसानों के बकाये के भुगतान के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गयेः –
  • चीनी पर आयात शुल्क को पहले 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत किया गया और बाद में उसे 40 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया।
  • निर्यातकों के लिए शुल्क मुक्त आयात अनुमति योजनाएं वापस ली गईं।
  • चीनी उत्पादन के अगले सीजन से पेट्रोलियम में मिलाने के लिए इथानोल पर उत्पाद शुल्क वापस लेने का निर्णय लिया गया, क्योंकि मूल्य के लाभ से चीनी मिलों को गन्ना के बकाये के भुगतान में आसानी होगी।
  • पेट्रोल में मिलाने के लिए इथानोल की खरीद के लिए नीति में भी सुधार किया गया।

उपभोक्ता संरक्षण को बढ़ावा

  • राज्यों के खाद्य मंत्रियों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया और जुलाई 2014 में खाद्य पदार्थों की मूल्य वृद्धि पर एक सम्वित कार्य योजना लागू की गई।
  • राज्य सरकारों को जिन्सों पर भंडारण नियंत्रण संबंधी आदेशों को लागू करने और जमाखोरी के विरूद्ध उपाय करने में सक्षम बनाते हुए आलू और प्याज को ‘आवश्यक वस्तु’ के रूप में अधिसूचित किया गया।
  • मंत्रालय द्वारा 22 आवश्यक वस्तुओं की कीमतों की निगरानी को सशक्त बनाने के उद्देश्य से मूल्य रिपोर्टिंग केन्द्रों की संख्या को 57 से बढ़ाकर 64 कर दिया गया।
  • मंदी की अवधि और कम मूल्यों के दौरान गेहूं की आपूर्ति बढ़ाने के लिए वर्ष 2014-15 में 100 लाख टन गेहूं की खुला बाजार विक्रय योजना (ओएमएसएस) के अधीन विक्रय की मंजूरी दी गई। साथ ही लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से 50 लाख टन अतिरिक्त गेहूं जारी की गई है।
  • उपभोक्ताओं के लिए किफायती मूल्यों पर फलों और सब्जियों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के क्रम में और किसानों के लिए व्यापक रूप से बिक्री के विकल्प के तौर पर दिल्ली में एपीएमसी अधिनियम में शामिल फलों और सब्जियों की सूची से हटाया गया। दोनों सामग्रियों की बिक्री के लिए किसान मंडी स्थापित की गई। सभी अन्य राज्यों को भी इस व्यवस्था को लागू करने की भी सलाह दी गई।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की विस्तृत समीक्षा के बाद अधिनियम में व्यापक संशोधन को अंतिम रूप दिया गया ताकि उपभोक्ताओं की शिकायतों को शीघ्र, बिना लागत और सरल तरीके से दूर किया जा सके। मामले दर्ज करने के लिए ई-फाइलिंग का प्रबंध किया गया और विचारार्थ स्वीकार करने के चरण तक व्यक्तिगत उपस्थिति से मुक्त रखा गया तथा मामले की समयबद्ध मंजूरी का प्रस्ताव किया गया। अवैध व्यापार की जांच, कार्रवाई शुरू करने, आदेश वापस लेने अथवा खराब उत्पादों को बदलने के उद्देश्य से एक”केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण” का भी प्रस्ताव किया गया। खराब उत्पादों अथवा सेवा में कमी के कारण उपभोक्ताओं की नुकसान की स्थिति में उन्हें सक्षम बनाने के लिए प्रावधान तैयार किये गये।
  • उपभोक्ताओं की व्यापक तौर पर जागरूकता के लिए स्वास्थ्य, वित्तीय सेवा और अन्य विभागों के साथ संयुक्त अभियान शुरू किया गया। पिछले वर्ष के दौरान उपभोक्ता कार्य विभाग ने ‘जागो ग्राहक जागो’ के बैनर तले अपने मल्टीमीडिया अभियान पर जोर  दिया। ग्रामीण क्षेत्रों, जनजातीय क्षेत्रों और पूर्वोत्तर क्षेत्रों पर विशेष जोर देते हुए इस अभियान के माध्यम से उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों अथवा बाध्यताओं से अवगत कराया जाता है। उपभोक्ता हितों से जुड़े विशेष मुद्दे पर जोर देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक, स्वास्थ्य मंत्रालय और वित्त मंत्रालय की ओर से संयुक्त अभियान चलाये गये।
  • उपभोक्ता हितों से जुड़े प्रमुख क्षेत्रों, जैसे कृषि, खाद्य, स्वास्थ्य, आवास, वित्तीय सेवा और परिवहन क्षेत्रों के एक अंतर-मंत्रालीय समूह गठित किया गया ताकि उपभोक्ताओं के पक्ष में समन्वित कार्य करने के लिए नीति तैयार की जा सके और भ्रामक विज्ञापन तथा गलत व्यापार परंपराओं की समस्या का समाधान हो सके।
  • एक समर्पित पोर्टल www.gama.gov शुरू किया गया ताकि उपभोक्ता भ्रामक विज्ञापनों के विरूद्ध अपनी शिकायतों का पंजीकरण कर सकें। खाद्य और कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, भूसंपदा, परिवहन और वित्तीय सेवा जैसे छह प्रमुख क्षेत्रों को इसमें शामिल किया गया। संबंधित अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज करने के बाद उपभोक्ताओं को कार्रवाई के बारे में सूचित किया जाता है।
  • एक छत के नीचे कई प्रकार की उपभोक्ता सेवाएं प्रदान करने के लिए छः स्थानों- इलाहाबाद, बंगलूरू, जयपुर, कोलकाता, पटना और दिल्ली में 18 मार्च, 2015 को ग्राहक सुविधा केन्द्रों की शुरुआत की गई। ऐसे केन्द्र चरणबद्ध रूप से प्रत्येक राज्य में स्थापित किये जाएंगे। इनके माध्यम से उपभोक्ताओं को उपभोक्ता कानूनों, उपभोक्ताओं के अधिकारों, उपभोक्ता न्यायालयों तक पहुंचने की प्रक्रिया तथा गुणवत्ता आश्वासन और उत्पादों की सुरक्षा सहित उपभोक्ताओं से संबंधित और अनेक मुद्दे के बारे में मार्गदर्शन प्रदान किया जाएगा।

मेक इन इंडिया के लिए गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली को सशक्त बनाना

  • देश में जिन्सों और सेवाओं के लिए गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली को मजबूत करने के क्रम में बीआईएस अधिनियम में संशोधनों को अंतिम रूप दिया गया है। उत्पादों के मानकों और उनकी जांच के लिए बाजार आधारित निगरानी प्रणाली को कारगर बनाया गया है।
  • सरल मानक योजना शुरू की गई ताकि उद्योगजगत देश में आसानी के साथ गुणवत्तापूर्ण मानकों को लागू करने और स्तरीय उत्पादों का निर्माण करने पर जोर दे सके।
  • मौजूदा प्रयोगशालाओं के आधुनिकीकरण के अलावा, मार्च 2016 तक बीआईएस की पांच नई प्रयोगशालाएं स्थापित करने का निर्णय लिया गया।
  • मानकों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए बीआईएस प्रयोगशालाओं अथवा बीआईएस द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में जांच किये गये आईएसआई का मार्क लगाये गये उत्पादों के लिए आम उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए एक नई योजना तैयार की गई है। एक मोबाइल एप की भी शुरुआत की जा रही है जिससे उपभोक्ता बीआईएस के चिन्ह लगे उत्पादों की असलियत की जांच कर सकें।
  • बीआईएस की राष्ट्रीय जांच प्रयोगशालाओं में कौशल विकास पर आधारित अभियंत्रण छात्रों को सुविधा प्रदान करने पर जोर दिया गया।
  • शाकाहार और मांसाहार का संकेत देने के लिए सौन्दर्य प्रसाधनों में लाल/भूरा/हरा डॉटों को अनिवार्य किया गया। यह आम उपभोक्ताओं की मांग का मूल है।

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