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सरकार ने महात्‍मा गांधी पर संयुक्‍त राष्‍ट्र के प्रतिवेदक की टिप्‍पणियों की कड़ी निंदा की

Government deplores UN Rapporteur’s comments on Mahatma Gandhi
देश-विदेश

नई दिल्लीः भारत सरकार ने सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता के मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक (यूएनएसआर) श्री लियो हेलर द्वारा राष्ट्रपिता के प्रति दर्शाई गई गंभीर असंवेदनशीलता की कड़ी निंदा की है। आज नई दिल्‍ली में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में उन्‍होंने कहा, ‘अब उन चश्‍मों (गांधीजी के चश्‍मे) को मानवाधिकार के चश्‍मों से बदलने का महत्‍वपूर्ण समय है।’ विश्‍व को पता है कि महात्‍मा गांधी मानवाधिकार के प्रमुख समर्थक थे, जिसमें असाधारण तरीके से स्‍वच्‍छता पर विशेष ध्‍यान केन्द्रित करना शामिल था। स्वच्छ भारत मिशन का अनूठा प्रतीक चिन्‍ह ‘गांधीजी का चश्मा’ मानवाधिकारों के मूल सिद्धांत का प्रतीक है।

     सुरक्षित पेयजल और स्‍वच्‍छता पर मानवाधिकार पर यूएनएसआर ने 27 अक्‍टूबर से 10 नवम्‍बर, 2017 तक भारत का दौरा किया। जहां यूएनएसआर ने ‘असाधारण प्रतिबद्धता’ के माध्‍यम से जल और स्‍वच्‍छता सेवाओं की खामियों से निपटने में हाल ही में किये गये भारत के प्रयासों की सराहना की, वहीं उन्होंने गलत तथ्‍यों, अधूरी जानकारी या जमीनी स्‍तर पर पेयजल तथा स्‍वच्‍छता की स्थिति के बारे में पूरी तरह से गलत विवरण के आधार पर अतिरंजित निर्णय लिया है। यह स्‍वीकार करने के बावजूद कि ‘इतने बड़े, विविध और जटिल भारत देश में जल और स्‍वच्‍छता के मानवाधिकार की स्थिति के सभी पहलुओं को पूरी तरह से समझने के लिए दो सप्‍ताह पर्याप्‍त नहीं है’ उन्‍होंने फि‍र भी अप्रमाणित आरोप लगाया कि भारत के जल और स्‍वच्‍छता कार्यक्रमों में मानवाधिकार के सिद्धान्‍तों पर उचित ध्‍यान नहीं दिया गया है।

      एक वक्‍तव्‍य में केन्‍द्र सरकार ने उनके आधारहीन दावों को अस्‍वीकार किया और दोबारा इस बात पर बल दिया कि स्‍वच्‍छ भारत मिशन (एसबीएम) और ग्रामीण तथा शहरी पेयजल कार्यक्रम पूरी तरह से मानवाधिकार के उन मानदंडों और सिद्धान्‍तों (जैसा कि संयुक्‍त राष्‍ट्र प्रणाली द्वारा स्‍थापित किया गया है) के अनुरूप है, जिसकी सूची निम्‍नलिखित है।

उपलब्‍धता

  • तीन वर्ष में 25 करोड़ से अधिक लोगों को स्‍वच्‍छता सुविधाएं प्राप्‍त हुई। 2.7 लाख गांव, 227 जिले और 6 राज्‍य खुले में शौच से मुक्‍त (ओडीएफ) हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में 77 प्रतिशत से अधिक आबादी के लिए कम से कम 40 लीटर प्रति व्‍यक्ति प्रति दिन (एलपीसीडी) जलापूर्ति। शहरी क्षेत्रों में 90 प्रतिशत से अधिक लोगों की सुरक्षित पेयजल तक पहुंच ।

गुणवत्‍ता

  • एसबीएम शौचालय के सुरक्षित डिजाइन को बढ़ावा देता है। संबंधित गुणवत्‍ता मानक स्‍थापित करने में राज्‍य स्थिति के अनुरूप रूख अपना सकते है।
  • चार वर्ष में ग्रामीण जल से आर्सेनिक और फ्लोराइड के प्रदूषण को समाप्‍त करने के लिए भारत सरकार का राष्‍ट्रीय उप-मिशन।

स्‍वीकार्यता

  • एसबीएम समाज के सभी वर्गों में शौचालय की स्‍वीकार्यता तथा महिलाओं की निजता सुनिश्चित करने के लिए सामुदायिक जागरूकता के जरिये व्‍यवहार में बदलाव लाने पर जोर देता है।
  • सभी संस्‍थानों में पुरूषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय।

सुलभता

  • पिछले तीन वर्ष में 5.3 करोड़ से अधिक व्‍यक्तिगत आवास के लिए शौचालयों का निर्माण किया गया।
  • राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्‍ल्‍यूपी) के तहत आवासीय परिसर के भीतर या आवासों से अधिकतम 100 मीटर की दूरी पर पेयजल उपलब्‍ध कराया गया।

किफायती

  • एसबीएम के तहत शौचालय के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में 12,000 रूपये और शहरी क्षेत्रों में 4,000 रूपये की प्रोत्‍साहन राशि प्रदान की गई।
  • शहरी आबादी के लिए निशुल्‍क या अत्‍यधिक कम दर पर जल उपलब्‍ध है।

भेदभाव रहित

  • एसबीएम ने स्‍वच्‍छता के लिए समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर समुदायों पर ध्‍यान केन्द्रित किया है।
  • एसबीएम दिव्‍यांगजनों, ट्रांसजेंडर, गरीब और पिछड़े वर्गों के लिए स्‍वच्‍छता सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित करता है।
  • एनआरडीडब्‍ल्‍यूपी के तहत अनुसूचित जाति की आबादी के आवासों के लिए 22 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लोगों के आवासों के लिए 10 प्रतिशत धनराशि रखी गई है।

जानकारी हासिल करना

  • एसबीएम और एनआरडीडब्‍ल्‍यूपी दोनों के सार्वजनिक स्‍थानों पर मजबूत एमआईएस और डैशबोर्ड है।
  • एसबीएम समुदायों को स्‍वच्‍छता पर जानकारी प्रदान करने के लिए स्‍थानीय स्‍तर के जमीनी प्रेरकों को प्रशिक्षित करता है।

सहभागिता

  • ओडीएफ घोषित करने की प्रक्रिया पूरी तरह से विकेन्‍द्रीकृत, लोकतांत्रिक और समुदाय संचालित है।
  • जागरूकता फैलाने और निगरानी करने में महिलाएं, बच्‍चे और वंचित समूह अग्रणी है।
  • ग्रामीण जल और स्‍वच्‍छता समितियां जलापूर्ति योजनाओं की योजना तैयार करती है तथा उनका संचालन एवं निगरानी करती हैं।

उत्‍तरदायित्‍व

  • एसबीएम की जिला, राज्‍य और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर सम्‍पूर्ण सत्‍यापन प्रक्रिया है। प्रतिष्ठित एजेंसियों के जरिये तीसरे पक्ष से सत्‍यापन करवाना एसबीएम का महत्‍वपूर्ण पहलू है।
  • एसबीएम के अंतर्गत निर्मित सभी शौचालय जीओ टैग होने चाहिए।

निरंतरता  

  • निरंतरता एसबीएम की पहचान है। ओडीएफ के बाद निरंतर आईईसी और ओडीएफ सत्यापित गांवों का निरंतरता सत्यापन सहित विस्तृत निरंतरता प्रोटोकॉल है।
  • एनआरडीडब्ल्यूपी स्रोत और प्रणाली निरंतरता के माध्यम से जल सुरक्षा के लिए 10 प्रतिशत के आवंटन का प्रावधान करता है।

भारत के जल और स्‍वच्‍छता की अधूरी जानकारी का हवाला देते हुए वक्‍तव्‍य में कहा गया है कि यूएनएसआर राष्‍ट्रीय स्‍वच्‍छता नीति में हुए सम्‍पूर्ण बदलाव को समझने में असफल रहा है, जिसके तहत शौचालयों के निर्माण से लेकर समुदायों को खुले में शौच से मुक्‍त कराया गया है। लेकिन ऐसा लगता है कि यूएनएसआर एसबीएम को रंगीन चश्‍मे से देख रहा है। उन्‍होंने तीसरे पक्ष, भारतीय गुणवत्‍ता परिषद के 1,40,000 आवासों पर किये गये राष्‍ट्रीय सर्वेक्षण के निष्‍कर्षों पर भी प्रश्‍न उठाने की कोशिश की है, जिसमें कहा गया कि शौचालयों का उपयोग 91 प्रतिशत से अधिक था। उन्‍होंने इसकी तुलना भ्रामक ढंग से वॉटर ऐड द्वारा केवल 1,024 आवासों में कराए गये सर्वेक्षण से की, जो शौचालय प्रौद्योगिकी पर केन्द्रित था, न कि इसके इस्‍तेमाल पर।

    सरकारी स्कूलों में शौचालयों की कमी के आरोप के बारे में एक निजी संगठन की रिपोर्ट के हवाला से यूएनएसआर द्वारा किये गये दावे का खंडन किया गया है। यह ध्‍यान देने योग्‍य है कि अगस्त 2014 से अगस्त 2015 तक प्रत्येक स्कूल में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग- अलग शौचालय सुनिश्चित करने के लिए एक अभूतपूर्व कार्यक्रम सफलतापूर्वक लागू किया गया था।

      यूएनएसआर का यह भी दावा है कि जलापूर्ति पर पूरा ध्यान नहीं दिया गया और धन भी पर्याप्‍त नहीं है, जबकि वास्तविकता यह है कि 2009 में राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) के शुभारंभ के बाद से 1,20,000 करोड़ रुपये केंद्र और राज्यों द्वारा ग्रामीण पेयजल में निवेश किया गया है तथा 2005 से शहरी जलापूर्ति पर केंद्र सरकार ने 40,000 करोड़ रूपए का निवेश किया है। इसके अलावा, पानी और स्वच्छता सहित बुनियादी सेवाएं प्रदान करने के लिए लगभग 40,000 करोड़ रूपये प्रति वर्ष ग्रामीण स्थानीय निकायों (14वें वित्त आयोग के माध्यम से) को हस्‍तां‍तरित किये जाते हैं। इसके अतिरिक्‍त अधिकतर राज्यों ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए स्वयं के संसाधनों से पेयजल पर भारी निवेश किया है।

     उपरोक्त भारत में मानवाधिकार और जल आपूर्ति तथा स्वच्छता पर यूएनएसआर की रिपोर्ट (अक्सर ग्रामीण और शहरी के बीच भ्रामक) में उल्लिखित गलतियों, सामान्यीकरण और पूर्वाग्रहों के कुछ उदाहरण हैं, जो कुछ राज्यों की क्षणिक यात्राओं तथा कुछ उपाख्‍यानात्‍मक संदर्भों से केवल दो सप्ताह के दौरे के बाद तैयार किये गये हैं। सरकार सामान्य रूप से मानवाधिकारों और विशेष रूप से जल आपूर्ति तथा स्वच्छता के क्षेत्रों में मानवाधिकारों के लिए सबसे अधिक प्रतिबद्ध है और वह यूएनएसआर की रिपोर्ट तथा प्रेस विज्ञप्ति को दृढ़ता से खारिज करती है।

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