नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी ने कहा कि हम एक ऐसे अत्यधिक शक्तिशाली और मानव-प्रधान दुनिया में रहते हैं, जिसमें पर्यावरण संबंधी विषम, आकस्मिक और अपरिवर्तनीय बदलाव काफी अधिक हो रहे हैं। पृथ्वी की पारिस्थितिकी को प्रभावित करने वाली मानवीय गतिविधियों के इस विशिष्ट युग में, जिसे भू-वैज्ञानिक युग कहा जाता है,
मानवीय व्यवहार से पृथ्वी की प्रणाली में व्यापक बदलाव देखे जा रहे हैं। ऐसे में हमारे लिए उन उद्देश्यों, प्राथमिक मूल्यों और हमारी गतिविधियों से जुड़े मानकों के साथ-साथ ज्ञान प्रणालियों और सत्ता संरचना को फिर से परिभाषित करना जरूरी है। उपराष्ट्रपति महोदय आज हिमाचल प्रदेश के शिमला में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के 22वें दीक्षांत समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत विश्व की कुल भूमि का 2.4 प्रतिशत हिस्सा है, किन्तु यहां विश्व की 16 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। ऐसे जटिल परिणाम के कारण कई पीढि़यों लिए प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कर पाना संभव नहीं है। फिलहाल भारत पर्यावरण की स्थिति में तीव्र और व्यापक गिरावट का सामना कर रहा है।
उन्होंने कहा कि पर्यावरण संबंधी बदलावों और जोखिमों का प्रभाव यहां रहने वाले लोग काफी महसूस करते हैं। उनकी आजीविका, आवास स्थल और जीवनाधार-वस्तुत: उनका कुल अस्तित्व, उस पर्यावरण के साथ जुड़ा होता है, जिसमें वे रहते हैं। जबकि ऐसे भंगुर पारिस्थितिकी में रहने वाले लोग असुरक्षित हैं। इसके साथ ही समाज के गरीब और कमजोर तबका किसी प्राकृतिक अथवा मानवनिर्मित पर्यावरण संबंधी खतरे के प्रति और भी अधिक असुरक्षित है।
उपराष्ट्रपति ने बताया कि अब ऐसा लगता है कि केवल आर्थिक मूल्यों पर आधारित सतत शासन पर आधारित पहलें अपर्याप्त हैं और आंशिक तौर पर ये अनियमित विकास के कारण हैं। मानवीय खुशहाली और जीवन की गुणवत्ता महत्वपूर्ण मूल्य हैं, जैसाकि पारिस्थितिकीय सेवाओं अन्य जीवों के गैर-मानवकेन्द्रित मूल्यों पर आधारित विचार है। अब समय आ गया है कि हम प्राथमिकताओं, मार्गों के साथ-साथ निरंतरता से जुड़े गुणात्मक और मूल्यात्मक लक्ष्यों को फिर से निर्धारित करें। हमें गांधीजी के उस वक्तव्य का अक्षरश: अनुसरण करना चाहिए-‘वास्तविक अर्थशास्त्र सामाजिक न्याय के लिये होता है, यह सबसे कमजोर व्यक्ति सहित समान रूप से सबकी भलाई को बढ़ावा देता है और सभ्य जीवन के लिये अनिवार्य है।