मुंबई के एक छोटे घर में एक आदमी दौड़ लगाने का सपना देखता है। कोई रेस ट्रैक या फिर किसी बड़े नेशनल टूर्नामेंट में नहीं। वो बस यूं ही दौड़ लगाना चाहता है। उसके लिए रेस ट्रैक मुंबई की सड़के हैं। उसका लक्ष्य 100 दिनों में 10000 किलोमीटर दौड़ने का है। जी हां दस हजार किलोमीटर। इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है। वो बस अपने इस लक्ष्य को पूरा करना चाहता है। उसकी जिंदगी का ख्वाब बस इन्हीं 100 दिनों में सिमटा हुआ है। वैसे तो उसकी उम्र 40 की दहलीज को लांघ चुका है। मगर जोश में कोई कमी नहीं है।
वो न तो एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों की तरह अच्छा खान-पान लेता है। खुराक के नाम पर वह दिन में 190 रूपये खर्च करता है। बदन पर किसी से दान में मिले कपड़े हैं और हाथ में जीपीएस वॉच। वह दौड़ता है, लगातार दौड़ता है 100 दिनों तक दौड़ता रहता है। मगर 10000 किलोमीटर के लक्ष्य को पूरा करने से वह सिर्फ 36 किलोमीटर से चूक जाता है। ये कोई फिल्मी कहानी नहीं है। ये मुंबई के ऐसे शख्स की सच्ची कहानी है, जिसके जोश और जज्बे के सामने मंजिल भी छोटा पड़ गया। इस धावक का नाम है समीर सिंह।लोग उन्हें ‘फेथ रनर’ के नाम से भी बुलाते हैं। समीर सिंह ने अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए 29 अप्रैल से दौड़ लगानी शुरू की और 6 अगस्त को अपने इस लक्ष्य को पूरा किया।
99 दिनों तक वह मुंबई की सड़कों पर प्रति दिन 100 किलोमीटर दौड़ते रहे। लेकिन लेकिन पांव के छाले, कमज़ोरी और बुखार ने इस सपने को अपनी मंजिल तक पहुंचने से रोक लिया। समीर 100 वें दिन 64 किलोमीटर ही दौड़ पाए। इस 100 दिनों के अंतराल में वह 9964 किलोमीटर का दौड़ लगाकर विश्व रिकॉर्ड कायम किया। साथ ही उनका नाम अल्ट्रा मैराथन रनर के तौर पर दर्ज हुआ।
आपको बता दें, मुंबई और लंदन के बीच 7187 किलोमीटर का फासला है। इस लिहाज से देखा जाए तो समीर 72 वें दिन ही इस लक्ष्य को पार कर लिया था। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर समीर ने ऐसा कदम क्यों उठाया? वह क्या साबित करना चाहते थे? मीडिया से मुखातिब होकर समीर कहते हैं- हमलोगों ने यह मान लिया है कि शरीर की सीमाएं हैं। लेकिन पवित्र ग्रंथों के अनुसार शरीर की कोई सीमा नहीं है। यदि आपके सपने हैं, तो आपका शरीर उसके अनुसार आकार ले लेता है। हर व्यक्ति के अंदर हुनर है लेकिन वह खुद को पहचान नहीं पाता है।”
समीर प्रतिदिन सुबह 6 बजे से 9 बजे तक मरीन ड्राइव की ओर दौड़ते। इसके बाद लगभग आधे घंटे का ब्रेक लेकर वापस अपने घर लगभग 2 बजे तक पहुंच जाते थे। समीर के इस अनोखे अचीवमेंट पर फ़िल्ममेकर वंदना और विक्रम भट्टी एक फ़िल्म बना रहे है। साथ ही कुछ महीने पहले दोनों फिल्मकार सोशल मीडिया पर कैंपेन भी चला रहे थे।