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सम्मान के साथ विकास हमारे राष्ट्र का एजेंडा होना चाहिएः उपराष्ट्रपति

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नई दिल्लीः उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि सम्मान के साथ विकास हमारे राष्ट्र का एजेंडा होना चाहिए और संसद में मात्र विधेयक प्रस्तुत करने से स्थितियों में परिवर्तन नही होगा, जबतक कि हम लोगों में राजनीतिक इच्छा शक्ति व प्रशासनिक कौशल का समावेश न हो। उपराष्ट्रपति ने आज यहां राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का 10 वां वार्षिक व्याख्यान प्रस्तुत किया। इस व्याख्यान का विषय था- राष्ट्र निर्माण में अल्पसंख्यक। उपराष्ट्रपति ने कहा कि बहुलता, समावेशी और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व हमारे प्रशासन का प्रमुख स्तम्भ होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए अल्पसंख्यक आयोग को सटीक उपाय सुझाने चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि समावेशी विकास आयोग का मूलभूत सिद्धान्त है और लोकतंत्र के फायदों को उन लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए जो पीछे छूट गए हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि अन्त्योदय का सिद्धान्त है- सबसे कमजोर, सबसे दूर और सबसे छोटे समुदायों का सशक्तिकरण। उन्होंने कहा कि भारत का निर्माण संविधान द्वारा प्रदत्त 4 स्तम्भों पर आधारित है- न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व। उन्होंने आगे कहा कि ये चार स्तम्भ ही भव्य भारत की संरचना की शक्ति निर्धारित करते है। राष्ट्र निर्माण में अल्पसंख्यक समुदायों की भूमिका अद्धभूत है। वे ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि वे भारतीय के रूप में अपनी पहचान को बहुत महत्त्व देते हैं।

एक बार जब हम राष्ट्रीय हितों को अपने विकास एजेंडा में सबसे उच्च स्थान देते हैं तो अन्य कारक अपने आप ही कम महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक को सीखने के लिए, कमाने के लिए और आगे बढ़ने के लिए समान अवसर मिलने चाहिए। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है और हमें एक सीखने वाले समाज के रूप में भी विकसित होना है। जाति, वर्ग, क्षेत्र, और धर्म भाषा से निरपेक्ष होकर हम सबसे पहले भारतीय हैं।

उप राष्ट्रपति ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को आत्मंथन करना चाहिए और विध्वंसक, बांटने वाली, निराशाजनक और विसंगतियों की पहचान करनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि हमें सामूहिक रूप से धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ बुरी  प्रवृत्तियों हराना होगा। उन्होंने कहा कि “आंतरिक तनाव नकारात्मक होते है और हमें अपनी समृद्ध मानवीय क्षमताओं का प्रयोग राष्ट्र निर्माण के लिए करना चाहिए।

श्री नायडू ने कहा कि हमारा देश के समृद्ध होने के पीछे कई समूहों द्वारा कला, वास्तुकला, संगीत और नृत्य के क्षेत्र में दिया गया योगदान है। उन्होंने कहा किहमारी विरासत में शामिल मंदिरों, मस्जिदों, चर्चों, विहारों, स्तूप, गुरुद्वारों और मठों की वास्तुकला मानव उत्कृष्टता का एक आकर्षक उदाहरण है।

इस अवसर पर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री, श्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि पिछले तीन वर्षों के दौरान,सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया है कि ‘विकास का प्रकाश’ समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों में, केंद्र सरकार में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व 4.5% से बढ़कर 9.8% हो गया है। श्री नकवी ने कहा कि सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित महिलाओं के सशक्तिकरण पर विशेष जोर दिया है।

अपने स्वागत भाषण में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्‍यक्ष श्री सैयद ग़य्यूर-उल-हसन रिज़वी ने कहा कि सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में छह समुदायों यथा मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी को मान्यता दी है। श्री रिजवी ने कहा कि सरकार अल्पसंख्यक समुदायों को तुष्टीकरण से सशक्तिकरण की ओर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्‍होंने कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार अल्‍पसंख्‍यक समुदायों की कुल संख्‍या 23 करोड़ 4 लाख है। एनसीएम के सचिव श्री जे. आर. के. राव ने धन्‍यवाद ज्ञापन किया। एनसीएम के उपाध्‍यक्ष श्री जॉर्ज कुरियन भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग वर्ष 2008 से ही अल्पसंख्यकों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर वार्षिक व्याख्यान आयोजित करता रहा है। छह अल्पसंख्यक समुदायों के कुछ प्रतिनिधि, एनसीएम के अधिकारी एवं कर्मचारी और कुछ विदेशी प्रतिनिधि भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

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