नई दिल्लीः जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम की गैलरी में मौजूद कोच विजेंदर सिंह के चेहरे पर उस समय आत्मविश्वास और हल्की घबराहट दोनों के मिले-जुले भाव थे जिस समय खेलो इंडिया स्कूल खेलों की एथलेटिक प्रतियोगिताओं की शुरुआत में बालिकाओं की 800 मीटर दौड़ प्रतियोगिता को देखने के लिये वे खड़े थे। जब तक दौड़ पूरी नहीं हो गयी तब तक उन्होंने किसी से कोई बात नहीं की।
छोटे कद की उनकी शिष्या ताई बम्हाने केरल की दो खिलाड़ियों प्रिसिला डैनिएल और सांड्रा ए.एस से मुकाबला कर रही थी। और एक दूरी से वह केवल उसकी शारीरिक भाव-भंगिमा को ही देख सकते थे जब वह ट्रैक पर उतर रही थी। उनको चिंता करने की जरूरत नहीं थी क्योंकि ताई बम्हाने ने जो कि पश्चिम महाराष्ट्र के वर्ली जनजातीय समुदाय से आती है, दो चक्रों वाली प्रतियोगिता को एक अनुभवी धावक के आत्मविश्वास और निर्भीकता से पूरा किया।
मराठी माध्यम की नाशिक की विद्याप्रबोधिनी प्रशाला की 15 वर्षीय की यह छात्रा अपने उन दोनों प्रतिद्वंदियों से आगे ही बनी रही जिन्होंने गुरुवार को हुये सेमी-फायनल में उससे पहले दौड़ पूरी की थी और उसने 2:13.37 सेकेण्ड में दौड़ पूरी कर ली। जैसे ही ताई ने स्वर्ण जीता, विजेंदर सिंह के चेहरे पर मुस्कान छा गयी। जो योजना उन्होंने बनायी थी वो दोबारा सफल रही।
पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से विजेंदर सिंह पिछड़े इलाकों से नयी प्रतिभाओं को खोज रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित कर उनका मार्ग निर्देशन कर रहे हैं। वे कई एथलीटों के मार्ग निर्देशक रहे हैं जिसमें मैराथन में भाग लेने वाली कविता राउत, लंबी दूरी की धावक संजीवनी जाधव, रंजीत पटेल, किशन तड़वी और कई अन्य शामिल हैं। वे शांति से जमीनी स्तर पर काम कर चैंपियन पैदा करते रहे हैं।
उन्होंने कहा, “नाशिक का साल भर का मौसम और इसका समुद्र स्तर से 700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होना मध्यम एवं लंबी दूरी के धावकों की मदद करता है। ये भी सच है कि इन लड़कियों की पारिवारिक पृष्ठभूमि जिसमें 20-30 लीटर पानी को सिर पर 15 किलोमीटर तक ढोना भी शामिल होता है और जिसकी वजह से इन लड़कियों को शक्तिशाली एथलीट बनने में मदद मिलती है।”