नई दिल्ली: आम बजट 2018 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रति सरकार के पूर्ण समर्थन को एकबार फिर से व्यक्त किया गया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय गहरे समुद्र से लेकर ब्रहमांड के रहस्यों पर शोध व अनुसंधान करता है। मंत्रालय/ विभाग में जमीनी स्तर पर नवाचार करने वालों से लेकर उच्च स्तरीय वैज्ञानिक कार्यरत हैं। इनके कार्य किसान से लेकर एयरो स्पेस उद्योग तक को प्रभावित करते हैं।
इतने विशाल क्षेत्र में शोध व तकनीकी विकास के लिए निवेश की जरूरत पड़ती है। वर्तमान सरकार ने विज्ञान, तकनीक और नवोन्मेष के प्रोत्साहन के लिए पहले से अधिक धनराशि का आवंटन किया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में पिछले 5 वर्षों के दौरान बजट में 19764 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की गई थी। यह पूर्व के 5 सालों (2009-10 से 2013-14) की तुलना में 90 प्रतिशत अधिक है। जैव प्रौद्योगिकी विकास के लिए बजट आवंटन में 65 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी तरह बजट आवंटन में विज्ञान और औद्योगिक विकास परिषद के लिए 43 प्रतिशत तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के लिए 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
पिछले तीन – चार सालों के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के कार्यों में परस्पर सहयोग बनाने का प्रयास किया गया है।
इस दौरान नवोन्मेष और नवाचार कार्यकलापों को मजबूत समर्थन दिया गया है। 2018-19 के दौरान 15 नए जैव प्रौद्योगिकी इनक्यूबेटर और 15-20 नए प्रौद्योगिकी व्यापार इनक्यूबेटर स्थापित किए जायेंगे। जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) अगले वर्ष 3000 अतिरिक्त स्टार्टअप की सहायता करेगा।
सीएसआईआर विश्व के सर्वोच्च 100 संगठनों में एक है। यह उद्योग के लिए अनुसंधान करता है। इसके कार्यों में घरेलू उद्योग की जरूरतों के साथ-साथ राष्ट्र की सामाजिक जरूरतों को भी शामिल किया गया है। मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत, गंगा संरक्षण, स्वस्थ्य भारत, स्मार्ट सिटी, स्मार्ट गांव, स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे कार्यक्रमों में यह संगठन सहायता प्रदान करता है।
2018-19 के दौरान कृषि-मौसम से संबंधित दिशा-निर्देश 5 करोड़ किसानों तक पहुंचेंगे। अभी ये निर्देश 2.4 करोड़ किसानों तक पहुंच रहे हैं। बायोटैक किसान 15 कृषि – जलवायु क्षेत्रों में किसानों की सहायता कर रहा है। एरोमा मिशन के तहत सुगंधित पौधों की खेती के लिए किसानों को सहायता प्रदान की जा रही है।
पं. दीनदयाल उपाध्याय विज्ञान ग्राम संकुल परियोजना के तहत उत्तराखंड में गांवों के समूह के विकास तथा बेहतर आजीविका के लिए स्थानीय संसाधनों व कौशल का उपयोग किया जा रहा है।