आज से केवल आठ दिन और फिर हर कहीं होली के रंग बिखरे नजर आएंगे। आपको बता दें कि होली के आठ दिन पहले से होलाअष्टक लग जाते हैं। यह वह अवधि है जब कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य आयोजित नहीं किए जाते। पंडित अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि इस बार 1 मार्च को होलिका दहन है। इसलिए होलाष्टक आज से यानी 23 फरवरी से शुरू हो रहे हैं।
पंडित शर्मा कहते हैं कि ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक होलाष्टक के दौरान ग्रह अपने तेवर में रहते हैं। उनके इसी उग्र स्वभाव का असर हर राशि यानी हर व्यक्ति पर पड़ता है। यानी ग्रहों के उग्र तेवर वाली चाल का असर मनुष्य के जीवन को प्रभावित करता है।
पंडित शर्मा बताते हैं कि होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में रहते हैं, उनके इस स्वभाव के कारण इन दिनों जो भी शुभ कार्य किए जाएंगे उनका शुभ फल प्राप्त नहीं होता।
नहीं होंगे ये कार्यक्रम
पंडित अशोक कुमार शर्मा के मुताबिक होलाष्टक अवधि शुरू होने के कारण 23 फरवरी से 1 मार्च तक विवाह, गृह प्रवेश, अन्य शुभ कार्य, यज्ञ आदि नहीं किए जाएंगे।
क्या है होलाअष्टक और क्यों होते हैं शुभ कार्य वर्जित
पंडित शर्मा बताते हैं कि माघ पूर्णिमा से होली की तैयारियां शुरूहो जाती हैं। होलाष्टक आरंभ होते ही दो डंडों को स्थापित किया जाता है, इसमें एक होलिका का प्रतीक है तो दूसरा प्रह्लाद का। मान्यता है कि होलिका से पूर्व 8 दिन दाह-कर्म की तैयारी की जाती है और दाह-कर्म मृत्यु का सूचक है। इस दु:ख के कारण होली के पूर्व 8 दिन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। जब प्रह्लाद बच जाता है, उसी खुशी में होली खेलकर त्योहार मनाया जाता है।
ये भी है मान्यता
वे बताते हैं कि इसके अलावा ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के अपराध में कामदेव को शिवजी ने फाल्गुन की अष्टमी में भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने उस समय क्षमा याचना की और शिव जी ने कामदेव को पुन: जीवित करने का आश्वासन दिया। इस खुशी में लोग रंग से खेलते हैं।
ये 16 संस्कार होते हैं निषेध
होलाष्टक में 16 संस्कारों को पूरी तरह से प्रतिबंधित माना गया है। वहीं ग्रह प्रवेश, मुंडन, गृह निर्माण कार्य आदि भी इन दिनों शुरू नहीं किए जाते हैं।
इन ग्रहों के दिखते हैं तेवर
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव में रहते हैं। माना जाता है कि इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है ऐसे में अक्सर उससे गलत निर्णय भी हो जाते हैं। नतीजा हर तरह से हानि की आशंका प्रबल हो जाती है।
जानें वैज्ञानिक आधार
हिन्दु शास्त्रों में हर त्योहार का अपना वैज्ञानिक महत्व होता है। होलाअष्टक के वैज्ञानिक आधार के मुताबिक यह समय मौसम परिवर्तन का समय है। मौसम के परिवर्तन के कारण मन इस समय अक्सर उदास रहता है। इसलिए जब यह अवधि समाप्त होती है तो हम आनंद में डूबने का प्रयास करते हैं। यही दिन होली के रूप में साकार होता है।
–newsdnntv