शिवानंद गिरी पटना उद्योग धंधों की स्थापना के लिए बिहार में विशेष राज्य का दर्जा और इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी का शोर तो बहुत सुनाई दिया लेकिन इन सब के इतर नेपाल के सीमावर्ती इलाके में बिहार का एक गांव ऐसा भी है जो बिना किसी सरकारी संरक्षण और प्रोत्साहन के उद्योग-धंधों वाले गांव के रूप में अपनी पहचान बना चुका है. कमाई इतनी कि इस गांव का टर्नओवर 100 करोड़ से ऊपर का हो चुका है. छोटे से गांव में 90 उद्योग लगाए जा चुके हैं और जिन इलाकों से मजदूरों के पलायन की खबरें थी आज उसी इलाके में निर्मित मशीनें बिहार के अलावा दूसरे राज्यों में बिक्री के लिए भेजी जा रही हैं.
हम बात कर रहे हैं शीतलपुर नाम के एक गांव की. बिहार और नेपाल की सीमा पर स्थित रक्सौल जिले के इस गांव में 37 साल पहले शुरु हुई छोटी मुहिम क्रांति का शक्ल ले चुकी है. बेरोजगारी के लिए चर्चित बिहार में इस गांव के हर युवक के पास रोजगार है तथा एक मजदूर की प्रेरणा से अब तक 90 उद्योग लगाए जा चुके हैं.
जापान में लिया प्रशिक्षण बिहार में शुरू की इकाई
रक्सौल के शीतलपुर निवासी वासुदेव शर्मा बेरोजगारी केकारण मजदूरी करने नेपाल चले गए थे. जिस कंपनी में वासुदेव शर्मा काम करते थे उस कंपनी ने इन्हें जापान भेजा था. चावल बनाने वाली सेलर मशीन का प्रशिक्षण लेने जापान गए वासुदेव ने मशीन की सारी बारीकियां समझ ली. वासुदेव नेपाल आए तो मजदूरी छोड़ दी और वापस गांव आ गए. मन में अपनी सेलर इकाई स्थापित करने की ठानी. पूंजी की कमी थी तो बैंक और बाजार से कर्ज लेकर उन्होंने मशीन बनाने का काम शुरु किया. धीरे धीरे गांव के कई युवकों को जोड़ा गया और 5 साल के बाद गांव में दूसरे लोगों ने भी मशीनें लगानी शुरू कर दी.
एक मशीन बनाने में 8 से 12 दिन का समय लगता है
एक मशीन बनाने में 8 से 12 दिन का समय लगता है और 30 से 35 लाख की लागत में यह मशीनें तैयार होती हैं. शीतलपुर गांव में चावल बनाने वाली सेलर मशीन बनाने के रोजगार में 15000 लोग जुड़े हुए हैं तथा 90 इकाइयां अकेले इस गांव में स्थापित हो चुकी हैं. शीतलपुर में बनी मशीनें बिहार के अलावा झारखंड, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा और यूपी तक में बिकती हैं. इसके अलावा जिस नेपाल में वासुदेव शर्मा कभी चावल बनाने की मशीन वाली फैक्ट्री में काम करते थे आज उसी नेपाल में इनकी बनाई मशीन बेची जा रही हैं.
क्या है सेलर मशीन?
सेलर चावल बनाने वाली मशीन होती है. एक घंटे में एक दिन चावल तैयार करने की इसकी क्षमता होती है. धान उत्पादक इलाकों में इन मशीनों की मांग काफी बढ़ चुकी है. यहां की मशीनें दूसरे इलाकों में काफी पसंद भी की जा रही हैं. वासुदेव शर्मा ने 1979 में सेलर मशीन बनाने वाली पहली इकाई लगाई और लगभग 10 सालों की तपस्या के बाद गांव के कई लोग उनके साथ हो लिए और जिस गांव से कभी मजदूर दूसरी जगहों पर मजदूरी करने जाते थे आज वहां लगभग 200 इकाइयां चल रही हैं.