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रेलवे के कोविड-19 आपातकालीन प्रकोष्ठ से लगभग 13,000 प्रश्नों, अनुरोधों और सुझावों का प्रतिदिन जवाब दिया जा रहा है

देश-विदेश

नई दिल्ली: भारतीय रेल ने यात्रियों और सभी वाणिज्यिक ग्राहकों के हितों का ध्यान रखने और राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला निर्बाध चलते रहना सुनिश्चित करने के लिए हर संभव उपाय किए हैं। कोविड-19 महमारी के फैलाव को रोकने के लिए लॉकडाउन के दौरान उसने अपनी यात्री सेवाएं पूरी तरह बंद करदी हैं लेकिन इसके बावजूद आम जनता से रेलवे का नाता नहीं टूटा है और वह आपूर्ति सेवाओं के माध्यम से जन जन से जुड़ी हुई है। लॉकडाउन के दौरान यह महसूस किया जाने लगा था कि रेलवे के पास ऐसी कोई व्यवस्था होनी चाहिए जिससे वह लोगों की शिकायतें और सुझाव सुन सके और उन पर तेजी से प्रतिक्रिया दे सके। इसे ध्यान में रखते हुए ही अलग से एक कोविड-19आपातकालीन प्रकोष्ठ बनाया गया ।

रेलवे का यह आपातकालीन प्रकोष्ठ एक राष्ट्रीय स्तर की इकाई हैजिसमें रेलवे बोर्ड से लेकर उसके डिवीजनों तक के लगभग 400 अधिकारी और कर्मचारी शामिल हैं। लॉकडाउन के दौरान, यह प्रकोष्ठ पांच संचार और प्रतिक्रिया प्लेटफार्मों – हेल्पलाइन नंबर 139 और 138, सोशल मीडिया (विशेष रूप से ट्विटर), ईमेल (railmadad@rb.railnet.gov.in)और सीपीग्राम के माध्यम से लगभग 13,000 प्रश्नों, अनुरोधों और सुझावों का प्रतिदिन जवाब दे रहा है। इनमें से 90 प्रतिशत से  अधिक प्रश्नों का सीधे तौर पर टेलीफोन पर जवाब दिया गया वो भी कॉल करने वाले व्यक्ति की स्थानीय भाषा में। रात दिन 24 घंटे काम करने वाले इस प्रकोष्ठ के माध्यम से भारतीय रेल जनमानस की समस्याओं को समझने के लिए जमीनी स्तर पर जुड़ी हुई है। लोगों की शिकायतों और समस्याओं के त्वरित निबटान के प्रयास उसके लिए प्रशंसा अर्जित कर रहे हैं।

रेल मदद हेल्पलाइन 139 पर लॉकडाउन के पहले चार हफ्तों में टेलीफोन पर सीधे संवाद के जरिए 2,30,000 से अधिक प्रश्नों के उत्तर दिए गए। हेल्पलाइन नंबर 138 और 139 पर रेल सेवाओं के शुरू होने और टिकट वापसी के नियमों की जानकारी दी गई (ये दोनों नंबर खुद जनता से मिले फीडबैक के आधार पर शुरु किए गए थे) सोशल मीडिया रेलवे के इन प्रयासों की प्रशंसा से अटा पड़ा है।

लॉकडाउन की इसी अवधि के दौरान, हेल्पलाइन नंबर 138 पर 1,10,000 से अधिक कॉल आईं, जो कि जियो-फेन्सड है यानी यदि ऐसी कोई भी कॉल रेलवे डिवीजनल कंट्रोल ऑफ़िस में आती है तो (रेलवे कर्मियों द्वारा चौबीसों घंटे चलने वाली हेल्पलाइन सेवा के जरिए ऐसी कॉल का जवाब कॉल करने वाले व्यक्ति की भाषा में ही दिया जाता है) कंट्रोल रूम में ऐसे अधिकारियों की तैनाती की गई है जो स्थानीय भाषाओं से भलिभांति वाकिफ होते हैं। इस व्यवस्था से रेलवे के ग्राहकों के लिए सूचनाओं के प्रवाह को गति मिलती है।

लॉकडाउन की अवधि के दौरान, पार्सल के माध्यम से चिकित्सा आपूर्ति, चिकित्सा उपकरण और भोजन जैसी आवश्यक वस्तुओं के त्वरित परिवहन की आवश्यकता महसूस की गई जिसपर एक बार फिर से रेलवे ने तेजी से प्रतिक्रिया देते हुए जीवन रक्षक दवाओं जैसी आवश्यक वस्तुओं की समयबद्ध आपूर्ति के लिए पार्सल रेलगाड़ियों की शुरुआत की। इस कदम की व्यवसायियों और आम लोगों ने सराहना की है। एक व्यवसायी,जिसे बेंगलुरु रेल डिवीजन द्वारा गढ़चिरौली से बेंगलूरु चावल की खेप ले जाने में मदद की गई और फिर दिल्ली डिवीजन द्वारा दिल्ली से चावल की पैकेजिंग सामग्री प्राप्त करने में भी मदद की गई ने, रेल मंत्रालय को धन्यवाद प्रेषित करते हुए कहा है:  सर मैं रेल मंत्रालय का दिल से आभार प्रकट करना चाहूंगा। धन्यवाद।’

रेलवे ने जहां भी संभव हो सका , जनता से प्राप्त सुझावों को रियल टाइम आधार पर शामिल किया। उदाहरण के लिए, यशवंतपुर (बेंगलूरु) से गुवाहाटी तक के लिए ईस्ट कोस्ट रेलवे द्वारा एक विशेष पार्सल रेलगाड़ी चलाने की योजना बनाई गई थी। हालाँकि, इसका विशाखापत्तनम में नियोजित ठहराव नहीं था, लेकिन ट्विटर पर एक सुझाव मिलने के बाद इस रेलगाड़ी का विशाखापत्तनव में ठहराव सुनिश्चित किया गया।

रेलवे ने लॉकडाउन की अवधि में जीवन रक्षक दवाओं का परिवहन कर उन लोगों तक यह दवाएं पहुंचाई जो सबकुछ बंद होने के कारण इन्हें नहीं खरीद पा रहे थे। वर्तमान में लुधियाना में रह रहे कनाडा निवासी एनआरआई, ने नागपुर से लुधियाना तक उनकी दवाएं पहुंचाने के लिए मध्य रेलवे की सराहना की है। रेलवे ने यह काम तब किया जबकि इन दोनों शहरों के बीच सीधी रेले सेवा नहीं है। इसी तरह से  पश्चिम रेलवे ने अहमदाबाद से रतलाम एक बच्चे के लिए आवश्यक दवाइयां पहुंचाई जो कि उसके लिवर प्रत्यारोपण के बाद तत्काल जरुरी थीं। बच्चे ने ट्विटर पर प्रशंसा के एक हस्तलिखित पत्र को अपलोड करते हुए कहा: ‘मुझे खुशी है कि भारतीय रेलवे के पास इस कठिन समय में अपने नागरिकों के लिए सभी सुविधाएं हैं – भारतीय रेलवे सर्वश्रेष्ठ है’। उत्तर पश्चिम रेलवे ने ऑटिज्म से पीड़ित 3 साल के एक बच्चे के लिए उंटनी का 20 लीटर दूध पहुंचाने के लिए जोधपुर में पूर्वनिर्धारित ठहराव से अलग रुक कर दूध के कंटेनर उठाए। इसके लिए, एक शुभचिंतक ने रेलवे के प्रयासों की सराहना करते हुए लिखा: यह देखना आश्चर्यजनक है कि चीजों को सहजता के साथ कैसे किया जाता है,जहां चाह होती है वहां राह भी होती हैं। ‘

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