New Delhi: The Vice President of India, Shri M. Venakaih Naidu has said that abrogation of article 370 was welcomed by people cutting across all political lines in the country.
Participating in the 35th Foundation Day celebrations of Prabhat Khabar, a Hindi daily, in Ranchi, Jharkhand today, the Vice President said the need of the hour was to protect India’s unity, integrity and sovereignty of the country. “As regards to the country’s unity and integrity, we all should speak in one voice,” he added.
Shri Naidu expressed happiness that both the houses of Parliament passed the resolution after a thorough discussion. While it was passed with – 2/3rd majority in Rajya Sabha, it secured the support of – 4/5th members of Lok Sabha. ‘’It speaks about the wishes of the people of the country and that is the mood of the country’ he added.
The Vice President said that there was a need for the younger generation of the country to know about Article 370 and its constitutional history.
Pointing out that Article 370 was a temporary and transient provision, the Vice President mentioned that way back in 1964, MPs cutting across party lines including those from ruling party almost unanimously supported a non official resolution seeking its abrogation.
Reading out details of the news item published by a National English daily at that time, the Vice President said that the non official resolution moved by Shri Prakash Vir Shastri in Lok Sabha was supported by leaders like Shri Ram Manohar Lohia, Shri H.V. Kamat, Shri K. Hanumantaiya and others.
Quoting from the same news report, he said that the members from Kashmir argued that the state had suffered by not being treated on par with the rest of the country.
Referring to the positive and constructive role of the Fourth Estate, the Vice President advised the media to present only facts and unadulterated news and leave the judgment to people. “Do not mix news and views,” he added.
Shri Naidu said that journalism was once considered as a mission to transform the society and the country he observed that a section of the media today was not adhering to the principles and was giving remission to truth.
The Vice President cautioned the media to guard against fake and paid news and follow a strict verification mechanism before publishing or broadcasting news developments. He suggested that electronic media should also have its own regulation mechanism on the lines of the Press Council of India.
The Governor of Jharkhand, Smt Draupadi Murmu, the Chief Minister of Jharkhand, Shri Raghubar Das, the Deputy Chairman of Rajya Sabha, Shri Harivansh and other eminent personalities from media were present at the event.
Following is the text of Vice President’s address in Hindi:
“झारखंड प्रदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र प्रभात खबर के 35 में वार्षिक समारोह में आप सभी सम्मानित महानुभावों के साथ सम्मिलित होकर अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा हूं।
80 के दशक में मात्र 500 की सरकुलेशन से आरंभ कर आज आप 8 लाख से अधिक सरकुलेशन तक पहुंच गए हैं। आपके लगभग 1.5 करोड़ पाठक हैं। बिहार, बंगाल और झारखंड में आपके 10 संस्करण प्रकाशित होते हैं। यह उपलब्धि आपकी निर्भीक पत्रकारिता के प्रति निष्ठा और उसमें जनता के विश्वास को दर्शाती है। आपकी उपलब्धि न केवल अभिनंदनीय है, बल्कि भारतीय पत्रकारिता के लिए एक शुभ संकेत भी है।
पिछले 35 वर्षों में आपकी यात्रा अखबार से आंदोलन बनने वाली यात्रा रही है और आंदोलन तभी बनते हैं जब उनको जनसमर्थन प्राप्त हो और जनता का विश्वास हो। गत तीन दशकों में आपने जनता का विश्वास अर्जित किया है यह आपकी निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता का परिणाम है।
प्रभात खबर से मेरा विशेष नाता रहा है। मेरे सहयोगी राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश जी इस पत्र से कई वर्षों तक करीब से जुड़े रहे। मैंने भी समय-समय पर इस पत्र में सामयिक विषयों पर तथा देश की महान विभूतियों के कृतित्व पर अपने आलेखों के माध्यम से पाठकों से संवाद किया है। मुझे यह जानकर अत्यंत हर्ष है कि अब यह आंदोलन अखबार से आगे बढ़कर रेडियो तथा ऑनलाइन मीडिया से भी जुड़ गया है।
मित्रों, मीडिया स्वस्थ लोकतंत्र का न केवल एक अंग है बल्कि एक अपरिहार्य शर्त भी है। मीडिया को लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ माना गया है। गांधी जी ने तो कहा भी था कि आज लोग पवित्र ग्रंथों से अधिक प्रेस पर विश्वास करते है। यह बात अतिश्योक्ति लग सकती परंतु इसमें वर्तमान समाज की सच्चाई भी है। यद्यपि हमारे संविधान में प्रेस की आजादी को खुले तौर पर मूल अधिकार नहीं माना गया है – तथापि संविधान सभा की बहस से ज्ञात होता है कि मीडिया की स्वतंत्रता को अभिव्यक्ति की मौलिक स्वतंत्रता का ही विस्तार मानने पर सर्वसहमति थी। उसके बाद उच्चतम न्यायालय के अनेक निर्णयों ने इस मान्यता को वैधानिकता भी प्रदान की। महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रेस की स्वतंत्रता बेशकीमती है-जिसे कोई भी देश नहीं खोना चाहेगा।
आपातकाल के कड़वे अनुभव के बाद, हमारी संसद में मीडिया की स्वतंत्रता के प्रति सर्वसम्मति रही है। जहां बाकी तीन स्तंभों के लिए संविधान में प्रावधान है, मीडिया को जन विश्वास प्राप्त है। आपको ज्ञात होगा कि हमारे स्वाधीनता आंदोलन में तब के पत्रों, विशेषकर भारतीय भाषाई पत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। देश का बौद्धिक वर्ग इन्हीं पत्रों के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन का समर्थन कर रहा था। हमारे नेताओं ने अपने पत्र प्रकाशित किये और जनसमर्थन को जोड़ा।
मित्रों, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया के इस दौर में भी प्रिंट मीडिया का महत्व बरकरार है। शब्दों का सौंदर्य, विचारों का विस्तार, पत्रकारिता की गंभीरता, अभिव्यक्ति की मर्यादा-अखबार के पन्नों में ही दिखते हैं। टेक्नोलॉजी के इस युग में मीडिया के नए माध्यम तो आएंगे ही लेकिन लिखे हुए शब्दों की मर्यादा सदैव बरकरार रहेगी। मनुष्य ने सदियों के प्रयासों के बाद अपने विचारों को लिपिबद्ध करना सीखा है। अत: लिखे हुए शब्दों की विश्वसनीयता, उसकी गंभीरता आज भी सभी स्वीकारते हैं।
अखबारों के ऑनलाइन संस्करण आने से न केवल अखबारों की लोकप्रियता में वृद्धि हुई बल्कि अब अखबारों के किसी भी संस्करण को और यहां तक कि पुराने अखबारों को कहीं पर भी, किसी समय भी, अपने स्मार्टफोन और पढ़ा जा सकता है। टेक्नोलॉजी ने वस्तुत: अखबारों की लोकप्रियता को बढ़ाया ही है।
यदि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसकी भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है। मीडिया की विश्वसनीयता जनता के सरोकारों और जन विश्वास पर ही टिके होते हैं। मीडिया राष्ट्रीय संसाधन है। जिसे पत्रकार बंधु जन विश्वास या ट्रस्ट में प्रयोग करते हैं। इसलिए आवश्यक है कि मीडिया जनसरोकारों के प्रति सत्यनिष्ठ रहें। महात्मा गांधी ने कहा था कि पत्रकार का कर्तव्य है कि वह देश के जनमानस का पढ़ें और निर्भीक हो कर उसे मुखर अभिव्यक्ति दें। उन्होंने कहा था कि पत्रकारिता का उद्देश्य मात्र समाज सेवा ही होना चाहिए। महात्मा गांधी के ये वचन, आज भी पत्रकारिता के लिए मूलमंत्र के समान हैं।
संसद और मीडिया एक दूसरे के सहयोगी हैं। दोनों ही संस्थान जनभावनाओं को अभिव्यक्ति देते हैं। आज जब हम बढ़ती और बदलती जनअपेक्षाओं के युग में रह रहे हैं तब आवश्यक है कि हम भी अपने स्थापित पूर्वाग्रहों को त्यागें और जन अपेक्षाओं को स्वर दें। मीडिया को भी विकासवादी सकारात्मक राजनीति का वाहक बनना होगा। मीडिया सरकारों और राजनैतिक दलों की जवाबदेही अवश्य तय करे परंतु उसके केन्द्र में जनसरोकार हों न कि सत्ता संस्थान। मीडिया यथा स्थितिवादी राजनीति में बदलाव का कारक बने। मीडिया को दलीय राजनीति से ऊपर उठकर जनकेन्द्रित मुद्दे उठाने चाहिए।
हाल के चुनावों में, प्रचार के दौरान मीडिया में कुछ नयी खेदजनक प्रवृत्तियां दिखी है। पेड न्यूज, फेक न्यूज, सोशल मीडिया का अनियंत्रित प्रयोग इन सब विषयों पर मीडिया को सम्मिलित रूप से चिंता करनी चाहिए और व्यावहारिक निदान सुझाने चाहिए।
चुनाव लोकतंत्र का पवित्र यज्ञ है जिसमें सभी मतदाता भाग लेते हैं। अफवाहों, मिथ्यारोपों से बचाकर इस प्रक्रिया की शुचिता बनाये रखना हमारे स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।
चुनाव भविष्य के विकास के ऐजेंडे पर लड़े जाने चाहिए। उम्मीदवार के आचरण, विचारधारा, क्षमता और निष्ठा के आधार पर चुनाव होना चाहिए, न कि जाति, धर्म, बाहुबल, धन बल या आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर।
चुनाव हमारे नागरिकों विशेषकर युवाओं की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति है। मैं मीडिया से आग्रह करूंगा कि वे जाति, धर्म के संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठकर युवाओं, महिलाओं, किसानों, उद्यमियों की अपेक्षाओं को स्वर दें।
कुछ समय बाद राज्य में फिर चुनाव होंगे – एक बार पुन: मीडिया को अवसर मिलेगा कि वे जनसरोकारों, जन भागीदारी को चुनाव के केन्द्र में रखें। प्राय: देखा गया है कि चुनावों के दौरान मीडिया में मतदान और मतदाताओं के जातीय विश्लेषण किये जाते हैं। इससे समाज में जातीय और सांप्रदायिक विभाजन और गहरे होते हैं, जो स्वस्थ राजनीति के उद्देश्य को ही विफल कर देते हैं। मैं आग्रह करूंगा कि देश में लोकतंत्र के नये संस्कारों को विकसित करें।
यदि मीडिया में लोकतांत्रिक संस्कारों को दृढ़ करना है तो पत्रकारिता के केन्द्र में जनसरोकारों को रखना होगा। यहां पर स्थानीय समाचार पत्रों की महती भूमिका रहती है। आप न केवल स्थानीय अपेक्षाओं को प्रतिबिंबित करते है बल्कि भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने के कारण आप जनाकांक्षाओं के अधिक निकट हैं। आप स्थानीय विशेषज्ञों और विद्वानों को मीडिया में अपना मत प्रकट करने का अवसर देते हैं।
मेरा आग्रह होगा कि प्रेस का ध्यान सत्ता संस्थानों के अतिरिक्त जन सहयोग, जनसरोकारों पर भी होना चाहिए। आखिर झारखंड में पहाड़ की तलहटी में बसे दो गावों-आरा और केरम के निवासियों द्वारा किये जल संरक्षण के प्रयासों को देश के अन्य भागों तक क्यों नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। सरकार द्वारा घोषित वन उत्पादों के समर्थन मूल्य जैसी कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी हमारे वनवासी भाइयों को होनी ही चाहिए, झारखंड में खुले में शौच से मुक्त करने हेतु जन अभियान की सफलता से देश को परिचित कराया जाना चाहिए। जन सरोकार के इन विषयों पर जन शिक्षण करना आज पत्रकारिता का तकाज़ा है।
स्वच्छता अभियान को जनआंदोलन बनाने में मीडिया की भूमिका अभिनंदनीय रही है। स्थानीय समुदाय में नागरिकों द्वारा किये जा रहे – सकारात्मक प्रयासों, परिवर्तनों से वृहत्तर देश को अवगत कराऐं। सामुदायिक स्तर पर जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, नवउद्यम जैसे सकारात्मक प्रयासों को पत्रकारिता में स्थान दें। आपके प्रयासों से जनता का विश्वास बढ़ेगा, सामुदायिक चेतना बढ़ेगी।
गत 35 वर्षों की आपकी यात्रा यशस्वी रही। मुझे विश्वास है कि भविष्य में संचार क्रांति के दौर में भी प्रभात खबर समाज में सकारात्मक हस्तक्षेप करता रहेगा। आप सभी को मेरी शुभकामनाऐं।