नई दिल्ली: मैसूर में आयोजित भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 103वें सत्र को कल शाम संबोधित करते हुए दो नोबेल पुरस्कार विजेताओं प्रो.डेविड ग्रॉस और
प्रो.हर्ष सोरोचे ने इस बात पर जोर दिया कि अनुप्रयोगों के लिए बुनियादी विज्ञान में प्रगति आवश्यक है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि क्वांटम भौतिकी में मूलभूत अनुसंधान से इलेक्टॉनिक्स, औषधि के क्षेत्र में अनुप्रयोग प्राप्त किए गए और आने वाले वर्षों में इसके क्वांटम कंप्यूटर्स से कई संभावनाएं हैं। प्रो.डेविड ग्रॉस ने कहा कि मनोरंजन कंपनियों ने ट्रांजिस्टर का आविष्कार नहीं किया और ना ही ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत ढूंढ़ने वाली तेल कंपनियों ने परमाणु प्रौद्योगिकी की खोज की बल्कि यह आईस्टिन की खोज थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विज्ञान को सिर्फ कौतूहल वश या जिज्ञासा वश खोजा जा सकता है और जो देश मूलभूत विज्ञान में जिज्ञासा दिखाने वाले युवाओं को प्रोत्साहित नहीं करता वह इन युवाओं को उन्हें प्रोत्साहित करने वाले देशों को गंवा देता है।
नोबेल पुरस्कार विजेता डेविड जे ग्रॉस ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया के नारे के लिए भारत में नए प्रौद्योगिकी का आविष्कार करने की आवश्यकता है और इसके लिए आपको देश में खोज करनी होगी।
उन्होंने कहा कि मेक इन इंडिया कार्यक्रम के लिए आपको अपने उत्पादों को और भी अधिक प्रतियोगी बनाना होगा क्योंकि कोरिया तथा दूसरे देशों द्वारा उच्च गुणवत्ता वाले सस्ते उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है। प्रो. ग्रॉस ने कहा कि भारत में बहुत अधिक संभावनाएं है और मूल विज्ञान अनुसंधान और विकास में अधिक विकास कर इस क्षेत्र में बहुत अधिक कार्य किया जा सकता है।
चीन ने गत वर्ष सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के संदर्भ में अमेरिका को पीछे छोड़ा और भारत के ऐसा वर्ष 2045 तक जीडीपी में अमेरिका को पीछे छोड़ने की आशा है। वर्ष 2000 में भारत और चीन ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का 0.8 प्रतिशत विज्ञान और अनुसंधान में निवेश किया। वर्ष 2010 तक चीन का निवेश बढ़कर 2 प्रतिशत के करीब हो गया जबकि भारत का निवेश 0.8 प्रतिशत के स्तर पर ही रहा। भारत अब इस क्षेत्र में 0.9 प्रतिशत निवेश कर रहा है जबकि चीन का निवेश बढ़कर 2.8 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया है। इसके साथ ही दो ओर उभरती हुई आर्थिक शक्तियां ब्राजील ने अपने जीडीपी का 2 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया ने 3.7 प्रतिशत विज्ञान और अनुसंधान क्षेत्र में निवेश किया है। इस संबंध में अधिकतर यूरोपीय देशों का निवेश भी 3.7 प्रतिशत के स्तर पर है।
प्रो.ग्रॉस ने कहा कि भारत में वैज्ञानिक और अनुसंधान प्रणाली प्रशासनिक, कठिन और अप्रभावी है और यह निवेश बढ़ाने वाले देश के स्तर की नहीं है। आपको अपने विज्ञान के प्रबंधन में कई बदलाव करने की आवश्यकता है। राजनीतिज्ञ आवंटित किए धन के संबंध में निश्चित नहीं होते लेकिन यह वैज्ञानिक समुदाय की जिम्मेदारी है कि वह इसका उचित प्रयोग सुनिश्चित करे। प्रो.ग्रॉस ने कहा कि वह इस संबंध में आगामी वर्षों में भारत की प्रगति के साक्षी बनना चाहेंगे।