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जलवायु परिवर्तन का सामना करने के मद्देनजर गरीबों को गरीबी के फंदे से बाहर निकालना हमारे लिए महत्‍वपूर्ण: डॉ. हर्षवर्धन

देश-विदेश

नई दिल्ली: पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्ष वर्द्धन ने कहा है कि ‘बेसिक’ (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) देश भले तेजी से उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाएं हों, लेकिन वहां अब भी दुनिया के सबसे गरीब लोगों की तादाद सबसे ज्‍यादा है। उन्‍होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का सामना करने के मद्देनजर गरीबों को गरीबी के फंदे से बाहर निकालना हमारे लिए महत्‍वपूर्ण है। वे आज नई दिल्‍ली में आयोजित  ‘बेसिक’ देशों की 27वीं मंत्रिस्‍तरीय बैठक को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने किया।

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि यह बैठक दिल्‍ली के ऐतिहासिक शहर में हो रही है। पेरिस समझौता भी ऐतिहासिक है और हम जानते हैं कि देशों को एकजुट करने में इस समझौते की अहम भूमिका है। इस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध सभी विकसित और विकासशील देश एक हैं।

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि विकासशील देशों की जलवायु संबंधी गतिविधियां बहुत महत्‍वाकांक्षी हैं, लेकिन यह भी असलियत है कि जलवायु परिवर्तन की समस्‍या बढ़ने में हमारा योगदान सबसे कम है। उन्‍होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की ऐतिहासिक जिम्‍मेदारी विकसित देशों पर है। इसलिए जरूरी है कि विकसित देश अपनी इस जिम्‍मेदारी को जल्‍द से जल्‍द पूरा करें। उन्‍होंने कहा कि 2020- पूर्व अवधि में विकसित देश अपनी जिम्‍मेदारियों से बचते हुए नजर आते हैं तथा वे जलवायु के प्रति अपनी कार्रवाई में वि‍लम्ब कर रहे हैं। इसके कारण 2020-उपरांत अवधि में विकासशील देशों के ऊपर अतिरिक्‍त बोझ आएगा। इस तरह विकासशील देशों के लिए मौजूदा आर्थिक चुनौतियों तथा लागत में बढ़ोतरी हो जाएगी।

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि विकसित देशों को 2020 तक प्रति वर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर की जलवायु वित्‍तीय प्रतिबद्धता पूरी करनी है, लेकिन ये देश अभी इस लक्ष्‍य तक नहीं पहुंच रहे हैं। उन्‍हें अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने के लिए यथाशीघ्र प्रयास करने होंगे और 2020-उपरांत अवधि में अपना वित्‍तीय समर्थन बढ़ाना होगा। उन्‍होंने कहा कि भारत सीओपी-24 के प्रति आशावान है और उम्‍मीद करता है कि पेरिस समझौते के कार्यान्‍वयन के लिए 2020 में बेहतर शुरूआत होगी।

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